संपादकीय
छत्तीसगढ़ में सांप्रदायिक तनाव बहुत आम बात नहीं है। कहीं-कहीं पर किसी चर्च के पादरी पर, या प्रार्थना सभा करवा रहे पास्टर पर हमला जरूर होते रहा है, लेकिन सांप्रदायिक तनाव की वजह से कफ्र्यू लगाने की नौबत आ जाए ऐसा इसी हफ्ते शायद बरसों बाद हुआ है। भाजपा के भूतपूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के अपने शहर और कबीरधाम जिला मुख्यालय कवर्धा में हिंदू-मुस्लिम तनाव के चलते हुए कई दिनों से कफ्र्यू लगा हुआ है। पुलिस ने हालात पर तेजी से काबू पाया इसलिए हिंसा अधिक नहीं बढ़ पाई, लेकिन दोनों समुदाय एक-दूसरे के सामने खड़े हुए हैं। इस झगड़े की शुरुआत कैसे हुई इस बारे में लोगों का अलग-अलग कहना हो सकता है, लेकिन एक बार जब बवाल खड़ा हो गया तो उसके बाद भाजपा और विश्व हिंदू परिषद के लोग दूसरे जिलों से भी वहां पहुंचे और तनाव बढ़ते चले गया। इस इलाके के आईजी का कहना है कि भाजपा और दूसरे संगठनों के लोगों ने दूसरे जिलों से लोगों को बुलाया और उसकी वजह से तनाव बढ़ा। भाजपा ने पुलिस अफसर की इस बात को अपमानजनक माना है और इस आरोप के खिलाफ पुलिस रिपोर्ट दर्ज कराने भाजपा थाने भी पहुंची है। झगड़े की शुरुआत के जो वीडियो सामने आए हैं उनके मुताबिक एक चौराहे पर सरकारी खंभे पर किसी एक धर्म का झंडा लगा था, जिसे दूसरे धर्म के लोगों ने निकाल फेंका, और वहां से बात बढ़ती चली गई।
अभी कवर्धा से कई तरह के वीडियो सामने आ रहे हैं और उनकी हकीकत की जांच तो पुलिस या कोई दूसरी जांच एजेंसी ही करवा सकती हैं। लेकिन जिस तरह देश की राजधानी दिल्ली के इलाके में कुछ महीने पहले प्रशासन की मंजूरी न मिलने पर भी भाजपा के एक पदाधिकारी ने एक सभा की थी, और उस सभा में मौजूद कई लोगों के वीडियो तैरे जिनमें वे लोग मुस्लिमों के लिए एक सबसे अपमानजनक गाली का इस्तेमाल करते हुए नारे लगा रहे थे कि जब ———- काटे जायेंगे तो राम-राम चिल्लाएंगे। वह मामला अभी अदालत में चल रहा है, और लोग गिरफ्तार हो चुके हैं। ठीक वैसा ही एक वीडियो कवर्धा से निकलकर आया है जिसमें डॉ. रमन सिंह के बेटे, और इस इलाके के भूतपूर्व सांसद अभिषेक सिंह की अगुवाई में एक जुलूस निकल रहा है, और इसमें लाउडस्पीकर पर वही हिंसक नारा लगाया जा रहा है कि जब ———- काटे जायेंगे तो राम-राम चिल्लाएंगे। यह वीडियो 5 दिनों से घूम रहा है, और अभिषेक सिंह या भाजपा के किसी और नेता ने इसका कोई खंडन नहीं किया है। इसलिए यह मानने की कोई वजह नहीं दिख रही यह फर्जी है। फिर फिर भी आगे मामले-मुकदमे के लिए तो पुलिस को इसकी जांच करवानी ही होगी, और देश में समय-समय पर बहुत से ऐसे वीडियो फर्जी भी निकले हैं जिनमें सबसे चर्चित वीडियो कन्हैया कुमार के खिलाफ गढ़ा गया था।
कवर्धा शहर के इस सांप्रदायिक तनाव को बिना गहराई में गए सिर्फ झंडा निकालकर फेंक देने की एक घटना से अगर जोडक़र बैठ जाएंगे, तो वहां की समस्या का कोई समाधान नहीं निकलेगा। वहां के जानकार लोग बतलाते हैं कि किस तरह पिछले कई महीनों से वहां पर कई मुजरिम लगातार गुंडागर्दी, हिंसा, और जुर्म कर रहे थे, जिनके खिलाफ आदिवासी समाज ने आंदोलन भी किया, सरकार को शिकायत भी दी, कलेक्ट्रेट भी पहुंचे, लेकिन राजधानी की राजनीतिक ताकतों के दबाव में इन मुजरिमों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई। और तो और जब इनके जुर्म बहुत बढ़ गए, और कवर्धा पुलिस से राजधानी को इसकी मौखिक जानकारी दी गई, तो इसकी सजा के बतौर कुछ महीने पहले ही वहां पहुंचे पुलिस अधीक्षक का तबादला कर दिया गया। कई महीनों से कवर्धा के कई ऑडियो और वीडियो घूम रहे थे जिनसे यह साफ होता था कि किस तरह राजनीतिक ताकतों के दबाव में पुलिस मुजरिमों को छूने से भी बच रही थी, और आदिवासियों पर हिंसा करने के बाद भी इनका कुछ नहीं बिगड़ रहा था। राज्य सरकार अगर कवर्धा के सांप्रदायिक तनाव का कोई स्थाई इलाज चाहती है तो उसे हिंसा की ताजा घटनाओं के पहले के माहौल को भी देखना होगा, वरना पुलिस की तैनाती करके, अगर आज हालात काबू करके, उसे काफी मान लिया जाता है, तो हो सकता है कि आगे फिर यह बात भडक़े। आदिवासियों का जो संगठन कवर्धा में आदिवासियों पर हिंसा की शिकायत लेकर घूम रहा है, उसे सरकार फर्जी आदिवासी संगठन मानती है। अपने को नापसंद किसी संगठन की कही हुई सही बात को भी अनसुना करना किसी भी सरकार के लिए नुकसानदेह हो सकता है।
छत्तीसगढ़ में भाजपा ने पिछले कुछ महीनों में हिंदुओं के धर्मांतरण का मामला जोर-शोर से उठाया है, और राजधानी रायपुर में भाजपा के कुछ लोगों ने पुलिस थाने में एक ईसाई पास्टर पर हमला भी किया था, जो मामला अभी चल ही रहा है। ऐसे में प्रदेश में कोई भी दूसरा सांप्रदायिक तनाव धर्म की राजनीति करने वाले संगठनों को आगे बढऩे का एक मौका देता है। जिस किसी धर्म के संगठन इस काम में लगे हुए हैं, उन पर सरकार को कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए, लेकिन सरकार को यह आत्मविश्लेषण भी करना चाहिए कि कवर्धा में ऐसे तनाव के पीछे उसकी खुद की कौन सी गलतियां रही हैं। आज तो अभिषेक सिंह की अगुवाई का जुलूस हिंसक और सांप्रदायिक नारे लगाते कैमरे पर कैद हुआ दिख रहा है, लेकिन इसे ही सारे तनाव की जड़ मान लेना गलत होगा। ऐसे नारों के लिए कानून है और खासा कड़ा कानून है, लेकिन कुछ लोगों पर कार्रवाई से सरकार का काम नहीं चलता, प्रदेश का काम नहीं चलता। प्रदेश में अमन चैन बनाए रखने के लिए सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए सरकार को बड़ी गंभीरता से किसी भी धर्म के मुजरिमों के साथ पर कड़ी कार्रवाई करनी होगी, और किसी भी तरह की ढील प्रदेश में एक सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की जमीन तैयार करेगी, जो कि आज की सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को भारी पड़ेगी।
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