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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कुदरत का हर पहलू होता है इंसानों के लिए बेहतर शिक्षक
07-Mar-2022 4:24 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  कुदरत का हर पहलू होता है इंसानों के लिए बेहतर शिक्षक

(फोटो : Twitter)

इंटरनेट और सोशल मीडिया पर जानवरों के कुछ दिलचस्प वीडियो देखें तो लगता है कि किस तरह वे एक दूसरे की जिंदगी बचाने के काम आते हैं। कहीं कोई कुतिया बिल्ली के बच्चों को दूध पिलाकर बचा रही है, तो आज ही एक वीडियो ऐसा पोस्ट हुआ है जिसमें पानी में डूब रही गिलहरी को बचाने के लिए एक कुत्ता पानी में कूदा, और उसे अपने सिर पर बिठाकर किनारे ले आया। इंसान को छोडक़र धरती, पानी और आसमान के कोई भी जीव-जंतु इंसान जितना सोचने वाले नहीं होते हैं, ऐसा माना जाता है। लेकिन जब पशु-पक्षियों के बीच इस तरह की आपसी हमदर्दी दिखती है तो लगता है कि इंसानों में बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें पशु-पक्षियों से कुछ सीखने की जरूरत है। ऐसे तो हम पहले भी यह बात लिखते आए हैं कि लोगों को कुदरत से भी बहुत कुछ सीखना चाहिए, और दुनिया की कई संस्कृतियों में लोग जंगल और पेड़ों तक जाकर, उनके बीच कुछ वक्त गुजारकर अपने-आपको बेहतर बनाते हैं। जिन जानवरों का इस्तेमाल इंसान आमतौर पर गालियां बनाने के लिए करते हैं, और अपने बीच के घटिया लोगों को कोसने के लिए जानवरों की मिसालें देते हैं, उन इंसानों को यह सोचना चाहिए कि जानवरों में भला इंसानों जितने मतलबपरस्त कहां होते हैं?

जब इंसान तनाव में रहें, तो शायद बच्चों और पशु-पक्षियों के वीडियो देखने पर वह तनाव कम होता है। और फिर अब तो हर हाथ में एक वीडियो कैमरा होने से जानवरों और बच्चों के दिलचस्प वीडियो सोशल मीडिया पर आते ही रहते हैं, और वे लोगों का तनाव घटाने में मददगार होते हैं। कहीं कोई पक्षी पानी के किनारे बैठकर सतह पर आने वाली मछलियों के मुंह में खाना देते जा रहा है, कहीं कोई कुत्ता किसी बिल्ली को लिपटाकर सुला रहा है, ऐसे अनगिनत वीडियो आते हैं और इन्हें देखकर इंसानों को यह सोचना चाहिए कि एक ही इंसानी बिरादरी के होने के बावजूद उनके बीच किस हद तक नफरत फैली हुई है, रंग, जाति, और धर्म इन सबका कितना तनाव भरा हुआ है, जिंदगी की बुनियादी बातों को छोडक़र बाकी बातों के लिए किस हद तक हिंसा हो रही है। इंसान तो जानवरों के मुकाबले अधिक बड़ा दिमाग रखते हैं, पढ़े-लिखे हैं, उन्हें धर्म और आध्यात्म जैसी आस्था का भी सहारा है, लेकिन वे हिंसा के मामले में जानवरों से अधिक हिंसक हैं। कुदरत ने जिस जानवर को जैसे खानपान का बनाया है, उससे परे वे कुछ नहीं खाते। जो मांसाहारी भी हैं, वे भी शायद अपनी नस्ल को नहीं खाते, और जिन दूसरे प्राणियों को वे मारते हैं, उन्हें भी महज अपनी भूख की जरूरत के लिए मारते हैं, मार-मारकर अपना गोदाम भरकर नहीं रखते। इंसानों के मुकाबले जानवरों को देखें तो अधिकतर नस्लों में नर मादा को रिझाने के लिए तरह-तरह से कोशिश करते हैं, उसका दिल जीतने की कोशिश करते हैं, दूसरे नर प्राणियों को हराकर मादा को जीतते हैं। मतलब यह कि इंसानों के बीच जिस तरह का लैंगिक भेदभाव हिंसा तक पहुंचा हुआ रहता है, वैसा जानवरों के बीच कहीं भी नहीं दिखता।

आज जब सोशल मीडिया पर नफरत और हिंसा को फैलाने का काम कुछ लोग पूरी निष्ठा और भक्ति-भाव से एक मजदूरी या समर्पण की तरह करते हैं, तब कुछ लोग जानवरों और बच्चों के आपसी प्रेम के वीडियो भी डालते हैं जिनमें कोई कुत्ता या कोई बिल्ली किसी इंसानी बच्चे को अपने में समेटकर हिफाजत से रखते हैं, और बच्चे भी उनके साथ सबसे अधिक आराम से रहते हैं। ऐसे वीडियो देखकर दूसरे प्राणियों को तो कुछ सीखने की जरूरत नहीं है क्योंकि वे इंसानी नफरत से अब तक अछूते हैं, लेकिन इंसानों को इनसे यह सीखना चाहिए कि किस तरह दूसरे प्राणी इंसानों के बच्चों को भी इतनी मोहब्बत से साथ रखते हैं। आज अगर लोगों को अपना खासा वक्त कम्प्यूटर या मोबाइल फोन पर गुजारना ही है, तो भी उन्हें नफरत की बातों के बजाय मोहब्बत की बातें सीखने के लिए पशु-पक्षियों और मछलियों के ऐसे वीडियो देखना चाहिए जो कि इंसानों से बेहतर खूबियों वाले प्राणी दिखाते हैं। आज घर-घर में बच्चे कार्टून फिल्में देखते हैं, और वीडियो गेम खेलते हैं। उनका स्क्रीन-टाईम अगर कम करना मुमकिन नहीं है, तो भी हमारा यह मानना है कि उन्हें बच्चों और जानवरों के ऐसे वीडियो दिखाए जाएं जो कि बेहतर प्रकृति दिखाते हैं, बेहतर खूबियां दिखाते हैं। बचपन से ही अगर बच्चे अपना कुछ समय सहअस्तित्व की ऐसी बातों को देखते हुए गुजारते हैं, तो उनके मन में दूसरे प्राणियों के लिए भी सम्मान रहेगा, और दूसरे लोगों के लिए भी।

दुनिया के बहुत से देशों में, बहुत सी संस्कृतियों में इंसानी जिंदगी में भी प्रकृति के महत्व को लंबे समय से गिनाया गया है। लोगों को अपने परिवार सहित जब मुमकिन हो तब कुदरत के बीच जाना चाहिए, और शहरी फोन-कम्प्यूटर को जितने वक्त अलग रख सकें, अलग रखकर प्रकृति के बीच जीकर देखना चाहिए। कुदरत से बड़े कोई शिक्षक नहीं हो सकते, और उसके हर पहलू से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। पशु-पक्षी इसी कुदरत का एक हिस्सा हैं, और सोशल मीडिया पर अगर आए दिन उनके खूबसूरत मिजाज को दिखाने वाले वीडियो पोस्ट करने वाले लोगों को फॉलो किया जाए, तो इंसान खुद भी अपने तनाव से बच सकते हैं, वे एक बेहतर इंसान बन सकते हैं।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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