संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : देश की फिक्र क्या एक अकेले हाई कोर्ट जज का काम है?
25-Dec-2021 2:43 PM
 ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : देश की फिक्र क्या एक अकेले हाई कोर्ट जज का काम है?

उत्तर प्रदेश में फरवरी में होने जा रहे विधानसभा चुनाव को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश के चुनाव आयोग दोनों का नाम लेकर यह अपील की है की कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए चुनावों को टालने पर विचार करना चाहिए और चुनावी सभाओं और रैलियों पर तुरंत ही रोक लगानी चाहिए। हाईकोर्ट ने लीक से हटकर अपने इस सुझाव को प्रधानमंत्री और चुनाव आयोग के नाम एक अपील की तरह जारी किया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोरोना मोर्चे पर अब तक की कामयाबी की तारीफ भी की है।

हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में लगातार बढ़ते हुए कोरोना संक्रमण और मौतों का जिक्र किया है और कहा है कि तीसरी लहर हमारे दरवाजे पर खड़ी हुई है ऐसे में फरवरी में होने जा रहे चुनावों को एक दो महीनों के लिए टाला जाना चाहिए। जस्टिस शेखर कुमार यादव ने इस अदालती अपील में कहा है कि राजनीतिक दलों की बड़ी-बड़ी आम सभाओं और रैलियों से लोगों के लिए एक खतरा खड़ा होगा। उन्होंने चुनाव आयोग से यह भी अपील की है कि वे राजनीतिक दलों से यह कहें कि वे रैलियों और आम सभाओं के रास्ते प्रचार न करें बल्कि अखबारों और टीवी का इस्तेमाल करें।  जस्टिस यादव ने कहा कि जान है तो जहान है अगर जिंदगी बची रही तो चुनावी रैलियां और आम सभाएं बाद में भी हो सकती हैं, और उन्होंने याद दिलाया कि संविधान की धारा 21 लोगों को जीने का अधिकार देती है। जस्टिस यादव ने प्रधानमंत्री से भी इस भयानक नौबत को ध्यान में रखते हुए विचार करने की अपील की है।

जज ने कहा है कि अगर कोरोना के बढऩे को समय पर नहीं रोका गया तो इसके नतीजे इसकी दूसरी लहर से भी अधिक खतरनाक होंगे। उन्होंने याद दिलाया कि उत्तर प्रदेश के ग्राम पंचायत चुनावों और पश्चिम बंगाल के चुनावों में बहुत लोग कोरोनावायरस से मारे गए थे। इस पर पूछे जाने पर सरकार की तरफ से केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि यह फैसला चुनाव आयोग को लेना है कि चुनाव कब होंगे। दूसरी तरफ चुनाव आयोग का यह कहना है कि वह अगले हफ्ते उत्तर प्रदेश जाएगा, वहां की समीक्षा करेगा और फिर उचित फैसला लेगा।

अभी राजनीतिक दलों ने हाई कोर्ट के जज की इस अपील पर कुछ नहीं कहा है क्योंकि चुनाव हर राजनीतिक दल को अच्छा लगता है। हर किसी के पास अपनी बात कहने का एक मौका रहता है और लोगों की हिफाजत, या लोकतंत्र की हिफाजत राजनीतिक दलों की आखिरी प्राथमिकता रहती हैं। जैसा कि हिंदुस्तान के चुनावों का आम ढर्रा है, लोगों को शराब पिलाकर, उन्हें तोहफे बांटकर, नगद रकम देकर, धर्म और जाति का ध्रुवीकरण करके, भावनात्मक और भडक़ाऊ झूठे मुद्दे उठाकर, वोटरों को प्रभावित करने की एक साजिश में अधिकतर पार्टियां जुट जाती हैं, और लोकतंत्र या देश-प्रदेश का भला उनकी आखिरी प्राथमिकता रहती है। हमने बंगाल के चुनाव के वक्त भी देखा कि तमाम राजनीतिक दलों ने लाखों लोगों की एक-एक चुनावी आमसभा से लोगों की जिंदगी पर होने वाले खतरों के खिलाफ कोई फिक्र नहीं की और हर बड़ी पार्टी के बड़े नेता ने लाखों लोगों को इक_ा किया, उसके लिए एक-एक गाड़ी में सैकड़ों लोगों को भरकर चुनावी सभा में लाया गया।

वैसा ही आज उत्तर प्रदेश में चल रहा है और उत्तर प्रदेश में तो केंद्र और राज्य में दोनों पर भाजपा काबिज होने की वजह से प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के स्तर पर बड़े-बड़े सरकारी कार्यक्रम हो रहे हैं जिनमें उद्घाटन और शिलान्यास चल रहे हैं, और जिन्हें लेकर कोई चुनावी आपत्ति भी नहीं की जा सकती, और ऐसे कार्यक्रमों में सरकारी इंतजाम से लोगों को इकट्ठा किया जा रहा है। इनसे परे भी राजनीतिक कार्यक्रम हो रहे हैं जिनमें लाखों लोगों की भीड़ जुटने का दावा सत्तारूढ़ पार्टी ही कर रही है। एक तरफ तो आज देश में अधिकतर राज्यों में रात का कफ्र्यू या तो लगाया जा चुका है, या उस पर विचार चल रहा है। केंद्र सरकार ने तमाम राज्यों को यह सलाह दी है कि वे रात के कफ्र्यू लगाने के बारे में सोचें। आज एक दर्जन राज्यों में कोरोना का नया खतरनाक वेरिएंट ओमिक्रॉन दाखिल हो चुका है, और और उसके खतरे से जूझने के लिए हिंदुस्तान पता नहीं कितना तैयार है। हिंदुस्तान में आज आधी से अधिक आबादी तो बिना टीकों के है और जिन्हें पहला टीका लगा है उनमें से भी बहुत से लोगों को दूसरा टीका नहीं लगा है। दुनिया के विकसित देश तीसरे और चौथे बूस्टर डोज की तरफ बढ़ रहे हैं और हिंदुस्तान में अभी आधी आबादी के लिए टीकाकरण शुरू ही नहीं हो पाया है। ऐसे में देश नए खतरे को किस हद तक झेल पाएगा यह सोच पाना बड़ा मुश्किल है।

लोगों को यह भी याद रहना चाहिए कि जिस उत्तर प्रदेश को लेकर यह बात हो रही है उस उत्तर प्रदेश में पिछली लहर में लगातार इतने लोग मारे गए थे कि उनकी लाशों को गंगा में बहाया गया था, या गंगा के तट पर रेत में दबा दिया गया था, जो बाद में उजागर होकर दुनिया की कुछ सबसे भयानक तस्वीरें बना रही थीं। वह दौर कई किस्म की सरकारी नाकामयाबी का एक भयानक दौर था, और देश के किसी भी दूसरे राज्य में वैसी तबाही नहीं देखी थी। इसलिए आज हाईकोर्ट के एक जज की फिक्र के साथ-साथ राज्य सरकार और केंद्र सरकार को भी जनता की फिक्र करनी चाहिए और राजनीतिक दलों को भी यह चाहिए कि इस मुद्दे पर अपना रुख साफ करें। आज पार्टियां चुप्पी साधकर बैठी हैं जबकि चुनाव उत्तर प्रदेश के अलावा भी दूसरे राज्यों में होने जा रहा है और ऐसे तमाम राज्यों को, वहां चुनाव लडऩे जा रही पार्टियों को, अपना रुख साफ करना चाहिए। हिंदुस्तान में अब अखबार और टीवी चैनल, मोबाइल फोन और तरह-तरह के मैसेंजर, इन सबकी जनता के बीच में इतनी घुसपैठ हो चुकी है अगर कोई चुनाव करवाना भी है तो उस चुनाव की तारीखों को फैलाकर रखना चाहिए ताकि किसी भी जगह भीड़ और धक्का-मुक्की की नौबत ना आए, मतदान केंद्र बढ़ाने चाहिए, आम सभाओं और किसी भी किस्म की भीड़ को पूरी तरह से रोक देना चाहिए। वरना लोकतंत्र के नाम पर जो ढकोसला चुनाव की शक्ल में होता है, और जिसे तमाम किस्म की अलोकतांत्रिक बातों से प्रभावित किया जाता है, उसे कोरोना वायरस के सबसे बड़े आयोजन की तरह इतिहास में दर्ज किया जाएगा।
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