संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बड़ी-बड़ी कामयाबी के पीछे छोटी-छोटी बातों का हाथ
28-Feb-2022 4:22 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  बड़ी-बड़ी कामयाबी के पीछे छोटी-छोटी बातों का हाथ

हिन्दुस्तान के एक सोलह बरस के शतरंज खिलाड़ी, ग्रैंडमास्टर आर प्रागननंदा ने अभी लोगों को हैरान कर दिया जब उन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय ऑनलाईन शतरंज टूर्नामेंट में दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी मैग्नस कार्लसन को हरा दिया। माथे पर सफेद तिलक लगाए हुए प्रागननंदा की तस्वीरें पूरी दुनिया में फैल रही हैं, और लोग इस जीत पर हैरान हैं। लेकिन इतनी कमउम्र में दुनिया के एक सबसे माहिर शतरंज खिलाड़ी को हराने की इस खबर की दो छोटी-छोटी और बातें बड़ी दिलचस्प हैं। पहले से तय इस ऑनलाईन शतरंज टूर्नामेंट के ठीक पहले प्रागननंदा ने दिमागी आराम के लिए भारत और वेस्टइंडीज के खिलाफ टी-20 मैच देखा था। और फिर इस शतरंज मुकाबले में दुनिया के नंबर वन खिलाड़ी को हराकर वह चैन से सोने चला गया था, बिना कोई जश्न मनाए।

अब यह सोचने की बात है कि शतरंज मुकाबले के ठीक पहले यह किशोर खिलाड़ी क्रिकेट मैच देख रहा था। हिन्दुस्तान में आमतौर पर औसत छात्र-छात्राएं इम्तिहान के मिनट भर पहले तक कॉपी-किताब में डूबे रहते हैं, पिछली रात जागकर पढ़ते रहते हैं, और दिमाग को आराम जरा भी नहीं देते। किसी काम में कामयाब होने के लिए मेहनत के साथ-साथ आराम की भी जरूरत होती है, इसके महत्व को वे लोग नहीं समझ पाते जो लोग मेहनत को ही सब कुछ मानकर चलते हैं। मेहनत का अपना एक महत्व होता है, लेकिन मेहनत के बीच आराम का भी एक महत्व होता है। जो लोग कसरत करते हैं उन्हें यह बात मालूम रहती है कि हफ्ते में एक या दो दिन का आराम भी जरूरी रहता है। अधिक गंभीरता से कसरत करने वाले महीने में तीसों दिन कसरत नहीं करते क्योंकि बदन को आराम की जरूरत होती है तभी वह आगे काम के लायक तैयार हो पाता है। ठीक इसी तरह शतरंज जैसा दिमागी काम करने वाले लोगों को भी इस खेल से परे के आराम या मनोरंजन की जरूरत होती है, और इसीलिए कोई क्रिकेट टीम चाहे आलोचना का शिकार होती रहे, वह किसी बड़े मैच के पहले कभी स्वीमिंग पूल में खेलते दिखती है, तो कभी किसी और तरह का मनोरंजन करते।

लोगों को जिंदगी में विविधता का भी सम्मान करना चाहिए, और अपने खास मकसद में लगे हुए भी उन्हें अपने तन-मन को आराम देने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि लगातार मेहनत से जो नुकसान होता है, उसकी भरपाई भी बीच-बीच में होते रहनी चाहिए। शायद यही वजह थी जो यह किशोर शतरंज खिलाड़ी शतरंज की बिसात पर और मेहनत करने के बजाय क्रिकेट मैच देखकर अपने को तरोताजा कर रहा था। पढ़ाई के किसी इम्तिहान या किसी दाखिला-इम्तिहान की तैयारी में रात-दिन लगे हुए बच्चों के मां-बाप को भी यह समझना चाहिए कि इन बच्चों को बीच-बीच एक ब्रेक की जरूरत होती है तभी वे आगे की मेहनत करने के लायक तैयार हो सकते हैं। आम हिन्दुस्तानी मां-बाप की दिक्कत यह है कि वे न सिर्फ अपने बच्चों की पढ़ाई तय करते हैं, उनका रोजगार तय करते हैं, बल्कि वे उनका मनोरंजन भी तय करने पर आमादा रहते हैं कि उन्हें किस तरह का मनोरंजन करना चाहिए। इससे बच्चों की मौलिकता पूरी तरह खत्म हो जाती है, और आज अगर कोई हिन्दुस्तानी लडक़ा दुनिया के सबसे बड़े शतरंज खिलाड़ी को हरा रहा है, तो यह महज किसी तकनीक को सीखकर नहीं कर पाया है, बल्कि अपनी कुछ मौलिक चालों की वजह से वह उस्ताद को शिकस्त दे पाया है। इसलिए लोगों को खुद भी अपनी मौलिकता का सम्मान करना चाहिए, और अपने आसपास के लोगों की मौलिकता को भी बनाए रखना चाहिए। संगीत के छात्र शास्त्रीय संगीत की बारीकियों की तकनीक को सीख सकते हैं, बने बनाए राग को सीख सकते हैं, लेकिन एक अनोखा संगीत बनाने के लिए उन्हें अपने मौलिक संगीत पर ध्यान देना होता है, तभी जाकर कोई संगीत उल्लेखनीय बन पाता है और चर्चा पाता है।

प्रागननंदा की इस जीत की खबर में यह भी देखने की जरूरत है कि किस तरह वह जिंदगी की सबसे बड़ी जीत को पाकर बिना इसकी खुशी मनाए सोने चले गया। लोगों में अपनी कामयाबी पर भी अपने दिमाग को काबू में रखना आना चाहिए। इतनी बड़ी कामयाबी के बाद भी अगर कोई चैन से सो सकता है, तो ऐसा लगता है कि वह उससे भी बड़ी कामयाबी के लायक है। कुछ लोगों को लग सकता है कि हम बड़ी मामूली और छोटी-छोटी बातों के बड़े-बड़े मतलब निकालने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन लोगों को अपनी जिंदगी में ऐसी छोटी-छोटी बातों पर ध्यान भी देना चाहिए, और अपने आसपास के लोगों को भी उनके मनचाहे तरीकों से मनोरंजन करने या आराम करने की रियायत देनी चाहिए जो कि लोग देना नहीं चाहते हैं।
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