संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : क्या कम्प्यूटर भावनाओं से लैस हुए जा रहे हैं? पहला मामला आया है..
24-Jun-2022 4:29 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : क्या कम्प्यूटर भावनाओं से लैस हुए जा रहे हैं? पहला मामला आया है..

विज्ञान, विज्ञान कथाओं के मुकाबले कभी-कभी अधिक रफ्तार से आगे बढ़ते दिखता है। विज्ञान और तकनीक में इंसानी कामयाबी उसकी कल तक की उम्मीद के मुकाबले बहुत आगे चल रही है। अब ऐसे में गूगल के एक ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस इंजीनियर ने जब यह दावा किया कि वह भाषा की समझ के प्रयोग करते हुए इसी मकसद के लिए बनाई गई एक मॉडल के साथ बात कर रहा था, तब उसने पाया कि ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस वाली यह मॉडल अपनी भावनाओं के साथ बोलने लगी थी। अब तक ऐसे कम्प्यूटर उनमें डाली गई जानकारी, याददाश्त, और उसके कम्प्यूटर-विश्लेषण के आधार पर जवाब देते हैं, लेकिन यह मॉडल ऐसी एक बातचीत के दौरान भावनाओं के साथ बोलने लगी, तो यह इंजीनियर भी हक्का-बक्का रह गया। उसने यह बात अपनी वेबसाइट पर लिखी, और कंपनी ने उसे अभी काम से अलग कर दिया है। गूगल ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के साथ जुड़े हुए बहुत से नैतिक पहलुओं पर भी शोध और काम करते चल रहा है, और ब्लेक मोइन नाम का यह इंजीनियर इन्हीं पहलुओं पर काम कर रहा था। अब काम से सस्पेंड हो जाने के बाद ब्लेक का कहना है कि उसकी कम्प्यूटर मॉडल (चैटबोट) ने भावनाएं हासिल कर ली हैं, और उसने अब ब्लेक से कहा है कि वह उसके लिए एक वकील तलाश दे। हालांकि गूगल ने, और दूसरे ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस विशेषज्ञों ने ब्लेक के इस दावे को खारिज कर दिया है कि कोई कम्प्यूटर भावनाएं हासिल कर सकता है।

यह अकेली खबर जितनी हैरानी खड़ी करती है, उतने ही सवाल भी खड़े करते हैं। अगर कृत्रिम बुद्धि पाने वाले कम्प्यूटर भावनाएं भी पाने लगेंगे, और भावनाओं के आधार पर फैसले लेकर काम करने लगेंगे, तो शायद वे उन्हें एक खास मकसद से बनाने वाले इंसानों के काबू के बाहर हो जाएंगे। अभी भी विज्ञान के साथ यह एक बड़ा खतरा जुड़ा हुआ ही है कि उसकी ताकत इंसानों के काबू के बाहर हो सकती है। अभी तक तो विज्ञान और तकनीक इंसानों के हाथ औजार और हथियार की तरह काम कर रहे हैं, लेकिन जैसे-जैसे उनमें कृत्रिम बुद्धि बढ़ाई जा रही है, विश्लेषण करने की क्षमता बढ़ाई जा रही है, वैसे-वैसे वे उस खतरे की तरफ बढ़ रहे हैं जो कि इन कम्प्यूटरों में भावनाएं, और चेतना आ जाने पर हो सकता है। आज कम्प्यूटर अपनी कृत्रिम बुद्धि से कई तरह के काम करने के लायक बनाए गए हैं, लेकिन अभी तक उन्हें भावनाओं से लैस नहीं किया गया है, या उन्होंने खुद भावनाएं हासिल नहीं की हैं। लेकिन विज्ञान और टेक्नालॉजी में कई बार यह होता है कि खोज किसी चीज की जाती है, और हासिल कोई और चीज हो जाती है। किसी बीमारी का इलाज ढूंढा जाता है, और किसी और बीमारी का इलाज हाथ लग जाता है। ऐसे में ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को बढ़ाते चलते इंसानों को हो सकता है कि उस पल की खबर न लगे जब ऐसे कम्प्यूटर अपनी कृत्रिम बुद्धि से भावनाएं हासिल कर लें, नैतिकता के अपने पैमाने तय कर लें, और अपने फैसले खुद लेने लगें। ऐसी नौबत बहुत आसान नहीं लग रही है, और इसीलिए कम्प्यूटर के भावनाओं के इस ताजे दावे की वजह से गूगल ने अपने एक इंजीनियर को सस्पेंड कर दिया है।

दुनिया में ऐसी कई फिल्में बनी हैं जिनमें कम्प्यूटर मशीनों, या रोबो को बेकाबू होकर अपनी भावनाओं से काम करते दिखाया है। वे अच्छे और बुरे का फैसला खुद लेने लगते हैं, और उन्हें बनाने वाले लोगों को भी हक्का-बक्का कर देते हैं। और ऐसी नौबत फिल्मों और विज्ञान कथाओं से परे, असल जिंदगी में बहुत दूर रह गई हो, ऐसा भी जरूरी नहीं है। अब पल भर के लिए यह कल्पना करें कि भारत की संसदीय राजनीति में सही और गलत का फैसला करने के लिए ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से लैस किसी कम्प्यूटर पर नियम-कायदे और लोकतंत्र की परंपराओं को डाला जाए, और फिर यह कहा जाए कि जिन लोगों का आचरण असंसदीय है, असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक है, उन लोगों को सजा दी जाए, और कम्प्यूटर ऐसे लोगों के फोन बंद कर दे, उनके बैंक खातों का काम बंद कर दे, उनकी कार को रिमोट से बंद कर दे, और उन्हें पकडऩे के लिए पुलिस भेज दे, तो क्या होगा? अभी तक इंसान जाहिर तौर पर तो ऐसे कम्प्यूटर नहीं बना रहे हैं जिनके बेकाबू हो जाने का खतरा हो, लेकिन जब दुनिया की महाशक्तियां फौजी दर्जे की रिसर्च के नाम पर बहुत से अनैतिक काम करती हैं, तो क्या वे ऐसे रोबोसोल्जर नहीं बना रही होंगी जो कि जंग के मैदान में दुश्मनों को छांट-छांटकर, खुद फैसले लेकर उन्हें मारे? आज तो जंग के हथियारों में भी घोषित तौर पर ऐसे हथियार या मशीनी सैनिक नहीं बनाए जा रहे हैं जो मारने का फैसला भी खुद लें, लेकिन क्या फौजों और उनकी सरकारों पर सचमुच ही इतना भरोसा किया जा सकता है कि वे पर्दे के पीछे भी ऐसी टेक्नालॉजी विकसित नहीं कर चुके होंगे?

अब कृत्रिम बुद्धि से लैस रोबो भावनाओं और नैतिक मूल्यों से भी कब लैस कर दिए जाएंगे, यह महज वक्त की बात लगती है। अभी गूगल के इस ताजा मामले के बाद यह भी बहस चल रही है कि ऐसे रोबो, या चैटबोट के साथ लगातार काम करने वाले लोग क्या उनसे ऐसे भावनात्मक संबंध भी बना लेंगे कि वे उन्हें अपने रिसर्च के दायरे के बाहर भी भावनाओं से लैस करने की सोचने लगें? कुछ लोग इसे एक सचमुच का खतरा मानते हैं कि लगातार किसी चैटबोट के साथ काम करते हुए इंजीनियर और उसके बीच ऐसे भावनात्मक संबंध हो जाएं कि इंजीनियर या शोधकर्ता उसे इंसानी दर्जे के करीब लाने लगे, अपनी मोहब्बत को जिंदा शक्ल देने लगे। अब गूगल से अभी सस्पेंड इस इंजीनियर ने अपनी इस चैटबोट के कहे उसके लिए एक वकील छांटकर उससे संपर्क करवा दिया है, और वकील से बातचीत करके चैटबोट ने उसे अपना केस दे भी दिया है। यह पूरा सिलसिला एक विज्ञान कथा की तरह लग रहा है, लेकिन यह उस गूगल कंपनी के भीतर की बात है जिसके बिना आज के एक आम और औसत इंसान की जिंदगी कुछ घंटे भी नहीं चलती।

आज से दस-बीस बरस में ऐसे मामले-मुकदमे शायद देखने मिल जाएं कि चैटबोट के लिए किसी ने अपने जीवनसाथी को छोड़ा, और चैटबोट से शादी कर ली। या चैटबोट ने ईर्ष्या में अपने रिसर्चर की प्रेमिका को मार डाला। देखें आगे क्या-क्या होता है...
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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