संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : इस बारे में हिंदुस्तान को जरूरत है न्यूज़ीलैंड से कुछ सीखने की...
10-Dec-2021 5:56 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : इस बारे में हिंदुस्तान को जरूरत है न्यूज़ीलैंड से कुछ सीखने की...

दुनिया में बहुत सी जगहों पर ऐसे मौलिक फैसले लिए जाते हैं जिनसे बाकी दुनिया कुछ सीख सकती है। हर फैसला तो हर जगह लागू नहीं हो सकता क्योंकि अलग-अलग देशों के कानून अलग होते हैं, वहां की लोकतांत्रिक या दूसरे किस्म की व्यवस्था अलग होती है, लेकिन फिर भी कई बातों को लेकर एक-दूसरे से सीखा जा सकता है। अब जैसे आज की खबर है कि न्यूजीलैंड दुनिया में सबसे कड़ा धूम्रपान कानून लागू करने जा रहा है, और इस प्रस्तावित कानून में 14 साल या उससे कम उम्र के लोग 2027 के बाद कभी सिगरेट नहीं खरीद पाएंगे। अभी 2 दिन पहले न्यूजीलैंड में इस नए कानून का मसौदा पेश किया गया और स्वास्थ्य मंत्री ने यह कहा कि हम इस बात की गारंटी करना चाहते हैं कि नौजवान कभी धूम्रपान न करें। वहां की सरकार का यह कहना है कि धूम्रपान घटाने की बाकी कोशिशें इतना धीमा असर करती हैं कि उससे लोगों का सिगरेट पीना छूटने में  कई दशक लग जाएंगे, और सरकार लोगों का इतना लंबा नुकसान नहीं चाहती है। आज न्यूजीलैंड में 15 साल से अधिक उम्र के लोगों में 11 फ़ीसदी लोग सिगरेट पीते हैं और वहां के मूल निवासी माओरी आदिवासियों में यह अनुपात 29 फ़ीसदी तक है। अभी लोगों के सामने पेश किया गया यह मसौदा अगले साल संसद में पेश होगा और 2024 से इस पर कड़ाई से अमल किया जाएगा, और 2027 से धूम्रपान मुक्त पीढ़ी आने लगेगी ऐसा सरकार का कहना है। इसी खबर में यह जानकारी भी मिलती है कि न्यूजीलैंड की तरह यूनाइटेड किंगडम भी 2030 तक धूम्रपान मुक्त होने का एक लक्ष्य लेकर चल रहा है।

हिंदुस्तान में हाल के वर्षों में ऐसा लगने लगा है कि सिगरेट पीना तो इतना बड़ा खतरा शायद नहीं रह गया है जितना बड़ा खतरा तंबाकू और सुपारी का मिला हुआ गुटखा बन गया है। हिंदुस्तान में गुटखा जेब में रखकर चलना आसान है, खरीदने के लिए तो कदम-कदम पर दुकानें हैं, और गांव-देहात के बहुत से लोग तो खाली तंबाकू को मसलकर उसे मुंह में दबाकर घंटों तक उसका मजा और नशा लेते रहते हैं, यह एक अलग बात है कि मुंह के कैंसर को न्यौता देने का यह सबसे असरदार तरीका है। हिंदुस्तान में मुंह के कैंसर की एक सबसे बड़ी वजह मुंह में तंबाकू दबाकर रखने वाले लोग हैं, लेकिन देश और प्रदेश की किसी भी सरकार की फिक्र में यह नहीं दिखता है क्योंकि बड़े-बड़े नेता भी इस तरह से तंबाकू खाते हुए दिखते हैं। बहुत से नेताओं की तो ऐसी तस्वीरें आती है जिनमें उनके कमरों में पीकदान रखे रहते हैं और जो बात करते हुए मुंह को आसमान की तरफ उठाकर पीक को मुंह में समाए हुए बात करते हैं। कहने के लिए हिंदुस्तान में धूम्रपान के खिलाफ कानून है और यहां सार्वजनिक जगहों पर सिगरेट-बीड़ी पीने वाले लोगों पर जुर्माना है लेकिन इस कानून का कभी कोई अमल होता हो ऐसा दिखाई नहीं पड़ता है. अभी जब कोरोना की वजह से पिछले डेढ़-दो बरस में लोगों को अधिक साफ-सफाई और सावधानी बरतने की जरूरत लगने लगी, तब भी सड़कों पर भूख और पीक उगलते हुए लोगों की भीड़ दिखती ही है। हर चौराहे पर जहां लाल बत्ती पर गाड़ियां रूकती हैं वहां कारों के दरवाजे खुलने लगते हैं, और अगर किसी ने हेलमेट लगाया हुआ है तो उसे हटाकर भी, थूकने का सिलसिला चलता है. कोरोना वायरस को यह देश बड़ा पसंद भी आता होगा क्योंकि यहां लोग खूब सारा थूक चारों तरफ फैलाते चलते हैं, और सड़कों पर बड़े-बड़े हिस्से तंबाकू की पीक के रंग के दिखते हैं।

भारत में कैंसर के आंकड़े अगर देखें तो मुंह के कैंसर के शिकार लोग बहुत हैं। सिगरेट-बीड़ी पीने से फेफड़ों का कैंसर भी होता है और उनकी गिनती अलग है। सिगरेट-बीड़ी पीने वालों के आसपास के लोग भी उनके धुएं के बुरे असर के शिकार होते हैं और पैसिव स्मोकिंग से भी बहुत से लोगों को कैंसर होता है। न्यूजीलैंड ने जिस तरह का कड़ा फैसला सामने रखा है उसे देख कर दुनिया के बाकी देशों को भी अपने बारे में सोचना चाहिए और सिगरेट-बीड़ी, तंबाकू-गुटखा, या शराब पर किस तरह काबू पाया जाए, उस बारे में सोचना चाहिए।

जिन सरकारों को यह लगता है कि तंबाकू या शराब से इतना टैक्स मिलता है कि सरकार उसी कमाई से चलती है, तो उन्हें इन चीजों से होने वाली बीमारियों की पारिवारिक और सामाजिक लागत के बारे में भी सोचना चाहिए, और यह भी सोचना चाहिए कि गरीब जनता इन पर कितना खर्च करती है, और उसके बाद उनमें से कितने लोगों की उत्पादकता किस बुरी तरह प्रभावित होती है, कितने लोगों को महंगे इलाज की जरूरत पड़ती है, कितने लोगों की जिंदगी घट जाती है। सरकारें बुराइयों से, नशे से कमाई के आंकड़े गिनते हुए ऐसे खर्च के आंकड़ों को अनदेखा कर देती है जिनका एक बड़ा बोझ सरकार पर ही पड़ता है। आज एक-एक कैंसर मरीज के इलाज में लाखों रुपए खर्च होते हैं, और गरीब मरीजों को तो सरकारी इंतजाम का ही सहारा रहता है। भारत में केंद्र सरकार को और राज्य सरकारों को भी तंबाकू से जुड़ी हुई चीजों के बारे में कड़े फैसले करने चाहिए और ऐसा करते हुए तंबाकू उत्पादक किसानों की फिक्र नहीं करनी चाहिए। ऐसे किसानों को दूसरी फसलों तक ले जाने में सरकारें मदद कर सकती हैं, और उन्हें अधिक नुकसान से बचा सकती हैं, लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी अगर तंबाकू का चलन इसी तरह चलता रहेगा तो उससे आने वाली पीढ़ियों के नुकसान की भी गारंटी रहेगी।

न्यूजीलैंड ने जिस तरह अगली पीढ़ी की फिक्र करते हुए इस नए कानून का मसौदा सामने रखा है, उसे देखना चाहिए और भारतीय परिस्थितियों में उस बारे में क्या हो सकता है यह सोचना चाहिए। किसी एक प्रदेश के लिए ऐसा फैसला लेना आसान नहीं होगा क्योंकि भारत के प्रदेश एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और किसी एक अकेली जगह प्रतिबंध लागू करना मुश्किल होता है। इसलिए देशभर में ऐसी किसी व्यवस्था के बारे में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच एक सहमति होना भी जरूरी है तभी जाकर लोगों की जिंदगी बच पाएगी।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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