संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : यूक्रेन पर रूसी हमले पर बाकी दुनिया की प्रतिक्रिया उनके अपने फायदे से उपजी
16-Mar-2022 5:46 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  यूक्रेन पर रूसी हमले पर बाकी दुनिया की प्रतिक्रिया उनके अपने फायदे से उपजी

यूक्रेन पर रूस के हमले पर दुनिया बंटी हुई है। हिन्दुस्तान और चीन जैसे कई देश अपनी-अपनी अलग-अलग वजहों से इस मामले पर शांत हैं, पश्चिमी देश और योरप रूस के खिलाफ है, और बाकी देशों का भी अलग-अलग रूख है। खुद अमरीका के भीतर यूक्रेन को लेकर अमरीकी नीति बंटी हुई है, और कुछ प्रमुख लोगों का यह मानना है कि अमरीकी सरकार वहां जो कर रही है वह नाकाफी है। लेकिन रूस के मुहाने पर बैठे हुए योरप के नाटो देश अधिक खतरा उठाने की हालत में नहीं दिख रहे हैं क्योंकि अगर यह युद्ध बढ़ेगा, और रूस अगर दूसरे देशों पर भी जवाबी हमला करेगा तो वह द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद का सबसे बड़ा युद्ध हो जाएगा, और वह तीसरा विश्वयुद्ध भी हो सकता है। ऐसे में सारे देश चौकन्ना होकर काम कर रहे हैं, यूक्रेन को नागरिक मदद कर रहे हैं, कुछ फौजी मदद भी भेज रहे हैं, लेकिन न तो अमरीका और न ही नाटो देश अपनी फौज वहां भेज रहे हैं। दरअसल किसी भी देश की फौज वहां पहुंचने का मतलब रूस को इस बात का हक देना हो जाएगा कि वह उन देशों पर भी हमला कर सके। तनाव को इतना बढऩे देने से सारे लोग कतरा रहे हैं।

लेकिन आज नाटो और अमरीका की तरफ से जो फौजी हथियार यूक्रेन को दिए जा रहे हैं, उनके खतरे को समझना होगा। आज बाहर से कोई फौजी मदद मिले बिना यूक्रेन रूस के सामने जल्दी कमजोर पड़ता, और वह या तो हार जाता, या कोई संधि विराम होता। इन दोनों ही स्थितियों में यूक्रेन की जनता मरने से बचती, और यूक्रेनी शहरों की जो भयानक तबाही अभी चल रही है, वह भी थमती। यूक्रेन अपनी ताकत से लडऩे लायक रहता तो लड़ता या फिर रूस के सामने समर्पण कर देता। दोनों तरफ की मौतें थमतीं, और यूक्रेन के ढांचे की तबाही भी थमती। लेकिन अमरीका और योरप जिस तरह का फौजी साज-सामान यूक्रेन को भेज रहे हैं उसका एक मकसद यह भी दिखता है कि वे यूक्रेन को इस मोर्चे पर डटाए रखना चाहते हैं ताकि उसके हाथों रूस की जितनी तबाही हो सके, उतनी हो जाए। पश्चिम के देश रूस पर लगाए आर्थिक प्रतिबंधों के असर का भी इंतजार कर रहे हैं, जिसमें महीनों लग सकते हैं। लेकिन इस बीच वे रूस को कमजोर भी करना चाहते हैं, इसलिए वे बिना अपनी फौजों को भेजे सिर्फ यूक्रेन को मोर्चे पर डटाए चल रहे हैं। रूस का नुकसान करने की नीयत पूरी करने के लिए नाटो और अमरीका यूक्रेन के जनता और इस देश को कोलैटरल डैमेज बना रहे हैं। नाटो और अमरीका के पास इस बात का पूरा अंदाज है कि इस मोर्चे के जारी रहने से रोज दोनों तरफ कितनी मौतें हो सकती हैं, यूक्रेन का कितना नुकसान हो सकता है, लेकिन रूसी फौजों का नुकसान, और रूसी अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए नाटो और अमरीका इस जंग को चलने देना चाहते हैं।

यह बात कुछ लोगों को विरोधाभासी लग सकती है क्योंकि यूक्रेन से निकल रहे, और निकलने वाले दसियों लाख शरणार्थियों का बोझ योरप के देशों पर ही पडऩे वाला है, लेकिन वह एक नागरिक बोझ रहेगा, और रूस को फौजी और आर्थिक रूप से कमजोर करने की रणनीति एक अलग बात है। आज अगर नाटो-अमरीका की हथियारों की यह मदद नहीं रहती, तो शायद यूक्रेन की जंग कुछ जल्द खत्म हो गई रहती। किसी की मदद करने का यह अनोखा तरीका है जिसमें उसके अधिक दूर तक नुकसान पाने की गारंटी हो रही है। आज चारों तरफ इस मुद्दे पर अपनी कोई राय बनाने के पहले हर सरकार यह सोच रही है कि इस जंग से उसे क्या नफा या नुकसान हो रहा है। अब जैसे पंजाब की नई सरकार को लेकर एक नई अटकल सामने आई है कि दुनिया में गेहूं का दाम दो से चार गुना तक बढ़ चुका है क्योंकि रूस और यूक्रेन गेहूं के सबसे बड़े निर्यातक थे, और ऐसे हाल में पंजाब की नई सरकार को चाहिए कि वह दुनिया में गेहूं निर्यात करके एक मोटा मुनाफा कमाने की कोशिश करे ताकि उसके किसानों को फायदा हो सके। ऐसा हाल पेट्रोलियम, गैस, खाने का तेल, कई तरह के खनिज, बहुत किस्म की धातुओं को लेकर भी है कि रूस और यूक्रेन से निर्यात ठप्प होने पर किस-किस देश की क्या नई संभावना बनेगी? सोचा तो यहां तक जा रहा है कि रूस से पेट्रोलियम बहिष्कार जारी रखने के लिए क्या दुनिया ईरान पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों को ढीला करे, और क्या ईरानी पेट्रोलियम से दुनिया की कमी को पूरा किया जा सके? दो देशों के बीच जंग में उनका सीधा नुकसान जो भी हो रहा हो, बाकी दुनिया को कई किस्म का नुकसान भी हो रहा है, और उसकी भरपाई के लिए भी उन्हें कई किस्म के फायदे कमाने के रास्ते निकालने का हक है।

लोगों को यह भी लग रहा है कि रूस अगर एक वक्त के सोवियत संघ का अपना हिस्सा रहा हुआ यूक्रेन फिर से कब्जा कर पाता है, तो क्या उससे ताईवान पर कब्जा करने की चीन की बहुत पुरानी, और हमेशा जिंदा हसरत को एक नई ताकत मिलेगी? क्या इससे हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच कश्मीर के कुछ विवादित हिस्सों को लेकर एक नए तनाव की हसरत खड़ी हो सकेगी? और आज लोगों को यह भी लग रहा है कि इस तनाव के बीच रूस और चीन के बीच संबंध जितने बेहतर हो रहे हैं, क्या वह अमरीका और उसके साथी देशों के लिए एक नया खतरा बन सकता है? ऐसे सौ किस्म के सवाल सौ देशों के सामने है, और वे अपने-अपने हितों को देखते हुए यह सोचते हैं कि रूस की हार या रूस की जीत में से उनका फायदा किसमें है? और रूस का अगर नुकसान करना उनके फायदे में है तो वह अपने लोगों की जिंदगी दांव पर लगाए बिना कैसे किया जा सकता है? आज की एक चर्चा यह भी है कि रूस में सत्ता के कुछ खरबपति कारोबारी लोगों की भाड़े के सैनिकों की निजी फौज को भी यूक्रेन भेजा गया है ताकि वे राष्ट्रपति और उनके परिवार को मार सकें। रूसी सरकार ऐसी किसी निजी फौज के अस्तित्व से हमेशा इंकार करती रही है, लेकिन सीरिया की जंग से लेकर कांगो के फौजी मोर्चे तक ये भाड़े के रूसी सैनिक कारोबारियों द्वारा भेजे जाते रहे हैं, और वे रूसी सरकार की रणनीति में साथ देने का काम करते रहे हैं। इसलिए ऐसी बहुत सारी जानकारी यह बताती है कि रूस और यूक्रेन की यह जंग, या रूस का यूक्रेन पर यह हमला बाकी दुनिया के लिए शतरंज की बिसात पर चाल चलने जैसा हो गया है, और इस मुद्दे का अतिसरलीकरण करना ठीक नहीं है।
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