संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : रेप की शिकार बच्चियों की जात और बलात्कारियों की जात को देखने-समझने की भी जरूरत है
05-Aug-2021 6:12 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : रेप की शिकार बच्चियों की जात और बलात्कारियों की जात को देखने-समझने की भी जरूरत है

दिल्ली में अभी एक दलित बच्ची से गैंग रेप के बाद उसका कत्ल कर दिया गया। 9 साल की बच्ची से बलात्कार के बाद हत्या में पुजारी सहित चार गिरफ्तार  किये गए हैं। दिल्ली के  मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल फांसी की मांग की है। लेकिन बलात्कारी हत्यारा एक पुजारी दिख रहा है, और मरने वाली बच्ची एक दलित, तो उससे एक बड़े तबके की जुबान बंद हो गयी है। जो लोग इसी दिल्ली में निर्भया के बलात्कार के बाद कह रहे थे कि वोट डालते हुए निर्भया को यद् रखना, वे अभी चुप हैं। देश भर में ऐसा कोई दिन नहीं गुजरता जब ऐसे दस-बीस मामले अस्पताल और पुलिस तक न पहुंचते हों। दिल्ली चूंकि कैमरों के घेरे में रहती है इसलिए वहां की छोटी-छोटी बात भी खबर बन जाती है। फिर दूसरी बात यह कि जब परिवार के लोग यह तय करते हैं कि ऐसे बलात्कार या देहशोषण के मामले पुलिस तक ले जाए जाएं, तभी वे मीडिया की नजर में भी आते हैं। लेकिन इससे कई गुना अधिक मामले सामाजिक शर्मिंदगी या पारिवारिक असुविधा की बात सोचकर घर में ही दबा दिए जाते हैं।

यह भी याद रखने की जरूरत है कि किस तरह कुछ बरस पहले जब जम्मू में एक खानाबदोश बच्ची से गैंगरेप में एक पुजारी सहित आधा दर्जन लोग गिरफ्तार हुए थे, तो किस तबके ने वहां पर देश का झंडा लेकर बलात्कारियों को बचाने के लिए जुलूस निकाला था और उस मुस्लिम खानाबदोश बच्ची की वकील के ऊपर अंधाधुंध दबाव डाला गया था कि वह मुजरिमों को सजा दिलाने की कोशिश ना करें। इसलिए जब इस देश में बलात्कारियों को धर्म और जाति के आधार पर बचाने की कोशिश होगी तो लोगों को यह याद रखना चाहिए कि ऐसी बचाने वाली जाति और ऐसे धर्म के लोगों के बच्चे भी खतरे में आएंगे, और उनको बचाते हुए ये जाति और धर्म किसी काम के नहीं रहेंगे।

अब बच्चों से बलात्का की ऐसी तरह-तरह की नौबत को देखते हुए पूरे देश में जिन बातों की जरूरत है, उनमें पहली तो यह है कि छोटे बच्चों को बिना हिफाजत न छोड़ा जाए। बेंगलुरू जैसे एक बड़े शहर में स्कूली बच्चियों से स्कूलोंं में ही लगातार बलात्कार के मामले सामने आते रहते हैं, और सबसे पढ़े-लिखे शहर का यह हाल है। गांवों में नौबत और खराब होगी, यह तय है। इसलिए पूरे देश में बच्चों की हिफाजत को लेकर न सिर्फ सरकार को बल्कि समाज और परिवार को भी एक नई जागरूकता के साथ और एक नई सावधानी के साथ सोचने की जरूरत है। दूसरी बात यह कि समाज को यह भी समझना पड़ेगा कि बच्चों का देहशोषण करने वाले लोग उसके अपने बीच के होते हैं, और बहुत से मामलों में उनकी परिवार तक, स्कूल तक पहुंच होती है। इसलिए अपने पारिवारिक परिचितों के बारे में ऐसा अंधविश्वास ठीक नहीं है कि वे भला ऐसा कैसे कर सकते हैं।

तीसरी बात यह कि बच्चे जब बड़े होने लगते हैं तो शायद किशोरावस्था से भी पहले, आठ-दस बरस की उम्र से उन्हें उनके बदन के बारे में, और सावधानी बरतने के बारे में सिखाना बहुत जरूरी है। भारत में दरअसल जब कभी बच्चों को सिखाने के मामले में सेक्स शब्द का इस्तेमाल भी होता है, तो संस्कृति के ठेकेदारों का एक ऐसा तबका उठकर खड़ा हो जाता है जो सोचता है कि यह बच्चों को सेक्स करना सिखाने की योजना है। बच्चों को उनके बदन की जानकारी देना, और सेक्स के प्रति सावधान करना भी एक जरूरी शिक्षा है, और देश का कट्टरपंथी माहौल इसकी इजाजत ही नहीं देता है। नतीजा यह होता है कि बच्चे किशोरावस्था से पार होने लगते हैं, और अपने बदन से लेकर देहसंबंधों तक की उनकी जानकारी पोर्नोग्राफी या अश्लील फिल्मों से मिली रहती है, उन्हें किसी तरह की वैज्ञानिक या मानसिक सीख नहीं मिल पाती।

देश भर में सेक्स-अपराध बहुत बढ़ रहे हैं, और बच्चों की जिंदगी में सक्रियता भी बढ़ती जा रही है। स्कूलें दूर-दूर हैं, वहां आना-जाना पड़ता है, खेलकूद में बच्चों को दूर तक जाना पड़ता है, और जब मां-बाप दोनों कामकाजी रहते हैं तो भी बच्चों को घंटों तक अकेले रहना पड़ता है। ऐसे में कम उम्र से भी उनको एक सावधानी सिखाने की जरूरत है। आज तो हालत यह है कि बच्चे परिवार से जुड़े किसी के बारे में मां-बाप को शिकायत करते हैं, तो मां-बाप उनको ही झिडक़कर चुप करा देते हैं। यह नौबत बदलनी चाहिए, क्योंकि सेक्स-अपराधी चारों तरफ फैले हुए हैं, और मौकों की तलाश में रहते हैं। पश्चिमी देशों में साइबर-पुलिस लगातार ऐसे मुजरिमों को इंटरनेट पर तलाशती रहती है, और पकडक़र सजा भी दिलवाती रहती है। लेकिन भारत अभी तक बच्चों के यौन शोषण के खतरों की तरफ से आंखें बंद किए बैठा है कि मानो यह कोई पश्चिमी समस्या है।

एक खबर के मुताबिक़ - ‘‘बिहार के मुंगेर में कल ही दूसरी कक्षा में पढने वाली 8 साल की बच्ची की रेप के बाद निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई। मछली मारने वाले की बेटी का क्षत विक्षत शव बरामद हुआ। मृत बच्ची की बलात्कार के बाद साक्ष्य छिपाने को लेकर हत्या निर्मम तरीके से की गई थी। रेप के बाद हत्या की गई और फिर आंख निकाल ली।’’ जिस बात को आज अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए वह यह है कि हिंदुस्तान में सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर समझी जाने वाली जातियों और वैसे धर्मों के बच्चों और उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं ज्यादा होती हैं। भारत की जाति व्यवस्था को लेकर भी एक बार यह सोचने की जरूरत है कि बलात्कारियों में ऊंची कही जाने वाली जातियों के लोग अधिक क्यों हैं, और बलात्कार की शिकार लड़कियों और महिलाओं में नीची कहीं जाने वाली जातियों की लड़कियां और महिलाएं अधिक क्यों है? (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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