संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : चर्च की बड़े परिवार को आर्थिक मदद की योजना का मकसद ?
28-Jul-2021 5:34 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : चर्च की बड़े परिवार को आर्थिक मदद की योजना का मकसद ?

धर्म की विज्ञान से दुश्मनी कुछ अधिक ही गहरी दिखती है। कई धर्मों के सबसे लापरवाह फतवे देने वाले नेता अपने-अपने धर्म के लोगों से अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने के लिए बोलते हैं. यह एक अलग बात है कि ऐसे गैरगंभीर लोगों की बात को उनके समाज के लोग भी ठीक से नहीं सुनते, और इसीलिए हिंदुस्तान की आबादी आसमान तक पहुंचने के बजाय धरती पर ही सिमटती जा रही है। लेकिन एक खबर केरल से आई है जहां पर एक कैथोलिक चर्च ने अपने सदस्यों के लिए एक नई योजना की घोषणा की है जिसमें 5 से अधिक बच्चे वाले परिवारों को चर्च की तरफ से आर्थिक मदद दी जाएगी। यह भी कहा गया है कि जो महिला चौथे, या उसके बाद के बच्चे को जन्म देगी तो उसके लिए चर्च के अस्पताल में कोई फीस नहीं ली जाएगी। इसे लोग इस बात से जोडक़र देख रहे हैं कि केरल में ईसाइयों की आबादी का अनुपात गिर रहा है और आबादी में अपना अनुपात बनाए रखने के लिए भी शायद किसी चर्च ने ऐसी योजना बनाई हो. जो भी हो, कुल मिलाकर धर्म लोगों के पारिवारिक जीवन में इस तरह दखल दे रहा है कि वह आज लोगों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए बढ़ावा दे रहा है। यह कोई बहुत नई बात भी नहीं है क्योंकि ईसाई चर्च हमेशा से गर्भपात का भी विरोधी रहा है, और गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल का भी विरोधी रहा है।

तकरीबन तमाम धर्म बच्चों के जन्म को ईश्वर की मर्जी से जोडक़र देखते हैं, और धर्म का नजरिया यह रहता है कि जो पेट देता है, मुंह देता है, वह हाथ भी देता है। इसलिए धर्म को यह लगता ही नहीं कि ईश्वर किसी को भूखे मरने देगा। यह अलग बात है कि ईश्वर के ऊपर ऐसा अंधविश्वास किसी काम का नहीं रहता, और लोग कुपोषण के शिकार होकर भूखे मरते ही हैं. ईश्वर किसी को बचाने नहीं आता, ईश्वर किसी का पेट नहीं भरता। और यह एक अलग बात है कि ईश्वर के नाम पर सभी धर्म स्थानों के पुजारी, पादरी, ग्रंथी, मुल्ला, सभी अपने-अपने पेट भर लेते हैं। अब केरल में एक चर्च की की हुई ऐसी घोषणा के बारे में उसका खुद का कहना है कि महामारी के वक्त जो आर्थिक मुसीबतें लोगों के ऊपर आई हैं उसमें राहत देने के लिए बड़े परिवारों को कुछ आर्थिक मदद की जा रही है जो कि बहुत बड़ी नहीं है, 5 से अधिक बच्चों के परिवारों को 15 सौ रुपए महीने की सहायता दी जाएगी। चर्च का कहना है कि यह बच्चे अधिक पैदा करने के लिए कोई बढ़ावा नहीं है, यह हो चुके बच्चों को पालने के लिए एक बहुत मामूली सी आर्थिक सहायता है।

अब यह जो भी हो, जिस वजह से भी यह आर्थिक सहायता दी जा रही हो, कुल मिलाकर बात यह है कि अधिक बच्चे पैदा करने को चर्च के बढ़ावे के रूप में ही इसे देखा जाएगा और अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग धर्मों के लोगों के बीच में इसकी प्रतिक्रिया होगी। लोग मानकर चलेंगे कि यह आबादी बढ़ाने की वेटिकन की साजिश है, ठीक उसी तरह जिस तरह मुस्लिमों का विरोधी एक तबका यह मानकर चलता है कि हर मुस्लिम चार शादी करते हैं और 16 बच्चे पैदा करते हैं। यह एक अलग बात है कि मुस्लिमों की आबादी के भीतर शायद 1 फीसदी भी ऐसे लोग नहीं होंगे जिन्होंने चार शादियां की होंगी, और शायद ही कोई मुस्लिम हिंदुस्तान में ऐसा होगा जिसने 16 बच्चे पैदा किए होंगे, लेकिन एक नारे के रूप में लोगों के बीच में नफरत और हिकारत पैदा करने के लिए यह मुद्दा उछाला जाता रहा है।

अब अगर यह बात चर्च की तरफ से नहीं आई होती और किसी जनकल्याणकारी सरकार की तरफ से आई होती तो भी उसके पीछे एक तर्क हो सकता था। रूस की तरह के ऐसे कई देश हैं जहां पर अधिक बच्चों पर अधिक सुविधा देने की सरकारी नीति ही है। लेकिन हिंदुस्तान में सरकार की आर्थिक मदद कम मौजूद है, और उसे पाने की कोशिश करने वाली आबादी बहुत बड़ी है, इसलिए यह बात समझने की जरूरत है कि सरकार की या समाज की कोई भी योजना ऐसी नहीं होनी चाहिए जिसका प्रत्यक्ष या परोक्ष असर आबादी को बढ़ाने वाला हो। हम जबरदस्ती किसी आबादी को काबू करने के हिमायती नहीं हैं, लेकिन पिछले दिनों जब उत्तर प्रदेश सरकार ने एक ऐसी जनसंख्या नीति की घोषणा की जिसमें दो से अधिक बच्चे होने पर लोग स्थानीय संस्थाओं के कोई चुनाव नहीं लड़ सकेंगे, सरकारी नौकरी के लिए अर्जी नहीं दे सकेंगे, और उन्हें 2 बच्चों से अधिक पर किसी तरह की सरकारी रियायती योजनाओं का फायदा नहीं मिलेगा, तो हमने कुछ शर्तों के साथ उस नीति का समर्थन किया था। हमारा यह मानना है कि जो लोग ऐसी योजना को मुस्लिम समाज पर हमला मान रहे हैं उन्हें यह भी देखना चाहिए कि अधिकतर मुस्लिम परिवार अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर क्या बना पा रहे हैं? क्या वे उन्हें मजदूर, ड्राइवर, और मामूली कारीगर से ऊपर कुछ बना पा रहे हैं? तो फिर उस समाज में अधिक बच्चों को बढ़ावा देने की क्या जरूरत है? और बात सिर्फ मुस्लिमों की नहीं है उन तमाम जातियों और धर्मों की है जिनके लोगों पर यह जनसंख्या नीति बराबरी से लागू होगी। वहां भी दो बच्चों से अधिक जिन्हें पैदा करना हो उन्हें सरकार कोई भी रियायती योजना का फायदा क्यों दे? और आबादी को घटाने के लिए सभी धर्मों पर अगर एक साथ, एक जैसी नीति लागू की जा रही है, तो इसे सिर्फ स्थानीय संस्था के चुनाव के बजाय विधानसभा और संसद के लिए भी लागू करना चाहिए कि 2 से अधिक बच्चे होने पर कोई सांसद या विधायक भी ना बन सके।

वैसे तो चर्च हो या मंदिर, मस्जिद, यह सब अपने हिसाब से अपने लोगों को बढ़ावा देने के लिए आजाद हैं, और लोगों को याद होगा कि देश में सबसे ज्यादा रफ्तार से गिरने वाली पारसी आबादी से फिक्रमंद पारसी समाज ने यह योजना घोषित की थी कि जो पारसी जोड़ा दो या अधिक बच्चे पैदा करेगा उसे समाज की तरफ से एक फ्लैट दिया जाएगा। लेकिन यह बात भी समझने की जरूरत है कि पारसी समाज इतना संपन्न है कि उसमें बेरोजगारी सुनाई नहीं पड़ती है, और लोग बड़े-बड़े कारोबार चलाते हैं, इसलिए वहां तो अगर लोगों के बच्चे कुछ अधिक हैं तो भी वे उन बच्चों का खर्च उठा सकते है लेकिन जिन समाजों में लोग गरीब अधिक हैं वहां पर इस समझदारी को दिखाने की जरूरत है कि वह कम बच्चे पैदा करें उन्हें अधिक पढ़ा-लिखाकर बेहतर रोजगार में लगाएं, और उनकी जिंदगी बेहतर बनाएं।

यूपी में जिन लोगों को मुस्लिम समाज पर आबादी की रोक का हमला दिख रहा है, उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि क्या हर समाज के बच्चे सीमित होने पर सबसे अधिक फायदा उस समाज का नहीं होगा जिस समाज में आर्थिक स्थिति आज सबसे आगे सबसे अधिक खराब है? अभी केरल की सरकार और दूसरे धर्म के लोगों की प्रतिक्रिया, वहां के चर्च के ऐसे फैसले पर आनी बाकी है, और यह भी हो सकता है कि 15 सौ रुपए महीने की रकम आबादी बढ़ाने के काम ना आए, केवल मदद के लिए काम आए, क्योंकि पढ़ाई-लिखाई वाले केरल में 15 सौ रुपए महीने में भला कितने बच्चों को पाला जा सकता है? खैर उत्तर प्रदेश हो या असम की जनसंख्या नीति हो, या केरल के चर्च की यह घोषणा हो, हमारा मानना है कि जनसंख्या पर सभी लोगों को खुलकर बात करनी चाहिए और बहस बहुत हड़बड़ी में खत्म नहीं करनी चाहिए। जो समाज जितना जिम्मेदार होगा अपने सदस्यों का जितना भला चाहेगा वह जनसंख्या पर एक सीमा का हिमायती भी होगा। जनसंख्या की सीमा किसी पर जबरदस्ती नहीं लादी जा रही है और अगर आज के बाद बनने वाले जनप्रतिनिधियों पर ऐसी कोई सीमा लागू होती है, तो वह हमारे हिसाब से ठीक ही रहेगी क्योंकि वह इस कानून के लागू होने के बाद पैदा होने वाले बच्चों पर लागू होगी, न कि आज के बच्चों पर। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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