संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : गडकरी की यह नई सोच देश में अग्निपथ से अधिक रोजगार दे सकती है !
17-Jun-2022 5:08 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : गडकरी की यह नई सोच देश में अग्निपथ से अधिक रोजगार दे सकती है !

Photo : Twitter

महाराष्ट्र के प्रमुख मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके, आज के केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी की कुछ बातें हैं जो उन्हें किसी भी दूसरे केन्द्रीय मंत्री से अलग दिखाती हैं। वे लगातार अपने विभाग के तहत सडक़-पुल बनाने, ट्रैफिक सुधारने, गाडिय़ों को पेट्रोल-डीजल से बैटरी की तरफ ले जाने की सकारात्मक बातें करते हैं। उनकी तमाम बातों से ऐसा लगता है कि वे देश में फैले हुए नफरत के सैलाब से अनछुए रहकर अपनी बैटरी कार पर सवार, अपने बनाए हुए हाईवे पर आगे बढ़ते चले जाना चाहते हैं। ऐसा भी नहीं है कि वे अपनी पार्टी और सरकार की राजनीति के खिलाफ हैं, लेकिन जनता के बीच कही उनकी बातें उन्हें एक अलग तरह का सम्मान दिलाने वाली रहती हैं और लोगों को यह भरोसा दिलाने वाली भी रहती हैं कि उनके विभाग के तहत होने वाला काम लोगों को सचमुच अच्छे दिन दिखा सकता है।

अभी नितिन गडकरी ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में यह कहा कि सरकार एक ऐसा कानून बनाने जा रही है जिसके बाद लोग अगर गलत खड़ी की हुई गाड़ी की फोटो भेजेंगे, और उस पर हजार रूपए से अधिक का जुर्माना बनेगा, तो उस पर पांच सौ रूपए का ईनाम उन्हें मिल सकेगा। उनका कहना है कि इससे गलत पार्किंग खत्म हो जाएगी। उन्होंने इस पर भी अफसोस जाहिर किया कि लोग गाडिय़ां तो ले लेते हैं, लेकिन उनके पास पार्किंग की जगह नहीं रहती। हमारे नियमित पाठकों को याद होगा कि हमने बरसों पहले इसी तरह की बात अपने इलाके की पुलिस को सुझाई थी कि उसे अखबारों के फोटोग्राफरों से अपील करनी चाहिए कि सडक़ों पर ट्रैफिक नियम तोडऩे वालों की फोटो खींचकर भेजें, और उस पर जुर्माना होने पर उसका एक हिस्सा फोटोग्राफर को भी मिलेगा। उस वक्त सडक़ों पर अखबारी-फोटोग्राफर ही अधिक रहते थे, और उस वक्त मोबाइल फोन-कैमरों का चलन नहीं था। लेकिन अब तो हर हाथ में एक कैमरा है, और अगर स्थानीय पुलिस चाहे तो वह अपने वॉट्सऐप नंबर, ईमेल एड्रेस, और सोशल मीडिया पेज तैयार कर सकती है जहां पर राह चलते लोग भी ऐसे फोटो-वीडियो भेजें, और उन पर जुर्माना होने पर उसका एक हिस्सा शिकायतकर्ता को भी मिले। आज पूरे हिन्दुस्तान में फौज में भर्ती की नई योजना, अग्निपथ, के खिलाफ जगह-जगह प्रदर्शन हो रहा है, रेलगाडिय़ां जलाई जा रही हैं, लेकिन ट्रैफिक की शिकायत की ऐसी सडक़पथ योजना बनाकर ट्रैफिकवीरों से फोटो-वीडियो बुलवाने और ईनाम देने से वह सुधार हो सकेगा जो कि पुलिस अपने अमले को दस गुना करके भी नहीं कर सकती।

किसी भी सभ्य समाज में नियमों को लागू करना और करवाना हर किसी की जिम्मेदारी होनी चाहिए। आज देश की अराजक आबादी से पूरे नियम पालन करवाना हो तो दस गुना पुलिस भी कारगर नहीं होगी। और हर पुलिस सिपाही का खर्च तो जनता पर ही आता है। इसलिए जिस तरह सफाई अभियान में लोगों को जोडऩे वाली म्युनिसिपलें अधिक कामयाब होती हैं, उसी तरह ट्रैफिक सुधारने की मुहिम में जो प्रदेश या शहर अपने लोगों को उसमें भागीदार बनाएंगे, वे सरकारी खर्च बढ़ाने के बजाय सरकारी कमाई बढ़ाएंगे, और लोगों के बीच भी बिना वर्दी देखे नियमों का सम्मान रहेगा। आज तो जहां पुलिस के दिखने का खतरा न हो, वहां लोग अपनी मर्जी के मालिक रहते हैं, और सडक़ों के मवाली भी। यह नौबत बदलने के लिए जनभागीदारी की नितिन गडकरी की आज की सोच हम दस-पन्द्रह बरस पहले लिख चुके हैं, और उसके लिए राज्य सरकार को एक मामूली सा नियम बनाना पड़ेगा। आज भी ट्रैफिक चालान की कमाई राज्य के खजाने में ही जाती है, और अगर उसका एक हिस्सा लोगों को ईनाम में दिया जाता है, तो उसमें केन्द्र सरकार से किसी इजाजत की जरूरत भी नहीं है। राज्य सरकार अपने स्तर पर पहल करके अपने नागरिकों को ट्रैफिक सुधारने की इस मुहिम में लगा सकती हैं, और हर हाथ में मोबाइल फोन होने से इसकी कामयाबी भी तय है। यह जरूर हो सकता है कि ट्रैफिक से जुड़े हुए सरकारी महकमों के संगठित भ्रष्टाचार के एकाधिकार पर इससे चोट पहुंच सकती है, लेकिन वह भ्रष्टाचार लोगों की जिंदगी की कीमत पर चलता है, जिसे कि बंद किया जाना चाहिए।

शहरी जिंदगी में बच्चों को कोई भी नियम सिखाने की पहली शुरुआत ट्रैफिक से होती है, और जब वे ट्रैफिक के नियम तोड़े जाते देखते हैं, वे खुद भी वैसा ही करना सीख जाते हैं, और फिर धीरे-धीरे किसी भी नियम के लिए उनके मन में हिकारत घर कर जाती है। ऐसी अराजक सोच सरकार के लिए आगे कई किस्म के जुर्म पेश करती हैं, और देश की बहुत सी पुलिस, बहुत सी अदालतें इसी से जूझते रह जाती हैं। इसलिए ट्रैफिक सुधारना बच्चों को नियमों का सम्मान सिखाने का पहला पाठ रहता है। एक सभ्य देश की आसान सी पहचान यही रहती है कि वहां का ट्रैफिक नियमों का कितना सम्मान करता है। बिना राजनीतिक पसंद या प्रतिरोध के, नितिन गडकरी की सोच को राज्यों को अपने स्तर पर लागू करना चाहिए, चीजों को बेहतर बनाने की कोशिश इस अखबार के लिखे शुरू न हुई, तो भी कोई बात नहीं, गडकरी के कहे हुए शुरू हो जानी चाहिए। यह भी हो सकता है कि कई बेरोजगार अपने मामूली से मोबाइल फोन के कैमरे से दिन भर में हजार-दो हजार रूपए कमाने का एक रास्ता निकाल लें, और उन्हें अग्निपथ के मुकाबले चालानपथ एक बेहतर कॅरियर लगने लगें।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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