संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बलात्कारियों से बीस-बीस हजार जुर्माना वसूलने से क्या होगा? उनकी संपत्ति का एक हिस्सा लें
09-Dec-2021 2:43 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  बलात्कारियों से बीस-बीस हजार जुर्माना वसूलने से क्या होगा? उनकी संपत्ति का एक हिस्सा लें

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में एक दलित युवती को बंधक बनाकर उससे गैंग रेप करने वाले 2 गैर दलितों को अदालत से उम्रकैद की सजा हुई है, लेकिन बलात्कार के 8 बरस बाद जाकर निचली अदालत का यह फैसला आया है, और जाहिर है कि सजा पाने वाले लोग ऊपर की अदालतों में जाएंगे, और एक पूरी जिंदगी वहां लड़ाई चलती रहेगी। इस बीच इस मामले में मुकदमे के कुछ पहलुओं पर गौर करने की जरूरत है। यह युवती दलित थी इसलिए यह मामला एसटी-एससी अधिनियम की विशेष अदालत में चला। यह एक विशेष अदालत थी जहां इस अधिनियम के तहत दर्ज मामले ही चलते हैं, लेकिन उसमें भी इस मामले को 8 बरस लग गए। मामले की जानकारी बताती है कि बलात्कारियों ने घटना के बारे में किसी को बताने पर परिवार की हत्या की धमकी भी दी थी। अब ऐसे दबंग लोगों के बीच एक दलित परिवार अदालत में लड़ते हुए 8 बरस किस तरह गुजार रहा होगा यह सोचना आसान भी है, और मुश्किल भी। लेकिन इस फैसले के एक और पहलू पर हम बात करना चाहते हैं कि दोनों बलात्कारियों को उम्र कैद सुनाते हुए अदालत ने 20 हजार रुपयों का जुर्माना भी लगाया। यह जुर्माना किसके काम का रहेगा? बलात्कार की शिकार युवती को देने के लिए तो यह मुआवजा किसी तरह से काफी नहीं है और न ही एक राजपूत और एक ब्राह्मण बलात्कारी को यह जुर्माना बहुत भारी पड़ रहा होगा। सजा के अलावा इस जुर्माने के बारे में भी चर्चा की जरूरत है।

हम पहले भी इसी जगह पर कई बार लिख चुके हैं कि जब कभी गैर बराबरी के दो लोगों के बीच कोई जुर्म होता है, और अमूमन ताकतवर लोग ही कमजोर लोगों के खिलाफ कोई जुर्म करते हैं, तो वैसे में ताकतवर को आम सजा देना बहुत ही नाकाफी होता है। ताकतवर को सजा अधिक बरस की कैद की शक्ल में भी मिलनी चाहिए, और उसकी संपत्ति की ताकत को भी नहीं छोडऩा चाहिए। भारत जैसे समाज में पैसे की ताकत से भी कई लोगों को बलात्कार का हौसला मिलता है, इसलिए उनकी इस ताकत को भी सजा मिलनी चाहिए। जो जितना अधिक संपन्न हो, उसकी संपन्नता का एक हिस्सा बलात्कार की शिकार लडक़ी को मिलना चाहिए। शायद उस व्यक्ति की संपत्ति के बंटवारे में उसकी एक-एक औलाद या उसकी बीवी को जितना हिस्सा मिले, उतना ही हिस्सा जुर्म साबित हो जाने के बाद बलात्कार की शिकार लडक़ी को मिलना चाहिए। ऐसा होने पर ही समाज में संपन्न और ताकतवर लोगों के बीच खौफ बैठेगा कि वे खुद तो जेल जाएंगे, परिवार भी दौलत के एक बड़े हिस्से से हाथ धो बैठेगा। बलात्कार के दिन बलात्कारी की जितनी दौलत है, उसे अदालत को तुरंत ही अपनी निगरानी में लेना चाहिए, और उसके एक हिस्से का कब्जा भी बलात्कारी के परिवार से परे कर लेना चाहिए। यह बात इसलिए जरूरी है कि देश में न सिर्फ बलात्कार, बल्कि किसी भी तरह के अपराध, संपन्न और ताकतवर लोगों द्वारा कमजोर और विपन्न लोगों पर अधिक होते हैं। यह ताकत ओहदे की ताकत भी होती है कि मानो कोई सुप्रीम कोर्ट का जज हो जो अपनी मातहत कर्मचारी का सेक्स शोषण करता हो, या कि कोई बड़ा अफसर या मंत्री हो जो कि किसी बेरोजगार या जरूरतमंद के साथ बलात्कार करता हो। इसलिए ताकत का जितना बड़ा हौसला हो उतना ही बड़ा जुर्माना होना चाहिए, कैद तो होनी ही चाहिए। ऐसा बड़ा जुर्माना ही बलात्कार या हत्या के शिकार परिवार के पुनर्वास में काम आ सकता है

भारत की न्याय प्रक्रिया में ऐसा इंतजाम भी होना चाहिए कि जब कोई गरीब परिवार किसी जुर्म के खिलाफ शिकायत करके अदालत आने-जाने के लिए मजबूर होता है तो उसकी कुछ भरपाई भी सरकार की तरफ से होनी चाहिए। आज भी अदालत से गरीबों को रोजाना कुछ छोटी सी रकम पेशी पर आने के लिए मिलने का प्रावधान तो है लेकिन शायद ही उसका कहीं कोई भुगतान होता है, अदालत के बाबू ही उसे रख लेते हैं। जब पूरे-पूरे दिन पुलिस थानों में, वकीलों के पास, और अदालत के गलियारों में खराब होते हैं तो गरीबों को उसकी भरपाई भी होना चाहिए। इसके बिना लोग भूखे मरने के डर से भी कई बार शिकायत नहीं कर पाते कि उनकी उस दिन की मजदूरी का क्या होगा, दिनभर अदालत में रहेंगे शाम को चूल्हा कैसे जलेगा? जब जुल्म और जुर्म की शिकार गरीब जनता की तकलीफें इतनी बड़ी रहती हैं कि वे अदालत में पूरा दिन गंवाना भी बर्दाश्त नहीं कर पाते, तो उनके लिए अदालत की तरफ से एक गुजारा भत्ते का इंतजाम होना चाहिए। यह इंतजाम कम से कम एक दिन की सरकारी रोजी जितना होना चाहिए ताकि गरीब लोग जिंदा रह सके। इसके साथ-साथ गरीबों को अदालत में मिलने वाली मुफ्त कानूनी मदद के ढांचे को भी मजबूत करने की जरूरत है ताकि उन्हें इंसाफ मिलने की थोड़ी सी गुंजाइश बढ़ सके। दुनिया के बहुत से विकसित देशों में बड़े-बड़े वकील भी अपने वक़्त का कुछ हिस्सा गरीबों के लिए मुफ्त में देते हैं। हिंदुस्तान में भी ऐसी मदद को बढ़ावा मिलना चाहिए।

कुल मिलकर जिस बात से आज की यह चर्चा शुरू हुई है, बलात्कार के मामलों की सुनवाई तेज होनी चाहिए और कोशिश होनी चाहिए कि साल भर के भीतर बलात्कारी को सजा मिल जाये, और उसकी संपत्ति का एक हिस्सा जुर्माने की शक्ल में वसूलकर बलात्कार की शिकार को दिया जाये।
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