संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : चुनावी भविष्यवाणियों को नतीजों से मिलाकर कल देखें, और सवाल करें...
09-Mar-2022 3:47 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : चुनावी भविष्यवाणियों को नतीजों से मिलाकर कल देखें, और सवाल करें...

photo cartoonist kirtish bhatt bbc

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का मतदान पूरा हुआ, और उसके तुरंत बाद एक्जिट पोल के नतीजे आने लगे। बहुत से बड़े टीवी चैनलों ने अलग-अलग सर्वे एजेंसियों के साथ मिलकर मतदान के दिनों पर जो सर्वे किया था उसके नतीजे आखिरी मतदान के बाद ही रखे जा सकते थे, और तकरीबन तमाम चैनलों ने अपने और दूसरे चैनलों के सर्वे मिलाकर भी पेश किए। पिछले कुछ दशकों में हिन्दुस्तान में एक्जिट पोल का सिलसिला बढ़ते चले गया है, और कुछ मौकों पर ये अनुमान गलत भी निकले हैं, लेकिन अधिक बार ये सच के करीब रहते हैं। किसी एक चैनल या सर्वे एजेंसी का अनुमान गड़बड़ हो सकता है, लेकिन सभी को मिलाकर अगर देखा जाए, और उनमें नतीजे एक तरफ झुके हुए दिखें, तो मानना चाहिए कि उसी की संभावना अधिक है।

लेकिन एक्जिट पोल से परे पिछले कुछ महीनों से लगातार अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराओं के लोग अपनी-अपनी पसंद और नापसंद के मुताबिक चुनावी संभावनाओं पर लिख रहे थे। बहुत से अखबार और टीवी चैनल खुलकर किसी पार्टी या नेता के प्रचारक बनकर काम करते आए हैं, और इस बार भी वे उसी किरदार में थे। दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले राजनीतिक या सामाजिक चेतनासंपन्न लोग अपनी भावनाओं के मुताबिक भविष्यवाणी करने में लगे हुए थे, और हकीकत का उनका अंदाज उनकी हसरतों से लदा हुआ था। अब दो दिन बाकी हैं, बल्कि कल शाम तक ही तमाम नतीजे सामने आ जाने चाहिए, और दो छोटे राज्यों में कांटे की टक्कर की भविष्यवाणी एक्जिट पोल ने की है, वहां तस्वीर साफ होने में कुछ दिन और लग सकते हैं, लेकिन बाकी जगहों के बारे में कल शाम तक भविष्यवक्ताओं की जवाबदेही तय करने का समय आ जाएगा।

लोकतंत्र में अगर लोग जागरूक नहीं रहते हैं, तो लोग उन्हें बरगला सकते हैं, और हर चुनाव में सिलसिलेवार धोखा दे सकते हैं। लेकिन अगर लोग जागरूक रहेंगे, और अगर वे अखबारों की कतरन सम्हालकर रखेंगे, एक्जिट पोल के स्क्रीनशॉट बचाकर रखेंगे, तो कल उनके हाथ अधिकतर मीडिया के लिए सवाल रहेंगे। लोगों को अखबारों, टीवी चैनलों, वेबसाइटों, और सोशल मीडिया पर लिखने वाले लोगों से जवाब भी लेने चाहिए। कल शाम जब राज्यों की तस्वीर साफ हो जाएगी, और एक-एक विधानसभा सीट पर जीत-हार और लीड का आंकड़ा सामने रहेगा, तो लोगों को अपने-अपने इलाके, प्रदेश, या पूरे देश की भविष्यवाणी करने वाले लोगों से उनका अनुमान गलत होने पर जवाब मांगना चाहिए, या कम से कम उनकी भविष्यवाणी सोशल मीडिया पर याद दिलानी चाहिए। अगर हर किसी के पाठक, श्रोता, और दर्शक ऐसा करने लगेंगे, तो अगली बार अपनी कलम या आत्मा बेचकर झूठी भविष्यवाणई करने वाले लोग भी कुछ शर्म महसूस करेंगे, और जिन लोगों ने बिना कुछ बेचे सिर्फ अपनी हसरतों को हकीकत लिखा था, वे लोग भी अगली बार अधिक सावधान होने को मजबूर रहेंगे। लोग कुछ भी लिख देते हैं, और कुछ भी बोल देते हैं, और इसके बाद भी कोई उनसे जवाब नहीं मांगते, तो यह गैरजिम्मेदारी को बढ़ाने का सिलसिला रहता है। एक जिम्मेदार लोकतंत्र के नागरिकों को ऐसे सिलसिले के खिलाफ सवाल उठाने चाहिए।

दुनिया भर में कहीं भी कोई ओपिनियन पोल हो, या एक्जिट पोल हो, इन सब का सौ फीसदी सही होना जरूरी नहीं होता, लेकिन उसके पीछे अगर कोई बदनीयत है, तो उसका उजागर होना जरूरी होता है। फिर अगर बिना बदनीयत के भी कुछ लोग अपने नाम की शोहरत को भुनाते हुए किसी नेता या पार्टी, या गठबंधन की जीत या हार के बड़े-बड़े दावे करते हैं, तो उनकी कही बातों के स्क्रीनशॉट के साथ नतीजों को रखना चाहिए ताकि अगली बार झूठे या गैरजिम्मेदार दावे करते हुए वे उजागर हो सकें, लोग उन्हें उनके पिछले दावों और उनके बाद के नतीजों की याद दिला सकें। लोगों को आज कम्प्यूटर और मोबाइल फोन की मेहरबानी से रिकॉर्डिंग, स्क्रीनशॉट, और समाचारों के लिंक बचाकर रखना आसान हो गया है। हिन्दुस्तान में ही दुनिया के कुछ और विकसित लोकतंत्रों की तरह फैक्ट-चेक करने वाली वेबसाइटें काम करती हैं, और ऐसी कोई वेबसाइट भी लोगों के दावों और नतीजों को अगल-बगल रखकर आम पाठकों या दर्शकों के राजनीतिक शिक्षण का काम कर सकती हैं। लोकतंत्र में जनता की राजनीतिक चेतना का विकास जरूरी रहता है, और आज झूठ का कारोबार इतना जोर पकड़ चुका है कि लोग अपने पूर्वाग्रहों को माकूल बैठने वाले झूठ को बढ़ाने के काम में लगे रहते हैं, और सच मानो रोजगार दफ्तर के बाहर निराश बैठे बेरोजगार की तरह रहता है। ऐसे में जिम्मेदार तबकों को दावों की हकीकत सामने रखना चाहिए, इनमें चुनावी भाषणों के झूठ तो बीच-बीच में लोग उजागर करते रहते हैं, लेकिन अपने आपको तटस्थ बताने वाला लेकिन बिक चुका मीडिया जिस तरह किसी उम्मीदवार या पार्टी को जिताने में लगे रहता है, उसके दावों को भी नतीजों के साथ मिलाकर लिखा जाना चाहिए ताकि वैसे मीडिया की आने वाले बरसों में साख तय हो सके।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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