संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : विरासत के बोझ से दबे दूसरी पीढ़ी के कारोबारी कहीं टिक नहीं रहे नए खाली हाथ लोगों के सामने
01-Feb-2022 4:40 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  विरासत के बोझ से दबे दूसरी पीढ़ी के कारोबारी कहीं टिक नहीं रहे नए खाली हाथ लोगों के सामने

दुनिया की एक सबसे बड़ी कंप्यूटर सॉफ्टवेयर कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने अभी-अभी डिजिटल गेम बनाने वाली एक कंपनी एक्टिविजन ब्लीजार्ड को 5 लाख 10 हजार करोड़ रुपए में खरीदने की घोषणा की है। इस रकम के बारे में सोचने की कोशिश करें तो हमारे जैसे लोगों की कल्पना इतने शून्य भी नहीं लगा पाती है, और यह भी समझ नहीं पड़ता है कि कैसे बिना किसी ठोस संपत्ति वाली, केवल वीडियो गेम बनाने वाली कोई कंपनी इतनी कीमती हो सकती है, और कैसे कोई दूसरी कंपनी इतनी बड़ी हो सकती है कि वह इसे 5 लाख 10 हजार करोड़ में खरीदे। लेकिन पिछले 10 बरस में ऐसे बहुत से मौके आए हैं जब किसी ने कोई ईमेल कंपनी खरीदी किसी ने कोई मैसेंजर सर्विस खरीदी और अपनी ताकत को एकदम से बढ़ा लिया, बाजार में लोगों के बीच अपना एकाधिकार कायम कर लिया। फेसबुक ने भी ऐसा ही किया और अब माइक्रोसॉफ्ट ने डिजिटल खेल की इस कंपनी को खरीदा है। इधर-उधर से दूसरी कई खबरें बताती हैं कि किस तरह ऑनलाइन डिजिटल खेल दुनिया भर में लाखों लोगों के लिए फुलटाइम काम हो गया है और वे वहां से न केवल रोजी-रोटी कमा रहे हैं, बल्कि मोटी कमाई भी कमा रहे हैं। राजस्थान के एक लडक़े की कहानी अभी बीबीसी की एक रिपोर्ट पर आई थी कि किस तरह वह ऑनलाइन गेम से जब कमाई करने लगा तब उसके घरवालों को यह तसल्ली हुई कि वह सिर्फ वक्त बर्बाद नहीं कर रहा है, और अब वह किसी अंतरराष्ट्रीय कंपनी की स्पॉन्सरशिप पाकर ऐसे ही ऑनलाइन खेलों में महारत हासिल कर रहा है।

हजारों बरस से दुनिया के परंपरागत कारोबार को देखें तो आज धंधे की बदली हुई शक्ल हैरान करती है। हजारों बरस तक दुनिया में सिर्फ सामान का कारोबार होता था, और थोड़ा-बहुत धंधा मजदूरी का होता था। ताकतवर देश, ताकतवर लोग कमजोर और गरीब देशों से गुलाम खरीदकर लाते थे और उनसे मरने तक मेहनत करवाते थे और अपना कारोबार बढ़ाते थे। एक किस्म से यह दुनिया का पहला सर्विस सेक्टर था जो कि एक अमानवीय जुल्म और जुर्म की बुनियाद पर खड़ा हुआ था और इसने कारोबार में और खुदाई या खेती में उत्पादकता बढ़ाई थी। फिर भी असली कारोबार सामानों से होता था, सामान को ही व्यापार माना जाता था। यह एक और बात है कि वेश्यावृत्ति को भी दुनिया का सबसे पुराना कारोबार कहा जाता है, और थोड़े पैमाने पर अपना बदन बेचने वाली महिलाएं हमेशा मौजूद थीं, और अब उन्हें कारोबार कहा जाए या सर्विस सेक्टर कहा जाए, आज की जीएसटी की परिभाषा में उसे अलग से समझना होगा।

पिछले कुछ दशकों में दुनिया में बिल्कुल नए-नए नौजवानों ने कंप्यूटर सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग और ऑनलाइन गेमिंग जैसे बहुत से नए कारोबार खड़े किए, और उन्हें आसमान तक पहुंचा दिया। आज दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक बन चुकी, फेसबुक के बारे में 100 बरस पहले कौन यह सोच सकता था कि सिर्फ एक सोच इतना बड़ा कारोबार बन सकती है, जिसमें कोई सामान नहीं लगा है! जब मार्क जुकरबर्ग ने फेसबुक तैयार किया होगा तो उसके पास शायद खुद का ही एक अदना सा कंप्यूटर रहा होगा, और उसके बाद कारोबार बढ़ते-बढ़ते आज दुनिया के तकरीबन तमाम लोगों को अपने घेरे में ले चुका है, और आज नौबत यह है कि बिना किसी ठोस प्रोडक्ट के फेसबुक एक कारोबार की शक्ल में बड़े-बड़े विकसित देशों की संसद में बहस का सामान बना हुआ है, दुनिया के आधे देशों की अर्थव्यवस्था से बड़ा कारोबार बन चुका है। इसका मतलब यह हुआ कि खदानों से निकला हुआ सोना या हीरा, कारखानों में बनाया हुआ कोई सामान, या खेतों में उगाई गई कोई महंगी फसल ही अब उत्पादन नहीं रह गए हैं। अब एक सोच ही अपने-आपमें बहुत बड़ा प्रोडक्ट है। एक कल्पना जो कि मौलिक रहती है, वही अपने-आपमें सबसे बड़ी कामयाबी साबित तो हो रही है। लेकिन हिंदुस्तान जैसे देशों के परंपरागत आम लोगों को यह सोचना होगा कि परंपरागत कारोबार और रोजगार ही अब भविष्य नहीं रह गए हैं। अब इनसे बड़ा भविष्य वे छोकरे हो गए हैं जो कि जींस और टीशर्ट पहने हुए एक कंप्यूटर पर एक नई दुनिया गढ़ लेते हैं, और दुनिया के सबसे बड़े शासक से भी अधिक लोगों को अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं, और अपने कारोबार को इतना कीमती साबित कर देते हैं जितना किसी ने कभी सोचा भी नहीं था। इसलिए परंपरागत प्रोडक्ट और परंपरागत रोजगार से परे सोचने की जरूरत है।

आज दरअसल किसी पुरानी तकनीक को या तरकीब को सीखने के बजाय यह सीखने की जरूरत है कि बिना कुछ सीखे, बिल्कुल खाली दिमाग से महज कल्पनाओं से क्या-क्या सोचा जा सकता है। जब तक लोग सोच के पुराने दायरों के कैदी बने रहेंगे, तब तक वे दूर तक नहीं जा पाएंगे। और आज का वक्त बिल्कुल नई-नई और मौलिक सोच से काम करने का है। हिंदुस्तान में भी ऐसे छोटे बहुत से उदाहरण है कि कैसे पहली पीढ़ी के नए-नए कारोबारियों ने कोई काम शुरू किया, और वह बिल्कुल अनोखा था, और लोगों ने उसके पहले वैसे किसी काम के बारे में सोचा भी नहीं था। उसकी एक बड़ी खूबी यही थी कि पहले किसी ने वैसा नहीं सोचा था, और उसी वजह से वह एक बड़ा कारोबार बन पाया। इसलिए आज की दुनिया में उसी देश और समाज की वही पीढ़ी आगे बढ़ सकेगी जिसे पुरानी किताबों को रटाने के बजाय खुले आसमान में पंछी की तरह कल्पनाओं को उड़ाकर कुछ नया सोचना सिखाया जा सके, और यह भी सिखाया न जाए, सिर्फ उकसाया जाए, सोचने के लिए। जब लोग पहले के किसी भी सीखे हुए से परे नया कुछ कर पाएंगे, कल्पना कर पाएंगे, तो ही वे चमत्कार की तरह का कोई कारोबार कर पाएंगे। आज विरासत में मिले किसी कारोबार के दो-चार गुना होने की तरकीब तो सरकार के साथ मिलकर निकाली जा सकती है, लेकिन एक कमरे या गैराज से आसमान तक पहुंचने का काम कोई दूसरी पीढ़ी का कारोबारी नहीं कर पा रहे हैं, यह काम पहली पीढ़ी के सिर्फ वही कारोबारी कर पा रहे हैं जिनके सिर पर विरासत को ढोने की जिम्मेदारी नहीं है, जिनके सामने यह चुनौती नहीं है कि बाप-दादा के कारोबार से उनकी तुलना करके लोग क्या कहेंगे। इतिहास और विरासत के ऐसे बोझ से मुक्त नौजवान ही खाली हाथों से एक नई दुनिया गढ़ रहे हैं, जिनमें दुनिया के करोड़ों लोग आकर जुड़ रहे हैं, उसमें बस रहे हैं। इसलिए घिसी-पिटी बातों को पढऩे और सीखने के बजाय, कल्पना की संभावनाओं, और संभावनाओं की कल्पना पर बच्चों को आगे बढऩे देना चाहिए।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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