संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : किडनी बेच नया फोन न जुटाएं, अपने फोन से तसल्ली जुटाएं...
17-Sep-2021 6:37 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : किडनी बेच नया फोन न जुटाएं, अपने फोन से तसल्ली जुटाएं...

दुनिया की एक सबसे बड़ी कंप्यूटर और मोबाइल फोन कंपनी, एप्पल ने 2 दिन पहले बाजार में अपने फोन के कुछ नए मॉडल उतारे तो सोशल मीडिया पर फिर यह मजाक चल गया कि शरीर का कौन सा अंग बेचने पर इसका कौन सा मॉडल लिया जा सकता है। जो संपन्न पश्चिमी देश हैं वहां पर फोन की महंगी कीमत के बावजूद लोग कुछ बरस पहले तक तो एप्पल स्टोर के बाहर फुटपाथ पर दो-दो दिन लाइन में सोए रहते थे, अब पता नहीं वहां क्या हालत है। लेकिन दुनिया में और भी कुछ सामान हैं जो इसी किस्म के महंगे हैं, कुछ दूसरी कंपनियों के कुछ फोन भी करीब-करीब ऐसे ही दाम के हैं, और इसलिए यह मजाक उनके साथ भी बनाया जा सकता है, लेकिन ऐसे लतीफे बनते एप्पल के ही हैं।

यह सोचने की जरूरत है कि क्या सचमुच ही रोजाना इस्तेमाल की टेक्नोलॉजी पर इतना खर्च करने की जरूरत है? लेकिन यह कोई नई बात तो है नहीं, एक वक्त जब टीवी आया तो उस वक्त भी बड़ी स्क्रीन के दाम ऐसे ही अंधाधुंध अधिक थे, टीवी पर फिल्म देखने के लिए जो वीसीपी या वीसीआर आते थे, उनके भी दाम ऐसे ही थे। हर टेक्नोलॉजी शुरू में बहुत महंगी रहती है बाद में धीरे-धीरे सस्ती होती जाती है। और अब तो घर-दफ्तर में टीवी पर फिल्म देखने के लिए किसी मशीन को चलाने की जरूरत ही नहीं पड़ती है। इसी तरह जिनको यह लगता है कि मोबाइल फोन बहुत महंगे होते जा रहे हैं उन्हें यह भी ध्यान देने की जरूरत है कि मोबाइल फोन की खूबियां इतनी बढ़ाई जा रही हैं कि वे अधिक महंगे हो रहे हैं। हर किसी को इतने महंगे मोबाइल फोन की जरूरत नहीं है, और बाजार में लोगों के काम चलाने लायक मोबाइल 10-12 हजार में भी आराम से मिल जाते हैं। अधिक खर्च वही लोग करते हैं जिन्हें शान-शौकत की आदत है और जो केसर खरीदते हुए भी सबसे महंगी वाली केसर खरीदते हैं, बादाम लेते हुए भी सबसे महंगा बादाम और कुर्ते के लिए सिल्क का कपड़ा लेते हुए सबसे महंगा सिल्क। इसलिए आज बाजार में जो सबसे महंगे सामान आ रहे हैं उन्हें लोगों की जरूरत मानना गलत होगा, और जिन लोगों को अपनी जरूरत के काम के लिए मोबाइल या कंप्यूटर चाहिए, उन्हें तो यह भी देखना चाहिए कि कुछ बरस पहले के दाम पर भी आज उससे बहुत अधिक खूबियों वाले फोन और कंप्यूटर आने लगे हैं।

दरअसल बाजार में सबसे महंगा सामान लेने के शौकीन लोगों को बिना जरूरत ऊंची तकनीक वाले सामान लेने की आदत रहती है। जिन्हें कभी कोई वीडियो एडिटिंग नहीं करनी है वे भी फोन ऐसा चाहते हैं कि उसका प्रोसेसर और उसका रैम सबसे ऊंचा हो। अधिकतर लोगों को यह समझना चाहिए कि उनके पास के मौजूदा फोन या कंप्यूटर पूरी तरह खराब ना हो जाने तक उन्हें नए उपकरणों की जरूरत नहीं रहती है। इसलिए अपने पास के फोन का नया मॉडल आते ही उस पर जाने की कोशिश एक निहायत फिजूल की बात रहती है, और बहुत महंगा शौक भी। जिनको लगता है कि एक किडनी बेचकर भी आईफोन खरीदना चाहिए, उन लोगों को किडनी संभालकर रखनी चाहिए और बाजार के सस्ते फोन से काम चलाना चाहिए, जिससे तकरीबन तमाम काम निपट सकते हैं। बस समाज में उठते-बैठते लोगों को दिखाने के लिए चकाचौंध वाला महंगा ब्रांड उनके पास नहीं रहेगा लेकिन ऐसा ब्रांड दिखाकर किसी को खुश करना जरूरत नहीं रहती है, यह महज घमंड रहता है। इसलिए लोगों को अपनी जरूरत के मुताबिक ही खर्च करना चाहिए क्योंकि एक बार जिस तरह के सामान का इस्तेमाल शुरू किया जाए, बाद में फिर उससे नीचे का सामान लेना जंचता नहीं है। बच्चों को भी उतने ही महंगे सामान दिलवाने चाहिए जिनके खराब होने पर उतने ही महंगे सामान दोबारा दिलाए जा सकें।


 दरअसल खुशी सामान बदलने से नहीं आती है, खुशी आती है अपने पास के सामान से संतुष्ट रहने पर। जब तक जरूरत ना हो तब तक और अधिक महंगे, और नए, और बड़े, सामानों पर जाकर और अधिक खूबी पाने के फेर में खुशी खत्म होती है, और जो हासिल है उससे अगर काम चल रहा है, उससे अधिक की जरूरत नहीं है, तो हसरतों को काबू में रखना ठीक है क्योंकि ना तो बाजार में उपकरणों के आने पर काबू रखा जा सकता, और ना ही खूबियां बढ़ते चले जाने को रोका जा सकता है। लोगों को याद रखना चाहिए कि हिंदुस्तान की कुछ सबसे बड़ी कंप्यूटर सॉफ्टवेयर कंपनियों को बनाने वाले और उनके आज के मालिक, अज़ीम प्रेमजी, नारायण मूर्ति, अरबपति-खरबपति होने के बाद भी प्लेन में इकोनॉमी क्लास में सफर करते हैं। वे अगर चाहें तो वह अपनी कंपनी के लिए प्लेन खरीदकर उसका इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन वे आम मुसाफिर विमान में भी महंगी टिकट नहीं खरीदते, साधारण टिकट खरीदते हैं। इसके बाद ये कारोबारी अपनी दौलत से हजारों करोड़ रुपये समाजसेवा पर खर्च करते हैं। ऐसे ही बहुत से ऐसे लोग हैं, दुनिया का एक सबसे बड़ा फुटबॉल खिलाड़ी, सादिओ माने ऐसा है जो अपने घिसे-पिटे पुराने मोबाइल फोन का इस्तेमाल करता है, उसके हाथ में एक पुराना फोन दिखा जिसकी स्क्रीन भी क्रैक हो चुकी थी। वह अपनी कमाई का एक बहुत बड़ा हिस्सा समाज सेवा पर खर्च करता है। वह अपने फोन को बदलने पर भी जरा सा खर्च करना नहीं चाहता क्योंकि उतने पैसों से किसी और एक की मदद हो सकती है। फुटबॉल से ही उसकी सालाना फीस 75 करोड़ रुपये से अधिक है।

इसलिए लोगों को अपने बच्चों के सामने भी ऐसी मिसाल पेश करने की जरूरत है कि जरूरत जितने ही सामान लिए जाएं, और जरूरत पूरी न होने पर ही उन्हें बदलकर दूसरा सामान लिया जाए। जो अतिसंपन्न लोग हैं उनको छोडक़र बाकी सब लोगों की जिंदगी की प्राथमिकताएं महंगे सामान बदल देते हैं, और सामानों को, ब्रांड को, नए मॉडल को जरूरत से अधिक महत्व देने के बजाय जिंदगी की दूसरी बातों को महत्व देना सीखना चाहिए, जो कि न पैसे से मिल सकती हैं, और न ही पैसे न रहने पर वे कहीं चली जाती हैं। जिंदगी की बुनियादी सोच ऐसी रहनी चाहिए कि जो बाजार में रोज आने वाले नए सामानों से अधिक खूबी रखने वाली हो।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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