संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अमरीकी सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों से बाकी दुनिया को सबक लेने की जरूरत
25-Jun-2022 4:42 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अमरीकी सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों से बाकी दुनिया को सबक लेने की जरूरत

अमरीका में पिछले दो-चार दिनों में वहां की सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों ने अमरीकी समाज को बड़ा झटका दिया है। खासकर समाज के उस हिस्से को जो संविधान में दिए गए एक बुनियादी अधिकार के साथ बंदूकों को लेकर कुछ शर्तें जोडऩा चाहते हैं क्योंकि आए दिन नौजवान किसी तनाव या नफरत को लेकर सार्वजनिक जगहों पर गोलीबारी कर रहे हैं, और कई लोगों को मार डाल रहे हैं। अमरीका के मौजूदा कानून में 18 बरस के होते ही लोग मनचाही बंदूकें खरीद सकते हैं, और ऐसे हमलावर हथियार भी बेहिसाब लेकर रख सकते हैं जिनमें से एक-एक हथियार से पलक झपकते दर्जन भर लोगों को मार डाला जा सकता है। अमरीकी सरकार हाल के महीनों की ऐसी गोलीबारी के बाद लगातार कोशिश कर रही थी कि एक जनमत ऐसा तैयार हो जो बंदूकें रखने के बुनियादी हक के साथ-साथ कुछ सावधानियों की शर्तें जोडऩे की इजाजत सरकार को दे। अभी अमरीका के न्यूयॉर्क राज्य का एक कानून सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया जो कि लोगों को सार्वजनिक जगहों पर हथियार लेकर चलने से रोकता था। अमरीकी सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों में से जिन छह ने इस फैसले पर सहमति दी है, उनमें से तीन को पिछले राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के कार्यकाल में नियुक्त किया गया था। अमरीकी न्याय व्यवस्था हिन्दुस्तान जैसे देश से अलग है, और वहां पर सुप्रीम कोर्ट के जज मरने तक काम करते हैं, और ऐसे में किसी जज के गुजरने पर ही मौजूदा राष्ट्रपति को अपनी पसंद का जज बनाने का मौका मिलता है। इसलिए राष्ट्रपति की अपनी विचारधारा वाले जज अनायास ही बनते हैं, और ट्रंप को ऐसे तीन जज बनाने का मौका मिला था।

अमरीकी सुप्रीम कोर्ट का दूसरा फैसला पचास बरस पहले के इसी अदालत के एक फैसले को खारिज करने वाला है, और इस फैसले से देश भर में अमरीकी महिलाओं को गर्भपात का फैसला लेने का हक खत्म हो गया है। सिर्फ एक-दो बहुत ही सीमित किस्म के मामलों में गर्भपात हो सकेंगे, जैसे कि गर्भपात न होने से अगर गर्भवती की जिंदगी को खतरा है, तो बड़ी कड़ी मेडिकल सिफारिश पर ही ऐसा गर्भपात हो सकेगा। अमरीका में गर्भपात हमेशा से एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा रहा है, और चुनावों के दौरान भी पार्टियों और नेताओं को इस मुद्दे पर अपना रूख साफ करना होता है। अमरीकी सुप्रीम कोर्ट से ऐसे ही फैसले की उम्मीद की जा रही थी क्योंकि वहां के जजों ने डोनल्ड ट्रंप के नियुक्त किए हुए, और कन्जर्वेटिव विचारधारा के जजों का बहुमत है, और पांच जजों ने बहुमत से यह फैसला दिया, तीन जज इसके खिलाफ रहे। इस फैसले से भी अमरीका के उदारवादी, नागरिक अधिकारों के हिमायती, और डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक बहुत निराश हुए हैं, और इसे महिला अधिकारों के आंदोलन की एक बहुत बड़ी हार माना जा रहा है।

ये दोनों फैसले बिल्कुल ही अलग-अलग संदर्भों में हैं, लेकिन ये दोनों ही मौजूदा अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन की सोच के खिलाफ गए हैं, और अमरीका के काले लोग, दूसरे देशों से वहां पहुंचे हुए दूसरी नस्लों के लोग, प्रवासी और शरणार्थी लोग इन सबकी उम्मीदों पर पानी फेरने वाले रहे हैं। जिस अमरीका में आधी सदी से महिलाओं को गर्भपात का फैसला लेने का हक था, आज वह तस्वीर पूरी तरह पलट गई है। इसी तरह बरसों से यह बहस चली आ रही थी कि लोगों के हथियार रखने के साथ कुछ शर्तें जोड़ी जानी चाहिए ताकि हिंसक, नफरतजीवी, और विचलित मानसिक स्थिति के लोग हमलावर हथियार इक_े न कर सकें। लेकिन आज हालत यह है कि अनगिनत अमरीकी परिवार अपनी खरीदी हुई बंदूकों की घर के भीतर ही जब नुमाइश करते हैं तो ऐसा लगता है किसी फौजी बटालियन के हथियारों की दशहरे की पूजा हो रही है। अभी कुछ हफ्तों के भीतर जिस तरह दो बड़ी-बड़ी सामूहिक हत्याएं दो नौजवानों ने की हैं, उसके बाद तो ऐसा लग रहा था कि गनकंट्रोल पर बात कुछ बन सकेगी, और जनमत तैयार हो सकेगा, लेकिन न्यूयॉर्क के कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का फैसला बहुत ही निराश करने वाला है, और आज की अमरीका की जरूरत, वहां के आम लोगों की हिफाजत के खिलाफ है।

अमरीका के घरेलू मामलों से बाकी दुनिया का अधिक लेना-देना नहीं है, क्योंकि न तो बाकी दुनिया की महिलाओं को गर्भपात के लिए अमरीका जाना है, और न ही जब तक किसी सैलानी पर अमरीका में गोली चले, तब तक वहां गए पर्यटकों को भी कोई खतरा नहीं है। लेकिन इससे दुनिया भर के सोचने के लिए यह मुद्दा उठता है कि जजों की निजी सोच किस तरह किसी देश की तस्वीर बदल सकती है। अमरीका में न्यायपालिका को लेकर तरह-तरह के विश्लेषण करने की छूट लोगों को है। हिन्दुस्तान में अदालतें जिस तरह की टिप्पणी पर अवमानना का केस शुरू कर दें, वैसी टिप्पणी अमरीका में आम हैं कि कौन से जज कैसी सोच रखते हैं, और किस मामले में वे किस तरह फैसला दे सकते हैं, यह आमतौर पर लिखा जाता है। यह भी आमतौर पर लिखा जाता है कि किस राष्ट्रपति ने उन्हें जज बनाया है। इसलिए अमरीका की बात अलग है, लेकिन दुनिया के बाकी देशों को अपनी-अपनी न्याय व्यवस्था के भीतर यह सोचने की जरूरत है कि वहां किस तरह के जज बनाए जा रहे हैं, किस तरह की ताकतें जज छांट रही हैं, और रिटायर होने के बाद जज सरकार से किस-किस तरह के उपहारों और उपकारों की उम्मीद कर रहे हैं। यह सब समझने की बात है, और किसी जिम्मेदार लोकतंत्र को अपने आपको ऐसी फिक्र से बेपरवाह नहीं रखना चाहिए। दुनिया के तमाम देशों को, खासकर उन्हें जिन्हें अपनी न्यायपालिका पर बड़ा गुरूर है, उन्हें अमरीका में ट्रंप के बनाए जजों, और उनके ऐसे फैसलों को लेकर आई नौबत पर विचार करना चाहिए।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news