संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : इसलिए शराफत में ही समझदारी है...
02-Mar-2022 4:33 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  इसलिए शराफत में ही समझदारी है...

हिन्दी के एक टीवी अभिनेता ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील लगाई है कि उनसे जिंदगी में हुई एक गलती का जिक्र इंटरनेट से हटाया जाए। बहुत बरस पहले जब यह अभिनेता एक नौजवान था, उसने एक बार शराब पीकर गाड़ी चलाई थी और उसका केस बना था। तबसे अब तक गंगा में बहुत पानी बह चुका है, लेकिन शराबी ड्राइविंग का यह मामला इंटरनेट पर बना हुआ है, और इस अभिनेता का नाम सर्च करने पर तुरंत सामने आ जाता है। अब क्या लोगों की पुरानी जिंदगी की बातों को उसी तरह मिटाया जा सकता है जिस तरह हिन्दुस्तान के इतिहास की जानकारियों को इन दिनों मिटाया जा रहा है? या फिर उन्हें मिटाने का किसी को हक नहीं हो सकता। जैसा कि सोशल मीडिया और इंटरनेट को लेकर बाकी मामलों में है, हिन्दुस्तान पश्चिम के विकसित और सभ्य लोकतंत्रों से खासा पीछे चलता है, और इसलिए अभी हिन्दुस्तान में न किसी को शादीशुदा जिंदगी में बलात्कार की परवाह है, और न ही इंटरनेट से अपना इतिहास हटवाने के मुद्दे पर गौर करने की।

लेकिन अब सवाल यह उठता है कि क्या एक कानूनी सजा या जुर्माना ही किसी की गलती या गलत काम के लिए काफी रहते हैं, या फिर उन्हें लेकर समाज और सोशल मीडिया में होने वाली बदनामी भी जरूरी होती है? अब जैसे किसी परिवार के किसी व्यक्ति ने घर के बाहर कहीं बलात्कार कर दिया, तो उसके परिवार की इसमें सहमति तो नहीं रहती है, लेकिन बदनामी तो पूरे परिवार की होती है, पिछली पीढ़ी की अगली पीढ़ी की या साथ-साथ जीवन साथी की भी। कुछ मामलों में किसी जाति या धर्म के लोग कोई जुर्म करते हैं, और पूरे समुदाय की बदनामी होती है, पूरे समुदाय को अविश्वास से देखा जाता है। इसलिए सजा सिर्फ कानून की सुनाई हुई नहीं होती, सिर्फ मुजरिम को नहीं मिलती, और सिर्फ वक्ती तौर पर नहीं रहती, बल्कि वह साये की तरह जिंदगी भर साथ-साथ भी चलती है।

पुराने वक्त से चली आ रही सामान्य समझबूझ भी यह कहती है कि साख राख, और खाक तक साथ जाती है, यानी इंसान का बदन राख हो जाता है, या खाक में मिल जाता है, फिर भी साख बनी रहती है। इसलिए दिल्ली हाईकोर्ट में दायर इस अपील से परे भी आम सोच यही कहती है कि जिंदगी भर बदनामी या तोहमत को झेलना सजा का एक हिस्सा होता है। लोगों को कुछ भी करने के पहले आगे की अपनी लंबी जिंदगी की साख या बदनामी भी सोचनी चाहिए, अपने आसपास के लोगों की इज्जत के बारे में भी सोचना चाहिए जो कि बेकसूर रहते हुए भी बदनामी की सजा भुगतते हैं। कई मामलों में तो यह हो जाता है कि बलात्कारियों की आल-औलाद की शादियां भी आसानी से नहीं हो पातीं, या कई किस्म के समझौते करके ही हो पाती हैं। दुनिया के इतिहास में लोगों को बड़े बन जाने पर अपने बचपन की भी छोटी-छोटी गलतियों की साख ढोनी पड़ती है क्योंकि ऊंचाई पर पहुंचने वाले लोगों की नींव को इतनी गहराई तक खोदा जाता है कि उनके बचपन की गलतियां तक उजागर हो जाती हैं। हमने पहले भी इस जगह यह लिखा है कि सोशल मीडिया पर हिंसा और अश्लीलता लिखने वाले लोगों को याद रखना चाहिए कि आगे जब कभी वे किसी नौकरी के लिए अर्जी देंगे, या किसी बड़े विश्वविद्यालय में दाखिला चाहेंगे तो उनका सोशल मीडिया खंगाला जा सकता है, और यह देखा जा सकता है कि वे लोगों को किस तरह की धमकियां देते आए हैं।

वैसे आज की विकसित और कारोबारी दुनिया में बहुत सी ऐसी डिजिटल एजेंसियां काम कर रही हैं जो भुगतान करने की ताकत रखने वाले लोगों के सार्वजनिक-डिजिटल इतिहास की अप्रिय और अनचाही बातों को हटवाने का काम करती हैं। मतलब यह कि अगर आपकी ताकत है तो आप अपनी बदनामी भी कुछ या काफी हद तक मिटवा सकते हैं। लेकिन यह सहूलियत हर किसी को हासिल नहीं रहती, और जो लोग आज सोशल मीडिया पर किसी धर्म, जाति, या राजनीतिक विचारधारा के तहत, या ऐसे तबकों से मिलने वाले किसी भुगतान के एवज में अगर सोशल मीडिया पर जुर्म करते चल रहे हैं, तो उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि उनका यह जुर्म रिकॉर्ड से हट नहीं सकता। लोगों को यह जानकर हैरानी होगी कि दुनिया की पेशेवर और माहिर खुफिया एजेंसियां इंटरनेट की शुरूआत से अभी तक का इतिहास खंगाल कर कई लोगों के बारे में यह जानकारी भी निकालकर रखती है कि जब 25 बरस पहले इंटरनेट पर बच्चों से सेक्स के चैटरूम हुआ करते थे, उस वक्त की चैट भी आज खुफिया एजेंसियों के पास है, और इसका इस्तेमाल बहुत से लोगों को धमकाने या ब्लैकमेल करने के लिए किया जाता है। इसलिए कुल मिलाकर रास्ता यही है कि राह से भटकने से ही बचा जाए, वरना अगर आप आम हैं, तो आम बदनामी के शिकार रहेंगे, और अगर खास हैं, तो खास जासूसों की खास निगरानी का शिकार रहेंगे। आज की दुनिया में इंटरनेट और सोशल मीडिया से किसी के बारे में सब कुछ मिटा पाना नामुमकिन है। इसलिए शराफत में ही समझदारी है...
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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