संपादकीय
सोशल मीडिया पर वैसे तो बहुत किस्म की बहसें दिलचस्प रहती हैं, लेकिन एक बहस उनमें बड़ी खास रहती है जो कि आस्थावान, धर्मालु लोगों, और नास्तिक लोगों के बीच चलती है। ये धर्मालु लोग उन लोगों से अलग हैं जिन्हें हिंदुस्तान में हाल के वर्षों में भक्त कहा जाने लगा है। एक वक्त हिंदुस्तान में भक्त या भगत का बहुत अलग मतलब होता था। भक्त सूरदास कहा जाता था, या भगत नाम से भी कई संतों को पहचाना जाता था। इन दिनों जो भक्त दर्जे के लोग हैं, आज की यह बात उनके बारे में बिल्कुल भी नहीं है। आज की बात आस्थावान, धर्मालु और धार्मिक लोगों के बारे में है, जिन्हें किसी एक समय भक्त कहा जाता था, अब भक्त नाम का विशेषण उनसे छीन लिया गया है। लेकिन नास्तिक तो कल भी नास्तिक थे, आज भी नास्तिक हैं, और आने वाले कल भी शायद उनका यही नाम जारी रहेगा क्योंकि इसे छीनने वाले कोई नहीं रहेंगे। अभी ट्विटर पर एक महिला ने ईश्वर के बारे में लिखा कि मैं उसकी आराधना करती हूं, और वह मेरा मार्गदर्शन करता है। कई बार वह मेरी कई प्रार्थना पर तुरंत ही जवाब देता है, जैसे कि मुझे एक बारीक धार वाले एक औजार की जरूरत थी, और मैंने उससे प्रार्थना की, और मैं एक विदेश में एक पहाड़ी और निर्जन इलाके में थी, लेकिन फिर भी 30 मिनट में मुझे वह औजार वहां मिल गया। इसके जवाब में एक जाहिर तौर पर नास्तिक दिखने वाले व्यक्ति ने लिखा कि यह ईश्वर बड़े-बड़े जनसंहार अनदेखा करता है और तुम्हें एक औजार पहुंचाता है!
आस्थावान लोगों की दुनिया ही कुछ अलग होती है। मोटे तौर पर आस्थावान और धर्मालु लोग किसी न किसी धर्म को मानने वाले ऐसे लोग रहते हैं जो धार्मिक रीति-रिवाज का भी पालन करते हैं, धर्मस्थलों पर आते-जाते हैं, धार्मिक त्यौहार मानते हैं, और ईश्वर की उपासना करते हैं। इनके बीच आपस में तौर-तरीकों को लेकर कुछ फर्क हो सकता है लेकिन इनके बीच मोटे तौर पर एक बात एक सी ही रहती है कि इन्हें कानून या विज्ञान, इन सबसे अधिक भरोसा ईश्वर पर रहता है। हिंदुस्तान में भी हम देख चुके हैं कि किस तरह बाबरी मस्जिद को गिराने के वक्त लगातार यह नारा हवा में कुछ बरस गूंजते रहा कि आस्था पर कानून का कोई बस नहीं चल सकता, आस्था कानून से ऊपर होती है, वैसी ही दिमागी हालत में लोगों को लाकर बाबरी मस्जिद को गिराया गया था। लेकिन ऐसा सिर्फ हिंदू धर्म और हिंदुस्तान में होता हो ऐसा भी नहीं है। सिखों के सबसे पवित्र कहे जाने वाले स्वर्ण मंदिर में संत कहे जाने वाला भिंडरावाले जिस तरह हथियारबंद आतंकी गिरोह चला रहा था और जिस तरह वे स्वर्ण मंदिर से बाहर जाकर थोक में हत्याएं करके वापस आकर वहीं रहते थे, उस पूरे खूनी सिलसिले पर धर्म का कोई बस नहीं चला था, और उस दौर में सिख धर्म को देश के कानून से ऊपर मान लिया गया था।
आज भी अफगानिस्तान में तालिबान यही काम कर रहे हैं वह शरीयत का नाम लेकर अपनी मर्जी के इस्लामी कानून लोगों पर लाद रहे हैं, और लोगों को थोक में मार रहे हैं। हिंदुस्तान के ठीक बगल के म्यांमार में बौद्ध धर्म के लोग सत्ता और ताकत में हैं, पिछले कुछ वर्षों से वहां से लगातार जिस तरह मुस्लिम रोहिंग्या लोगों को भगाया गया और जिस तरह उन्हें दुनिया के कई देशों में जाकर शरण लेनी पड़ी, वह एक मिसाल है कि बौद्ध धर्म के भगवाधारी लोगों के बीच भी हिंसा की कोई कमी नहीं है। इटली की माफिया फिल्म देखें या माफिया का इतिहास पढ़ें तो उनमें से कोई भी नास्तिक नहीं थे। वह बात-बात में सीने पर क्रॉस बनाने लगते थे, इतवार को चर्च जाते थे, और पूरी तरह धर्मालु लोग थे और पूरी तरह हिंसक भी थे। जिस अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा नागासाकी पर बम गिराकर लाखों लोगों को मार डाला था, उस अमेरिका के तमाम राष्ट्रपति बाईबिल पर हाथ रख कर ही शपथ लेते हैं, और जाहिर है कि उनमें से हर कोई धर्मालु ईसाई रहे हैं, लेकिन वैसे ही धर्मालु ने जापान पर बम गिराने का, वियतनाम में फौजियों को भेजने का, 20 बरस से अफगानिस्तान में अमेरिकी फौजियों को बनाए रखने का, इराक पर हमला करने का, सीरिया पर हमला करने का फैसला लिया। इसलिए कोई धर्म किसी को कोई गलत काम करने से कभी नहीं रोक पाया है।
दूसरी तरफ यह ईश्वर को धर्मालु लोग छोटी-छोटी बातों के लिए तमाम श्रेय देते हैं। उस ईश्वर को भी न तो कभी बलात्कार से बच्चियों को बचाना सूझता, न किसी फौजी तानाशाह के हाथों से लोगों को बचाना सूझता। यह तो आस्थावान लोग हैं जो कि हर बात को ईश्वर की मर्जी ठहरा देते हैं, लोगों का जब कुछ बुरा होता है तो उन्हें पिछले जन्म के पाप का फल भुगतना बतला देते हैं, लेकिन वह ईश्वर को न तो किसी अनदेखी का गुनहगार ठहराते, और न ही ईश्वर से सवाल करते कि जब दुनिया में इतने बड़े-बड़े जुर्म हो रहे थे तो वह क्या कर रहा था? जब जर्मनी में हिटलर 10 लाख से अधिक लोगों को मार रहा था तो ईश्वर क्या कर रहा था? और हिटलर के हाथों मारे जाने वाले यहूदियों के देश इजराइल का आज जब बेकसूर फिलिस्तीन पर रात-दिन हमला होता है तो वह ईश्वर क्या करता है ? ईश्वर का यह सिलसिला लाजवाब है, बेजवाब है, किसी को कोई जवाब इसलिए नहीं मिल सकता कि ईश्वर जिंदा तो है नहीं, और जो लोग उसके प्रतिनिधि बनकर लोगों और ईश्वर के बीच एक कड़ी बने रहते हैं, वे ईश्वर से किसी भी सवाल करने का हौसला पस्त ही करते रहते हैं। ईश्वर के लिए प्रतिनिधि ऐसे हैं कि इनके चर्च में बच्चों से पादरी सेक्स करते रहते हैं, और चर्च का ढांचा उसे बचाता रहता है। और क्योंकि ईश्वर के बारे में यह कहा जाता है कि वह सर्वत्र है, सर्वज्ञ है, सर्वशक्तिमान है, इसलिए हम यह मानते हैं कि बच्चों से बलात्कार करते हुए पादरियों को रोकने के लिए वह ईश्वर भी कुछ नहीं करता। वह महज दीवार पर टंगे रहता है। यह ईश्वर और जगह पर भी कुछ नहीं करता। हिंदुस्तान के हिंदू मंदिरों में जब देवदासी प्रथा चलाकर महिलाओं को सेक्स के लिए इस्तेमाल किया जाता था, तब भी ईश्वर ने कोई दखल नहीं दी। जब दक्षिण भारत में अभी एक सदी पहले तक महिलाओं को अपनी छाती ढंकने के लिए टैक्स देना पड़ता था, तब भी ऐसा टैक्स वसूलने वालों से ईश्वर ने कभी कोई सवाल नहीं किया था। लोगों को अपने आसपास की दुनिया देखनी चाहिए कि उनके पास उनके आसपास कैसे-कैसे जुर्म हो रहे हैं, कैसी कैसी ज्यादती हो रही है, और क्या उनके इलाके में हर 100-200 मीटर पर मौजूद मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च में बैठे ईश्वर क्या किसी बुरे काम को रोक रहे हैं? आस्थावान लोगों को खासकर अपने ईश्वर से ऐसे सवाल करने चाहिए।
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