संपादकीय

दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : जनसुनवाई में नक्सल-हत्या की तरह यूपी-एमपी में हिन्दू बुलडोजरों का फुटपाथी इंसाफ
14-Apr-2022 12:40 PM
दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : जनसुनवाई में नक्सल-हत्या की तरह यूपी-एमपी में हिन्दू बुलडोजरों का फुटपाथी इंसाफ

उत्तरप्रदेश के चुनाव में बुलडोजर भी एक मुद्दा था, और सत्तारूढ़ मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की तरफ से उनकी भाजपा ने बार-बार यह तर्क दिया कि अपराधियों के अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलाए जाएंगे। उत्तरप्रदेश में भाजपा को जितनी बड़ी जीत मिली है, उसके चलते हुए योगी आदित्यनाथ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के मुकाबले बहुत बड़े कद के नेता हो गए हैं, और मानो योगी आदित्यनाथ की यह बड़ी जीत बाकी भाजपा मुख्यमंत्रियों के लिए बड़ी चुनौती भी बन गई है। कर्नाटक के भाजपा मुख्यमंत्री लगातार हिन्दुत्व के फतवों को बढ़ाते जा रहे हैं, जिसे हमने इसी जगह हमलावर हिन्दुत्व की प्रयोगशाला लिखा है। अब मध्यप्रदेश में बुलडोजर का इस्तेमाल इस साम्प्रदायिक अंदाज में हो रहा है कि जिसे देखकर बुलडोजर बनाने वाले को हैरानी हो रही होगी कि उसकी बनाई मशीन में भी साम्प्रदायिकता की संभावना कैसे ढूंढ निकाली गई है। हाल ही में रामनवमी और दूसरे धार्मिक जुलूसों में जिस तरह हिन्दू-मुस्लिम टकराव मध्यप्रदेश में सामने आया है, उसके बाद प्रदेश सरकार ने मुस्लिम समुदाय के लोगों को हमलावर करार देते हुए, पथराव के वीडियो पर निष्कर्ष निकालते हुए उनके मकान-दुकान बुलडोजर से जमीन में मिला दिए हैं। एमपी के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने एक टीवी चैनल, एनडीटीवी, के सवाल के जवाब में जिस तरह साफ-साफ कहा कि जो लोग वीडियो में हमला करते दिख रहे हैं वे आरोपी कहां से हो गए, वे तो अपराधी हैं, और सरकार ऐसे अपराधियों के निर्माण गिरा रही है। हालांकि उन्होंने यह कहा है कि जो निर्माण अवैध पाए गए हैं, उन्हीं को गिराया जा रहा है, लेकिन सवाल यह भी उठता है कि क्या सिर्फ मुस्लिमों के निर्माण अवैध हैं, या उनमें से कुछ लोग पथराव करते कैमरों पर कैद हुए हैं तो उनके मकान-दुकान गिराना एक लोकतांत्रिक तरीका है? यह सवाल छोटा नहीं है क्योंकि किसी के किसी जुलूस पर हमलावर होने से छांटकर उसी के मकान-दुकान को गिराया जाए, तो यह साफ-साफ अदालत के बाहर एक फर्जी अदालती इंसाफ के अलावा कुछ नहीं है। ऐसा ही इंसाफ बस्तर के जंगलों में नक्सली करते हैं जहां वे किसी को पुलिस का मुखबिर साबित करते हुए उसका गला काट देते हैं, और वे यह काम एक भीड़ भरी तथाकथित जनसुनवाई के बीच करते हैं, ताकि बाकी लोगों तक भी धमकी पहुंच जाए। यूपी और एमपी में बुलडोजर के रास्ते दिया जा रहा फैसला कुछ इसी किस्म का है। इसके बाद बाकी राज्यों को भी चाहिए कि वे भी अपने इलाकों में बुलडोजर खरीदें, और अपने को नापसंद लोगों के साथ इसी तरह का इंसाफ कर डालें। ऐसा लगता है कि हिन्दुस्तान की छोटी अदालतों में जो करोड़ों मामले चल रहे हैं, उनकी फाइलों के ढेर को बुलडोजर से ही धकेलकर इस तरह कम किया जा सकता है।

चूंकि उत्तरप्रदेश की योगीपीठ ने ऐसा बुलडोजरी इंसाफ कर दिखाया है, और इसके बाद वह बहुसंख्यक वोटों के आधार पर चुनाव जीतकर भी आ गई है इसलिए भारत की राजनीति अब वोटों की गिनती के बजाय धार्मिक जनगणना की तरफ बढ़ती हुई दिख रही है। ऐसे में जिस तबके की गिनती कम है, उस तबके पर बुलडोजर चलाना चुनावी फायदे का काम दिख रहा है, और इसीलिए एमपी यूपी के पदचिन्हों पर चलते हुए बुलडोजर की सवारी कर रहा है। देश में बहुत से प्रदेशों में, और केन्द्र सरकार के मातहत चल रही दिल्ली में मुस्लिमों के अलावा बड़ी संख्या में हिन्दू भी साम्प्रदायिक तनाव बढ़ाते, हिंसा करते, और सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाते रिकॉर्ड हुए हैं, लेकिन उन पर कोई बुलडोजर चला हो ऐसा सुनाई नहीं पड़ा है। उत्तरप्रदेश के मामलों में तो यह भी याद पड़ रहा है कि देश की एक बड़ी अदालत ने राज्य सरकार को सार्वजनिक उपद्रव का आरोप लगाते हुए जिन अल्पसंख्यकों से वसूली की गई थी, उसे भी वापिस करने का हुक्म दिया है।

देश की सरकारों के साम्प्रदायिक होने का मुद्दा एकदम नया भी नहीं है। ऐसा पहले भी होते आया है, लेकिन इसमें नई बात यह जुड़ गई है कि सरकार किसी को आरोपी बनाने के बजाय, उसे सीधे मुजरिम करार दे रही है, और उसके मकान-दुकान पर बुलडोजर चलाकर नक्सली जनसुनवाई के अंदाज में फैसला सुना रही है, और सजा भी दे दे रही है। इस सिलसिले में न तो जज की जरूरत बच गई है, और न ही किसी जल्लाद की। यह सिलसिला इसलिए खतरनाक है कि यह कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच का फासला खत्म कर रहा है। कार्यपालिका और सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के बीच कोई फासला वैसे भी नहीं रह गया है। सरकारें इन दिनों संविधान और सरकारी नियमों के बजाय अपनी पार्टी के घोषित और अघोषित एजेंडे पर चल रही हैं। अब सत्ता की मनमानी का बुलडोजर अगर धर्म के आधार पर अपने दुश्मन तय करके उन्हें खाक में मिला देने का काम कर रहा है, तो इस माहौल में लोकतंत्र की गुंजाइश बिल्कुल भी नहीं रह जाती है।

मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा को पिछले महीनों में जिन लोगों ने चर्चित चेहरों के कहे एक-एक शब्द पर एफआईआर करने की धमकी देते हुए देखा है, वे इस बात को समझ सकते हैं कि गृहमंत्री किस तरह अपने आपको मुख्यमंत्री से अधिक हमलावर हिन्दुत्ववादी साबित करने पर आमादा हैं, और ऐसा लगता है कि वे मुस्लिमों पर बुलडोजर चलाते हुए असल में बुलडोजर से अपने लिए मुख्यमंत्री निवास तक का रास्ता बना रहे हैं। देश के बहुत से लोग इस बात को लेकर हैरान हैं कि ऐसे वक्त पर इन राज्यों की हाईकोर्ट या देश की सुप्रीम कोर्ट की क्या जिम्मेदारी बनती है? क्या अपने सम्मान और अपनी सहूलियतों से जुड़े हुए छोटे-छोटे मामलों पर अवमानना की सुनवाई शुरू करने वाले बड़े-बड़े जजों को देश के अल्पसंख्यक तबके के अस्तित्व पर खतरा नहीं दिख रहा है? क्या यह लोकतंत्र की अवमानना नहीं है? आज का यह वक्त सुप्रीम कोर्ट की सीधी दखल का है ताकि साम्प्रदायिक सरकारों का धर्मान्ध बुलडोजर रोका जा सके, और देश को टूटने से बचाया जा सके।
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