संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : राज्यों के न बदलने वाले रूझान देखकर नतीजों पर एक नजर, और मतलब...
10-Mar-2022 5:17 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  राज्यों के न बदलने वाले रूझान देखकर नतीजों पर एक नजर, और मतलब...

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजे अधिक चौंकाने वाले नहीं हैं। दो दिन पहले आए एक्जिट पोल के अनुमान के मुताबिक ही अभी दोपहर होने तक रूझान चल रहा है, और यह रूझान बदलते नहीं दिख रहा है। मतलब यह कि मतगणना के शुरू के चार घंटों में तस्वीर साफ हो चुकी है, भाजपा अपने सारे राज्य बचाते हुए दिख रही है, और कांग्रेस इन पांच राज्यों में से अपने हाथ का पंजाब बहुत बुरी तरह खोते दिख रही है। इन नतीजों में इन दो बातों के अलावा जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वह पंजाब में कांग्रेस, अकाली, भाजपा, सबका सूपड़ा साफ हो गया है, और अकेले आम आदमी पार्टी ने पूरे राज्य में परचम फहरा दिया है। उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में कुछ नुकसान के साथ ही सही भाजपा सत्ता पर काबिज बनी रहेगी, और अगले पांच बरस यही बात मायने रखती है। अगर मणिपुर, गोवा में भी भाजपा पर्याप्त आगे नहीं रहती, उत्तराखंड में उम्मीद लगाए बैठी कांग्रेस से दुगुने से भी अधिक आगे नहीं रहती, तो उत्तरप्रदेश में सत्ता पर वापिसी की वाहवाही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हिस्सेदार होते। लेकिन उत्तरप्रदेश में भाजपा पांच दर्जन से अधिक सीटें खोते दिख रही है, इसलिए वहां योगी के किसी करिश्मे की बात कहना गलत होगा, और चार राज्यों में भाजपा की वापिसी से एक ही बात साबित होती है कि यह मोदी के नाम पर मिला हुआ वोट है। जहां तक पंजाब का सवाल है तो अपनी एक सबसे पुरानी भागीदार अकाली दल से नाता टूटने के बाद वहां भाजपा का यह पहला चुनाव था, और हैरानी की बात यह है कि उसे अकाली दल से थोड़ी ही कम सीटों पर बढ़त दिख रही है। मतलब यह कि अकालियों के खिलाफ लडक़र भी भाजपा पांव जमाए हुए है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो सभी पांच राज्यों में सीटों की शक्ल में उसकी जमीन खिसक जाने, या न जीत पाने के स्पष्ट सुबूत हैं, और अपने बारे में दीवार पर लिक्खी इस हकीकत को कांग्रेस देखना चाहे या नहीं, यह उसकी अपनी पसंद का सवाल है।

इन पांच राज्यों में से सबसे मुश्किल नतीजे पंजाब के होने थे क्योंकि वहां पिछले चुनाव में पैर मजबूती से जमाने के बाद भी जीत से कोसों दूर रहने वाली आम आदमी पार्टी का मुकाबला इस बार कांग्रेस के एक दलित मुख्यमंत्री से था, बसपा के साथ मिलकर लड़ रहे अकालियों से था, भाजपा से था, और किसान उम्मीदवारों से था। राजनीतिक विश्लेषक नौबत को आप के पक्ष में तो मानते थे, लेकिन पांच कोनों में बंटे हुए मुकाबले में नतीजों को लेकर कुछ असमंजस था। लेकिन जैसे-जैसे मतदान हुआ, वैसे-वैसे आप की मजबूत संभावनाएं सामने आ चुकी थीं। अभी दोपहर 12 बजे तक रूझान बताते हैं कि बाकी तमाम पार्टियों को हाशिए पर धकेलकर आम आदमी पार्टी तीन चौथाई बहुमत से सरकार बनाने जा रही है। देश की राजनीति में शायद आज की तारीख में यह अकेला मामला है जब गैरकांग्रेस, गैरभाजपा कोई पार्टी दो राज्यों में सरकार चलाएगी। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल अगले आम चुनाव तक किसी विपक्षी गठबंधन में पंजाब की बदौलत एक अधिक वजनदार नेता गिने जाएंगे। पंजाब में कांग्रेस, अकाली, और भाजपा का केजरीवाल ने वही हाल किया है जो कि दिल्ली में किया था।

अब उत्तरप्रदेश की बात करें तो धार्मिक ध्रुवीकरण, जातिगत समीकरण, गरीबों को दिए गए सीधे फायदे जैसी बातें तो थीं, लेकिन इनके साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस बड़े पैमाने पर जितना हमलावर चुनाव प्रचार किया, उससे यह भी कहा जा सकता है कि योगी के नाम पर और मोदी के चेहरे से यह चुनाव जीता गया है। पंजाब की हार भाजपा के लिए बहुत मायने नहीं रखती, क्योंकि वह वहां सत्ता पर भी नहीं थी, उसकी सत्ता पर आने की कोई उम्मीद भी नहीं थी। लेकिन कांग्रेस के हाथ से एक संपन्न राज्य छिन जाने की नौबत भाजपा के लिए राहत की बात है, और जब भाजपा और कांग्रेस की तुलना होती है तो आज यह संपन्न और विपन्न की तुलना सरीखी है, और जब 2024 के आम चुनाव के लिए जमीन अभी से तैयार हो रही है, तो भाजपा और कांग्रेस के बीच की यह तुलना इन चुनावों से बढक़र मायने रखती है। इन चुनावों के बाद एनडीए के मुकाबले बनने वाले किसी संभावित गठबंधन में कांग्रेस का वजन बहुत कम रह जाएगा, और ऐसी हालत में हो सकता है कि एनडीए के मुकाबले एक के बजाय दो गठबंधनों की नौबत आ जाए, और वह मोदी के लिए 2024 में सबसे सहूलियत की बात होगी।

देश के कोई भी राजनीतिक विश्लेषक इन पांच राज्यों के चुनावों को महज इन्हीं तक सीमित नहीं देख रहे हैं, बल्कि इन्हें 2024 के आम चुनावों के पहले की एक झलक के रूप में भी देख रहे हैं। और जहां तक उत्तरप्रदेश में कांग्रेस को अब तक 403 में से 2 सीटों पर लीड मिलते दिख रही है, पिछले विधानसभा चुनाव से वह 5 सीटें खोते दिख रही हैं, तो ऐसा लगता है कि वहां के वोटरों ने भाजपा गठबंधन और समाजवादी पार्टी गठबंधन के अलावा किसी और को वोट देना वोट खराब करने सरीखा मान लिया था, और बसपा और कांग्रेस दो-तीन सीटों पर आगे हैं जो कि पिछले चुनावों की उनकी सीटों से भी काफी कम हैं। अभी अलग-अलग राज्यों में हासिल वोटों का प्रतिशत सामने आने में कुछ घंटे बाकी है, लेकिन कुल मिलाकर तस्वीर यह लगती है कि भाजपा ही पंजाब छोड़ बाकी राज्यों में विजेता बनकर उभरी है, और पंजाब में भी उसने अपनी सीटें बढ़ाई हैं, जबकि उसके  पुराने भागीदार अकाली दल ने सीटें खोई हैं, और कांग्रेस ने तो पूरी सरकार ही खो दी है।

हिन्दुस्तान की राष्ट्रीय राजनीति में जिन लोगों को जिंदा रहना है, और प्रासंगिक रहना है, उन्हें हवा-हवाई दावे छोडक़र जमीनी हकीकत को मानना होगा, और मोदी-भाजपा को कम आंकना बंद करना होगा। हमने कल ही इसी जगह पर लिखा था कि मीडिया के जिन लोगों और राजनीति-सामाजिक क्षेत्र के जिन लोगों ने इन राज्यों को लेकर चुनावी भविष्यवाणियां की थीं, वे नतीजे आने के बाद आज शाम अपने उगले हुए शब्दों को सामने रखकर अपनी सफाई दें, राजनीतिक दलों को भी ऐसा करना चाहिए, तभी जाकर वे भविष्य के किसी चुनाव में प्रासंगिक साबित होने की संभावना रख सकेंगे। फिलहाल पूरी तरह से विविधता वाले इन पांच राज्यों में कामयाबी के लिए मोदी और भाजपा बधाई के हकदार हैं, बाकी लोग अपनी-अपनी सजा खुद तय करें, अपना प्रायश्चित खुद तय करें।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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