संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : धर्मग्रन्थ की बेअदबी के शक में स्वर्णमंदिर में हुई भीड़त्या !
19-Dec-2021 6:39 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  धर्मग्रन्थ की बेअदबी के शक में स्वर्णमंदिर में हुई भीड़त्या !

पंजाब में स्वर्ण मंदिर में कल शाम हुई वारदात बहुत ही भयानक है। एक बहुत कमजोर सा दिख रहा कोई नौजवान स्वर्ण मंदिर के गुरु ग्रंथ साहब के पास तक पहुंचा और रेलिंग पर से कूदकर वह ग्रांट साहब के करीब पहुंच गया। इसके बाद उसने कुछ उठाने की कोशिश की, जिसे लेकर अलग-अलग लोगों का अलग-अलग कहना है। कुछ का कहना है कि उसने वहां रखी हुई सोने की एक ऐतिहासिक तलवार उठाने की कोशिश की थी, कुछ का कहना है कि उसने वहां से फूल उठाने की कोशिश की थी। जो भी हो वहां से उसे तुरंत दबोच कर मंदिर के ऑफिस में ले जाया गया और उसे इतना मारा गया कि उसकी मौत हो गई। मारने वालों में से एक व्यक्ति ने मीडिया से बतलाया-‘मैंने इस नौजवान की दो उंगलियां तोड़ दी। जब हमने उससे उसकी पहचान के बारे में पूछा तो उसने कहा कि वह खुद के बारे में नहीं जानता है, इसके बाद संगत के लोगों ने उसे मारना शुरू किया और वह मर गया।’ मरने वाले की लाश को देखें तो वह बहुत ही कमजोर दिख रहा है, और मारने वालों की भीड़ के बीच देर तक उसकी लाश बिना ढके हुए खुली पड़ी हुई थी। बाद में जब पुलिस ने उसकी लाश को अस्पताल पहुंचाया तो वहां हथियारबंद सिखों ने प्रदर्शन किया और लाश बाहर ले जाने का विरोध किया।

पंजाब में सत्तारूढ़ कांग्रेस के मुख्यमंत्री ने भी गुरु ग्रंथ साहब की बेअदबी की इस घटना पर दुख जाहिर किया है, हालांकि मुख्यमंत्री के ट्वीट में मरने वाले नौजवान का कोई जिक्र नहीं है। ऐसा ही हाल अकाली दल के ट्वीट का है, अरविंद केजरीवाल के ट्वीट का है, और बाकी तमाम लोगों का है। तमाम लोगों ने गुरु ग्रंथ साहब की बेअदबी पर तो दुख जताया है, लेकिन वहां भक्तों के मारे इस नौजवान के बारे में मुख्यमंत्री ने भी कुछ नहीं कहा है, और ना ही बाकी नेताओं ने। चारों तरफ यही माहौल है कि सिखों के सबसे बड़े धार्मिक ग्रंथ के अपमान की यह साजिश थी, कुछ लोगों का कहना है कि पंजाब में चुनाव होने जा रहे हैं और किसान आंदोलन खत्म होने के बाद अब बदले हुए हालात में किसी राजनीतिक मुद्दे की तलाशो में साजिशन ऐसा किया गया हो सकता है। लोगों को याद होगा कि अभी कुछ हफ्ते पहले जब दिल्ली की सरहद पर किसान आंदोलन चल रहा था उस वक्त उसके पास ही डेरा डाले हुए निहंगों ने एक दलित नौजवान को पकड़ा था और उस पर आरोप लगाया था कि वह सिखों के एक धार्मिक ग्रंथ का अपमान कर रहा है और उसके हाथ-पैर काट-काटकर उसे रस्सियों पर बांधकर टांग दिया गया था और बाद में शहीद के अंदाज में हत्यारे निहंगों ने पुलिस के सामने अपने को पेश किया था। पिछले कुछ वर्षों से पंजाब में कोई न कोई ऐसी घटना हो रही है जिसे लेकर सिक्खों के धर्म प्रतीकों की बेअदबी की बात उठती है, और वह राजनीतिक मुद्दा बने रहती है।

दुनिया में कुछ धर्मों के लोग अपने धार्मिक ग्रंथों के लिए दूसरे धर्म वालों के मुकाबले अधिक संवेदनशील हैं। इनमें से सिक्ख हैं और मुस्लिम भी हैं। धार्मिक ग्रंथों को लेकर जगह जगह इन दोनों धर्मों के लोगों के लिए खुद भी परेशानी खड़ी होती है, और फिर इनकी की हुई हिंसा सबके लिए परेशानी खड़ी करती है। अब सवाल यह है कि आज के वक्त में जब धार्मिक ग्रंथ आसानी से चारों तरफ हासिल किए जा सकते हैं, तब उनकी बेअदबी किसी अनजानी वजह से भी हो सकती है, और सोच-समझकर किसी साजिश के तहत भी हो सकती है। लोगों को याद होगा कि बांग्लादेश में अभी कुछ महीने पहले दुर्गा पूजा के वक्त हिंदुओं के खिलाफ जितने दंगे हुए और हिंदुओं को जिस तरह से मारा गया, उस वक्त भी यही तोहमत लगाई गई थी कि एक किसी पूजा मंडप में किसी हिंदू देवी-देवता की गोद में कुरान रखी हुई मिली थी और उसे देखकर मुस्लिमों का गुस्सा भडक़ा था। कल स्वर्ण मंदिर में जो हुआ है उसे सत्ता की राजनीति करने वाले लोगों में से तो कोई भी हिंसा की एक घटना करार नहीं देंगे क्योंकि सिख धर्म के धर्मालुओं के बीच अपने वोटों को बरकरार रखना है। लेकिन सवाल यह है कि अगर किसी नौजवान ने ऐसी कोई बेअदबी कर भी दी थी, तो उसे कानून के हवाले करना चाहिए था, न कि धर्म को कानून से ऊपर साबित करते हुए इस तरह वहां मंदिर परिसर में ही उसकी हत्या कर देना। सिक्खों की कौम दुनिया में हर किस्म की मुसीबत में मदद करने के लिए सबसे आगे रहने वाली कौम है। हिंदुस्तानी फौज में किसी एक कौम के लोग सबसे ज्यादा हैं, तो वह भी शायद सिक्ख ही होंगे। इसलिए ऐसी बहादुर और ऐसी सेवाभावी कौम को कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए। किसी ने भी धार्मिक प्रतीकों का अपमान किया है यह आरोप लगाकर जगह-जगह दुनिया में लोगों को मारा जाता है। पाकिस्तान में भी ईशनिंदा का एक ऐसा कानून बना हुआ है कि जो कोई इस्लाम का, या मोहम्मद पैगंबर का अपमान करते दिखे उसे सजा दिलवाई जाती है, या भीड़ अगर चाहती है तो उसे घेरकर मार डालती है। लेकिन हिंदुस्तान एक मजबूत न्याय व्यवस्था वाला देश है और यहां पर किसी धर्म के लोगों को कोई शिकायत अगर है, तो उन्हें ऐसे नौजवान को पकडक़र कानून के हवाले करना था और वीडियो कैमरों के सबूतों के साथ उसे सजा दिलवाना मुश्किल काम भी नहीं होता। धर्म के नाम पर कानून को अपने हाथ में लेना एक खराब बात है और उससे उस धर्म की सकारात्मक छवि भी खराब होती है।

यह सिलसिला पंजाब चुनावों के ठीक पहले सामने आया है इसलिए वहां का मुख्यमंत्री भी यह बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है कि जिस नौजवान की हत्या हुई है उसकी भी जांच की जाएगी। अभी तक जितनी जानकारी सामने आई है उसमें यह भी खुलासा नहीं हुआ है कि इस नौजवान की नीयत क्या थी और जिस तरह उससे पूछताछ में समझ में आया है, वह विचलित या अस्थिर चित्त का दिख रहा है। ऐसे में प्रदेश का मुख्यमंत्री भी ऐसी खुली हत्या की जांच की बात करने से भी अगर डर रहा है तो यह राजनीति और सरकार पर धर्म के दबदबे का एक बड़ा सबूत है, यह सिलसिला ठीक नहीं है। किसी भी धर्म के लोगों को यह बात मानकर चलना चाहिए कि अगर उसे मानने वाले लोग अपनी धार्मिक किताब की सीख और नसीहत पर अमल कर रहे हैं, तो उस किताब का कोई अपमान नहीं हो सकता। एक किताब या उसके कुछ पन्ने मान-अपमान से ऊपर रहते हैं। धार्मिक ग्रंथ का अपमान तभी होता है जब उस धर्म के लोग हिंसा करते हैं, कोई आतंक फैलाते हैं, या बेकसूरों को मारते हैं। कोई और व्यक्ति किसी धर्म की बेअदबी नहीं कर सकते। कल की घटना बहुत ही तकलीफदेह है और एक धर्म स्थान में ऐसी हिंसा होना अपने-आपमें बहुत बुरी बात तो है ही, यह बात भी बहुत तकलीफ देती है कि कोई संगठन, कोई सरकार, कोई नेता, राजनीतिक दल, कोई भी इस हत्या के बारे में कुछ बोलने को ही तैयार नहीं है। चुनाव सामने हैं लेकिन फिर भी ऐसी भीड़त्या को अनदेखा नहीं करना चाहिए, और हर धर्म के लोगों को यह चाहिए कि वे अपने धार्मिक ग्रंथों की हिफाजत और कड़ी करें ताकि उन तक पहुंचना आसान काम ना रहे।
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