संपादकीय
हिंदुस्तान में पैगासस नाम के जासूसी सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल की खबरों पर देश के दो प्रमुख पत्रकारों ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका लगाई थी, जिसे अगले हफ्ते सुनने के लिए मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना ने मंजूर किया है। कांग्रेस पार्टी से जुड़े और सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े वकील कपिल सिब्बल ने इस मामले को मुख्य न्यायाधीश के सामने उठाया था और उन्होंने इस याचिका का जिक्र किया था जो कि हिंदू नाम के अखबार के पूर्व मुख्य संपादक एन राम और एशियानेट नामक मीडिया समूह के संस्थापक शशि कुमार की ओर से लगाई गई है। इस याचिका में अपील की गई है कि पैगासस को लेकर जितने तरह के तथ्य दुनिया के मीडिया में सामने आ रहे हैं, उनमें हिंदुस्तान के भी करीब डेढ़ सौ लोगों के फोन नंबर संभावित निशाने के रूप में पहचाने गए हैं, इसलिए देश में इसकी जांच सर्वोच्च स्तर पर होनी चाहिए, और सुप्रीम कोर्ट के एक मौजूदा या रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में इस मामले की जांच की जाए, और सरकार से यह भी पूछा जाए कि क्या उसने इस जासूसी सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल का लाइसेंस लिया है, या इसका इस्तेमाल प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी तरह की निगरानी के लिए किया है?
यह मुद्दा पिछले एक पखवाड़े से लगातार खबरों में बना हुआ है और संसद में भी विपक्ष ने इसे जोर-शोर से उठाया है. विपक्ष के एक सबसे बड़े नेता राहुल गांधी का नाम भी ऐसे संभावित निशाने के रूप में खबरों में आया है कि उनका और उनके सहयोगियों का फोन पेगासस नाम के जासूसी सॉफ्टवेयर से घुसपैठ करने की लिस्ट में मिला है। अब तक सरकार की तरफ से साफ-साफ कुछ नहीं कहा गया है, और संसद के बाहर, संसद के भीतर, कहीं पर भी सरकार ने न तो यह बात मानी है कि उसने इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया है और ना ही उसने यह ही कहा है कि उसने यह सॉफ्टवेयर नहीं लिया है, और उसने ऐसी जासूसी नहीं करवाई है. इसी सिलसिले में यह भी याद रखने की जरूरत है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पेगासस जासूसी की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग की घोषणा की है जिसमें दो रिटायर्ड जजों को मनोनीत किया गया है. इसके साथ ही यह एक दिलचस्प बहस भी शुरू हो गई है कि केंद्र सरकार पर इस जासूसी सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल की तोहमत लग रही है तो उसकी जांच देश का कोई एक राज्य कैसे करवा सकता है? लेकिन अगर बंगाल के लोगों के नंबर ऐसे जासूसी कांड में सामने आ रहे हैं जिनमें ममता बनर्जी के रणनीति के सलाहकार रहे प्रशांत किशोर का नाम भी आया है, और ममता बनर्जी के साथ राजनीति में काम करने वाले उनके भतीजे का नाम भी आया है, तो हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट की किसी बहस में पश्चिम बंगाल सरकार का यह अधिकार साबित हो कि वह इस मामले की जांच करवा सकती है, और भारत सरकार से भी जवाब मांग सकती है। ऐसे ही जटिल मामलों पर जब अदालतों में बहस होती है, तब यह बात भी तय होती है कि केंद्र और राज्य के संबंधों में किसके क्या अधिकार रहते हैं, और दोनों एक दूसरे के प्रति किस हद तक जवाबदेह रहते हैं। ममता की शुरू करवाई जांच से यह सवाल भी उठता है कि अगर भारत सरकार से परे किसी और ने हिन्दुस्तानियों की ऐसी साईबर सेंधमारी की है, जासूसी की है, तो उसकी जांच करवाने की जिम्मेदारी तो भारत सरकार की ही होनी चाहिए! केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ऐसी जांच क्यों नहीं करवा रही है?
पेगासस के मार्फत जासूसी को लेकर यह सॉफ्टवेयर को बनाने वाली कंपनी चाहे कितने ही दावे कर ले कि वह इजराइल की डिफेंस मिनिस्ट्री की इजाजत के बाद ही किसी देश की सरकार को यह सॉफ्टवेयर बेचती है, दुनिया का तजुर्बा यह है कि कारोबारियों का बहुत से मामलों में कोई ईमान नहीं होता है और कारोबार किसी नैतिकता की बंदिशों से बंधे भी नहीं रहता। इसलिए इस इजराइली कंपनी के इस दावे पर भी हमको अधिक भरोसा नहीं है कि वह सिर्फ सरकारों को यह सॉफ्टवेयर बेचती है। लेकिन दूसरी तरफ यह कहते हुए हम भारत सरकार को साफ-साफ जवाब देने की जिम्मेदारी से बरी भी नहीं करते कि उसे खुलकर यह बताना चाहिए कि उसने यह जासूसी सॉफ्टवेयर खरीदा था या नहीं और इसका इस्तेमाल किया था या नहीं। यहां पर इस बात की चर्चा भी प्रासंगिक होगी कि देश में आईटी मंत्रालय की सलाहकार समिति के मुखिया शशि थरूर ने पिछले दिनों यह कहा था कि भारत का कानून हैकिंग की इजाजत नहीं देता है, और इस कानून के तहत हैकिंग करने वालों को कई बरस की कैद देने का प्रावधान है। दूसरी तरफ देश के लोगों के डेटा सुरक्षा के लिए एक कानून की तैयारी चल रही है, लेकिन जब तक वह बनता नहीं है और लागू नहीं होता है तब तक भी देश के लोगों का मौलिक अधिकार तो अपनी जगह है ही जिसमें उन्हें उनको अपनी जिंदगी की निजता का अधिकार भी हासिल है। इसलिए केंद्र सरकार पर यह जिम्मेदारी बनती है कि जब दुनिया के बहुत से प्रतिष्ठित अखबार मिलकर कोई रिपोर्ट बना रहे हैं और सबूतों के आधार पर बना रहे हैं, फॉरेंसिक जांच के आधार पर बना रहे हैं, तो सरकार को भी उस पर अपना जवाब देना ही चाहिए।
आज हिंदुस्तान के जिस तरह के पत्रकारों और मानव अधिकार सामाजिक कार्यकर्ताओं, सुप्रीम कोर्ट के कम से कम एक भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश, और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ देश शोषण की शिकायत करने वाली महिला के पूरे परिवार, कुछ केंद्रीय मंत्री, कई विपक्षी नेताओं की जासूसी के जैसे आरोप हवा में तैर रहे हैं वैसे में सरकार की यह जवाबदेही बनती है कि उसे सामने आकर पाक-साफ होकर दिखाना चाहिए। सरकार की चुप्पी उसे ऐसी जासूसी का जिम्मेदार ही ठहराएगी। जनाधारणा लोकतंत्र में बड़ी चीज होती है और आज जनधारणा यह मांग करती है कि सरकार सार्वजनिक रूप से और अधिकृत रूप से इस बात को कहे कि उसने ऐसी जासूसी की है या नहीं की है। लोगों को ऐसे में याद पड़ रहा है कि किस तरह कर्नाटक में एक वक्त रामकृष्ण हेगड़े की एक सरकार जासूसी के एक मामले में गिरी थी। लोगों को यह भी याद पड़ रहा है कि केंद्र में चंद्रशेखर के प्रधानमंत्री रहते हुए उनकी सरकार एक अलग किस्म की जासूसी के मामले में गिरी थी। हिंदुस्तान का कानून और यहां के राजनीतिक मूल्य इस तरह की जासूसी को बर्दाश्त नहीं करते हैं, और अगले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट इस जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए इस मामले को पूरी गंभीरता से लेगा ऐसी हमें उम्मीद है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)