संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पंजाब में जीतना तो आप के लिए छोटी चुनौती थी, बड़ी चुनौती पंजाब को चलाना है...
14-Mar-2022 5:52 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  पंजाब में जीतना तो आप के  लिए छोटी चुनौती थी, बड़ी  चुनौती पंजाब को चलाना है...

पंजाब में आम आदमी पार्टी की ऐतिहासिक जीत और जनता द्वारा कांग्रेस सरकार की बुरी तरह बर्खास्तगी लोगों को हैरान कर गई है। इसके साथ-साथ जिस तरह वहां अकाली दल और भाजपा किनारे कर दिए गए हैं, इन तीनों पार्टियों के सारे के सारे बड़े नेता जनता ने हरा दिए हैं, वह भी चौंकाने वाली नौबत है। बहुत से लोगों को आम आदमी पार्टी की सरकार आते दिख रही थी, लेकिन वह ऐसे अभूतपूर्व और ऐतिहासिक बहुमत के साथ आएगी इसका अंदाज कई लोगों को नहीं था, या बेहतर यह कहना होगा कि शायद किसी को नहीं था। वहां पर लोग पांच कोने का संघर्ष देख रहे थे जिनमें ऊपर लिखी गई चारों पार्टियों के अलावा किसान उम्मीदवार भी एक ताकत माने जा रहे थे, लेकिन जनता ने खुलकर दो बातें साफ कीं, एक तो यह कि उसने कांग्रेस, भाजपा और अकाली, पंजाब में सत्तारूढ़ रही इन तमाम पार्टियों को पूरी तरह खारिज कर दिया, और आम आदमी पार्टी के नारे के मुताबिक एक मौका केजरीवाल को दिया है।

अब आप की सरकार पंजाब में चुनौतियों के एक टोकरे के साथ काम शुरू कर रही है। पंजाब की अर्थव्यवस्था खराब हालत में है, बेरोजगारी आसमान छू रही है, नौजवानों में नशा पंजाब के हर दूसरे-चौथे घर को बर्बाद कर चुका है, उद्योग लग नहीं रहे हैं, और किसान कानून वापिस होने के बावजूद पंजाब में किसानों की यह हकीकत तो दर्ज है ही कि वहां देश में सबसे अधिक किसान आत्महत्याएं हो रही हैं। इसके साथ-साथ पंजाब के बारे में यह बात भी कही जाती है कि वहां के लोग अपनी सरकार पर दिल्ली से राज पसंद नहीं करते। ऐसे में दिल्ली से चल रही आम आदमी पार्टी का जीता हुआ पंजाब राज्य से कितना चलेगा और दिल्ली से कितना, इसे लेकर भी लोगों में कुछ हैरानी बनी हुई है। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि दिल्ली में स्कूल और अस्पताल नाम की जिन दो सहूलियतों को लेकर आम आदमी पार्टी अपनी पीठ थपथपाती है, वे दोनों चीजें तो कायदे से म्युनिसिपल के करने की रहती हैं, और राज्य सरकार पंजाब में इन बातों को अपनी पूरी कामयाबी नहीं बता पाएगी, दिल्ली में बात कुछ और थी।

दिल्ली को कुछ समझे बिना आम आदमी पार्टी के कामकाज को समझना मुमकिन नहीं है। दिल्ली की सरकार को पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल नहीं है। उसके पास न पुलिस है, और न जमीनों का हक। दिल्ली के सारे बड़े प्रोजेक्ट केन्द्र सरकार के शहरी विकास मंत्रालय के अधीन आते हैं, और दिल्ली की अधिकतर दूसरी दिक्कतों और संभावनाओं के लिए राज्य सरकार न जिम्मेदार है, न अधिकारसंपन्न। इसके अलावा दिल्ली में स्थानीय म्युनिसिपल और दिल्ली विकास प्राधिकरण, राजधानी क्षेत्र विकास प्राधिकरण जैसे दूसरे संगठन भी हैं जो कि राज्य सरकार से परे काम करते हैं, और वहां राज्य सरकार की संभावनाएं, उसकी स्वायत्तता, सब लेफ्टिनेंट गवर्नर के मातहत रहती हैं, और केजरीवाल सरकार किसी आईएएस का तबादला भी करने का हक नहीं रखती है। बात-बात में उसे एलजी की इजाजत लेनी पड़ती है। इसलिए केजरीवाल सरकार दिल्ली को एक बड़े म्युनिसिपल की तरह चला रही थी, और केजरीवाल एक म्युनिसिपल कमिश्नर अफसर की तरह काम कर रहे थे। पंजाब एक अलग मामला है, और दिल्ली का प्रयोग पंजाब में बहुत ही सीमित उपयोग का है।

पंजाब में आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री बन रहे भगवंत मान का सरकार चलाने का कोई तजुर्बा नहीं है, और उन्हें विरासत में एक भयानक भ्रष्ट और घाघ नौकरशाही मिल रही है, जिससे काम लेना एक बड़ी चुनौती रहेगी। केजरीवाल के साथ म्युनिसिपल जैसी दिल्ली चलाते भी यह सहूलियत थी कि वे आईआईटी से पढक़र निकले हुए इंजीनियर थे, और भारत सरकार में एक बड़ी नौकरी करते हुए पहले सामाजिक आंदोलन, और फिर राजनीति में आए थे। उनकी पत्नी भी इसी बड़ी सरकारी नौकरी में थीं। यानी उनके पास सरकार के कामकाज का कुछ तजुर्बा था, और वह सहूलियत भगवंत मान को हासिल नहीं है। दिल्ली और पंजाब की कई दिक्कतों पर एक-दूसरे से टकराव की नौबत भी है। पंजाब में किसानों को फसल के ठूंठ, पराली, जलाने की मजबूरी है, और दिल्ली लगातार इसका विरोध करते आई है कि इससे दिल्ली की हवा दमघोंटू और जहरीली हो जाती है। अब दोनों जगह आम आदमी पार्टी की सरकार रहने से इसका क्या होगा, यह भी सोचने की बात है। पंजाब की शक्ल में आम आदमी पार्टी को अपने इतिहास में पहली बार एक पूर्ण राज्य चलाने का मौका मिल रहा है, और उसकी दिल्ली की कामयाबी का पैमाना इस राज्य में काम नहीं आने वाला है। पंजाब की चुनौतियां भी अलग हैं, और संभावनाएं भी। हो सकता है कि आप सरकार पंजाब में दिल्ली से अधिक कामयाब भी हो जाए, या बहुत हद तक फ्लॉप भी हो जाए। पंजाब में सरहद पाकिस्तान से लगी हुई है, और वहां से नशे की तस्करी के अलावा आतंक का खतरा भी लगातार बने रहता है। पहली बार पुलिस सम्हालने जा रही आम आदमी पार्टी के सामने यह सरहद भी चुनौती रहेगी क्योंकि इसके किनारे की बहुत चौड़ी पट्टी राज्य की पुलिस के अधिकार क्षेत्र से परे बीएसएफ के हाथ रहती है, और यह राज्य और केन्द्र के बीच टकराव का एक मुद्दा रह सकती है, ठीक उसी तरह जिस तरह कि केजरीवाल सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में सुप्रीम कोर्ट तक जाकर दिल्ली सरकार से टकराव के कई प्रयोग किए थे, और उन सबमें उसकी हार हुई थी। दिल्ली में चुनौतियां भी सीमित थीं, और संभावनाएं भी, पंजाब में ये दोनों असीमित हैं, और विरासत में एक बदहाल राज्य मिला है।

पंजाब को आम आदमी पार्टी की दिल्ली की पहली जीत के बाद का सबसे महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इससे इस पार्टी की देश भर की संभावनाएं भी खुलती हैं, और वह कांग्रेस और भाजपा के एक विकल्प के रूप में भी कहीं-कहीं कोशिश कर सकती है, यह एक और बात है कि बहुत से राजनीतिक विश्लेषक भी इस पार्टी को संघ परिवार का एक मुखौटाधारी संगठन मानते हैं, और यह मानते हैं कि आखिर में जाकर यह किसी चुनौती की नौबत रहने पर भाजपा के ही हाथ मजबूत करने का काम करेगी। भाजपा को आप की पंजाब जीत इस हिसाब से भी बुरी नहीं लग रही होगी कि उसने कांग्रेस की सरकार को बेदखल किया है, और भाजपा से अलग हुए अकालियों को भी मटियामेट कर दिया है। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के साथ आम आदमी पार्टी का किस तरह का तालमेल रहेगा, इस पर भी लोगों की निगाह रहेगी, हो सकता है कि यह तालमेल तुरंत शुरू न हो, और भाजपा के किसी नाजुक मौके के लिए बचाकर रखा जाए। फिलहाल आम आदमी पार्टी के सामने पंजाब दिल्ली के मुकाबले कई गुना अधिक बड़ी चुनौती है, और उसे केजरीवाल जैसा सरकारी कामकाज का जानकार भी हासिल नहीं है। आगे-आगे देखें होता है क्या?

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)
 

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