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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : आबादी में छोटा सा छत्तीसगढ़ खुदकुशी में इतना आगे क्यों?
20-Mar-2022 4:13 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  आबादी में छोटा सा छत्तीसगढ़ खुदकुशी में इतना आगे क्यों?

होली के रंगों के बाद आज कामकाज शुरू होने को था कि पहली खबर ही बहुत खराब मिली। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के एक गांव में पेड़ पर एक नाबालिग जोड़े ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। लोगों का कहना है कि दोनों एक ही समुदाय के थे, और आपस में प्रेम करते थे, शादी करना चाहते थे, घरवालों की ओर से शादी की मंजूरी भी मिल चुकी थी, और इस बीच दोनों ने फांसी लगा ली। दोनों ही स्कूल में पढ़ते थे। इस मामले में फांसी कुछ अटपटी बात इसलिए लग रही है कि दोनों एक ही जाति के थे, और परिवार की तरफ से शादी की मंजूरी मिली हुई थी। आमतौर पर अलग-अलग जाति या धर्म के लडक़े-लड़कियों के बीच प्रेम होने पर परिवार और जात बिरादरी दुश्मन बन जाते हैं, और मोहब्बत की किस्मत दीवार में चुुन दी जाती है। ऐसे भी प्रेमीजोड़े की आत्महत्या हर कुछ दिनों में कहीं न कहीं होती है। हिन्दुस्तान में धर्म और जाति का, आर्थिक ताकत की अहंकार का, ओहदे के घमंड का हाल यह है कि मां-बाप अपने बच्चों की मौत बनकर सामने आते हैं, या बच्चे उनके हुक्म को अनसुना करें, तो वे अपनी तथाकथित इज्जत के लिए अपने हाथों अपनी औलादों को मार डालते हैं।

इस मामले के दो बिल्कुल अलग-अलग पहलू हैं, एक तो भारतीय समाज में प्रेम की संभावनाओं का, और दूसरा किसी भी तरह की वजह से आत्महत्या का। इन दोनों पर अलग-अलग गौर करना जरूरी है। जिस राजनांदगांव जिले से ऊपर की यह खबर आई है उसी जिले के एक दूसरे गांव में होली के दिन गर्भवती नवविवाहिता अपने मायके जाना चाहती थी, और पति को यह आपत्ति थी कि कुछ दिन पहले ही वह मायके से लौटी थी, इस पर बहस हुई, और पत्नी ने मिट्टी तेल छिडक़कर आग लगा ली, वह मर गई, और बचाते हुए पति झुलस गया। इस किस्म के घरेलू तनाव से आत्महत्या के भी बहुत से मामले सामने आते हैं। छत्तीसगढ़ में ही कल ही आत्महत्या की कुछ और खबरें भी आई हैं।

शहरीकरण के साथ-साथ जब अपने परिवारों से परे लोगों का आर्थिक सशक्तिकरण हो रहा है, तो लोग अपनी मर्जी से शादी का हौसला भी जुटा पा रहे हैं। शादी के बिना भी प्रेम की संभावनाएं बढ़ती चल रही हैं क्योंकि पढ़ाई, खेलकूद, दूसरे तरह की गतिविधियों के चलते हुए लडक़े-लड़कियों को बाहर मिलने के मौके बहुत मिल रहे हैं, और उससे दोस्ती, प्रेम, और शादी की गुंजाइश भी बढ़ते चल रही है। इससे जाति व्यवस्था भी टूट रही है, और दकियानूसी समाजों में गोत्र को लेकर जो हिंसक जिद चली आती है, वह भी खत्म हो रही है। धर्मों के बीच भी अलगाव शहरीकरण की वजह से कम हो रहा है, और अंतरजातीय और अंतरधर्मीय शादियों से सामाजिक विभाजन भी घट रहा है। इसकी रफ्तार बहुत धीमी है, लेकिन यह सिलसिला शहरीकरण और आर्थिक सशक्तिकरण के साथ-साथ आगे बढ़ रहा है। आज दिक्कत यह है कि हिन्दुस्तान की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा शहरों में नहीं है, और जो हिस्सा शहरों में है वह हिस्सा भी मां-बाप के काबू वाले समाज का अधिक है, इसलिए प्रेम विवाह के पहले हिंसा अधिक होने लगती है। ऐसे में निराश प्रेमी-प्रेमिका खुदकुशी पर उतारू हो जाते हैं क्योंकि पुलिस या समाज के बाकी लोग भी जाति व्यवस्था को कायम रखने पर आमादा रहते हैं।

प्रेम-संबंधों से परे भी हिन्दुस्तान में आत्महत्याओं के आंकड़े बढ़ते चले जा रहे हैं। नेशनल क्राईम रिकॉडर््स ब्यूरो की 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ देश में आत्महत्याओं के मामले में तीसरे नंबर पर है, यहां पर हर बरस एक लाख आबादी पर 26.4 लोग खुदकुशी करते हैं, जो कि राष्ट्रीय आत्महत्या-औसत 11.3 प्रति लाख से ढाई गुना है। 2018 में छत्तीसगढ़ देश में पांचवें नंबर पर था, 2019 में चौथे नंबर पर आ गया, और 2020 में तीसरे नंबर पर। छत्तीसगढ़ के दुर्ग-भिलाई, और रायपुर देश में आत्महत्याओं के मामले में देश में तीसरे और चौथे नंबर वाले शहर हैं। जिस प्रदेश में सरकार ने किसानों को इतनी सहूलियत दी हुई है वहां पर इतने लोग क्यों जान देते हैं, यह एक सामाजिक अध्ययन का विषय होना चाहिए। यहां पर इस वैज्ञानिक तथ्य को भी समझना जरूरी है कि कुछ आत्महत्याओं का कारण अनुवांशिकी भी होता है, अगर परिवार में पहले किसी ने खुद की जान ली है, तो इसका खतरा अधिक रहता है कि बाद में भी परिवार में कोई ऐसा करे।

आत्महत्याओं की रोकथाम की सामाजिक जागरूकता में लगे हुए लोगों ने यह पाया है कि इसकी बहुत सी बिल्कुल अलग-अलग वजहें हो सकती हैं। असफल प्रेम से लेकर इंटरनेट गेम्स से प्रोत्साहित होकर भी लोग खुदकुशी करते हैं। छत्तीसगढ़ से लेकर पंजाब तक अलग-अलग बहुत से किसानी वाले राज्यों में किसानों की आत्महत्या हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है, और देश में हरित क्रांति में सबसे अधिक योगदान देने वाले पंजाब में भी किसानों की आत्महत्या हर बरस सैकड़ों की संख्या में होती है, और इस आंकड़े को किसान आंदोलनकारी पूरी तरह फर्जी करार देते हैं। फिर भी देश के सरकारी आंकड़े पिछले कई बरसों से हर बरस दस हजार से अधिक किसानों की आत्महत्या दिखा रहे हैं। हिन्दुस्तान में असफल प्रेम या अवैध कहे जाने वाले संबंधों के तुरंत बाद किसानों की आत्महत्या के आंकड़े आते हैं। लेकिन समाज और परिवार को अपने बीच के लोगों की फिक्र करनी चाहिए जो कि तनाव से गुजर रहे हैं।

जानकार लोगों का यह मानना है कि आत्महत्या करने वाले लोग काफी सोचने-विचारने के बाद ऐसा करते हैं, और उनके व्यवहार से कई बार ऐसे संकेत मिलते हैं कि वे तनाव से गुजर रहे हैं, और उनका तनाव बढ़ते चल रहा है। कई बार उनके मुंह से निकलता है कि जिंदगी में क्या रखा है, कभी उनके बर्ताव में फर्क आ जाता है, कभी वे अपने चहेते सामान लोगों में बांट देते हैं, कभी किसी के सामने अपनी जिंदगी को बोझिल बताते हैं, कभी उनकी भूख गायब हो जाती है, या नींद खत्म हो जाती है, कभी वे अनजानी आवाजें सुनाई पडऩे की शिकायत करते हैं। ऐसी तमाम बातों पर आसपास के लोगों को नजर रखनी चाहिए, और उनका मानसिक उपचार करवाना चाहिए। इसके साथ-साथ परिवार और समाज के लोग, निराश लोगों के दायरे के लोग भी उनका हौसला बंधाने का काम कर सकते हैं। आज एक दिक्कत यह भी है हिन्दुस्तान में मानसिक इलाज की बात करने पर, या परामर्श के लिए ले जाने पर लोग उनके लिए लापरवाही और हिंसा से पागल जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने लगते हैं।

आज हमारे इस अखबार सहित हर किस्म के मीडिया में आत्महत्या की खबरें रोज छपती हैं, और दुनिया भर के रिसर्च में यह पाया गया है कि आत्महत्याओं को बढ़ा-चढ़ाकर छापना या दिखाना, कई और लोगों को ऐसा ही करने के लिए प्रेरित करता है। यही वजह है कि एक आत्महत्या की खबर कगार पर खड़े हुए कई दूसरे लोगों को भी वैसा करने के लिए प्रेरित करती हैं, या उन्हें उसका हौसला देती हैं। इसे नकल करते हुए की गई आत्महत्या कहते हैं। इसके ठीक उल्टे यह है कि अगर मीडिया में सकारात्मक खबरें आती हैं, ऐसी सच्ची कहानियां आती हैं कि कैसे लोग आत्महत्या की कगार पर पहुंचकर वापिस लौटे, और फिर जिंदगी में कामयाब हुए, तो उसके असर से कई संभावित आत्महत्याएं रूकती भी हैं।

इसलिए परिवार और समाज से लेकर मीडिया तक, सबको अपने-अपने किरदार को बेहतर तरीके से समझने की जरूरत है ताकि वे आत्महत्या को बढ़ावा देने के जिम्मेदार न बनें, और उसकी रोकथाम में मदद कर सकें।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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