संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : हिन्दुस्तान में तालिबानी-हत्या, इस असाधारण दौर में देश के असाधारण लोग चुप न रहें...
29-Jun-2022 4:17 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : हिन्दुस्तान में तालिबानी-हत्या, इस असाधारण दौर में देश के असाधारण लोग चुप न रहें...

राजस्थान के उदयपुर में कल ऐसी धार्मिक-आतंकी वारदात हुई है कि जिसने हिन्दुस्तान को तालिबान के मुकाबले ला खड़ा किया है। वहां के एक हिन्दू दर्जी के सोशल मीडिया पेज पर शायद उसके आठ बरस के बेटे ने नुपूर शर्मा के समर्थन में एक पोस्ट की थी। एक टीवी बहस पर नुपूर शर्मा ने मोहम्मद पैगंबर के बारे में आपत्तिजनक बातें कही थीं, जिसकी प्रतिक्रिया में हिन्दुस्तान के मुसलमानों से लेकर मुस्लिम देशों तक ने विरोध दर्ज किया था, और कई देशों के विरोध के बाद भारत में भाजपा ने अपनी इस राष्ट्रीय प्रवक्ता को पद से हटाया था, और सरकार ने उसके खिलाफ जुर्म दर्ज किए थे। तब से अब तक नुपूर शर्मा गिरफ्त से बाहर है। देश में धर्मान्ध हिन्दुओं का एक तबका पूरी ताकत से नुपूर शर्मा के साथ खड़ा है, और दूसरी तरफ मुस्लिम इस बात से आहत हैं कि उसे अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। ऐसे माहौल के बीच सोशल मीडिया उबला पड़ा है, और साम्प्रदायिकता मानो इस देश का मुख्य खानपान हो गई है, और लोगों के पास मानो नफरत को फैलाना ही अकेला रोजगार बचा है। कम से कम अधिक मुखर और हमलावर लोगों ने सोशल मीडिया पर नुपूर शर्मा पर इस देश को दो हिस्सों में बांट दिया है, और इसी माहौल में जब राजस्थान के इस हिन्दू दर्जी के आठ बरस के बेटे ने बाप के सोशल मीडिया अकाऊंट पर नुपूर शर्मा की हिमायत में कुछ पोस्ट किया, तो उस पर उदयपुर के कुछ मुस्लिमों ने उसे हिंसक धमकी दी थी। इस पर कन्हैयालाल नाम के इस दर्जी को पुलिस ने पकड़ा था, और फिर छोड़ भी दिया था। अब दो मुस्लिम उसके पास कपड़े का नाप देने के नाम पर आए, एक ने नाप देते-देते कटार जैसे बड़े हथियार से उसका गला रेत दिया, और दूसरा मुस्लिम उसका वीडियो बनाते रहा जिसे बाद में अपने बयान के साथ उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या की धमकी के साथ सोशल मीडिया पर पोस्ट किया। इस बहुत ही भयानक तालिबानी हिंसा के बाद पूरे राजस्थान में साम्प्रदायिक तनाव है, और गनीमत यह है कि ये दोनों हत्यारे गिरफ्तार कर लिए गए हैं।

हिन्दुस्तान अपने आज के साम्प्रदायिक तनाव के साथ बारूद के ढेर पर बैठा हुआ है। कट्टर, धर्मान्ध, और साम्प्रदायिक ताकतों में से किसी भी एक ताकत से लैस हिन्दुस्तानी दूसरे का गला काटने की ताकत रखते हैं। धार्मिक कट्टरता और साम्प्रदायिक नफरत इस देश में आज सबसे अधिक ताकतवर इंजन बन गए हैं, और कुछ तबकों में डबल इंजन की नफरत चल रही है। राजस्थान में पिछले कुछ महीनों में बार-बार साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाएं हो रही हैं, लेकिन घटनाओं से कुछ कम दर्जे के तनाव देश के अधिकतर प्रदेशों में छाए हुए हैं। ऐसे में राजस्थान के कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से अपील की है कि उनकी बातों का सार्वजनिक असर होता है, और उन्हें देश की आम जनता से शांति की अपील करने को कहा है। केन्द्र सरकार ने उदयपुर की इस तालिबानी-हत्या की जांच एनआईए को दी है, जो कि आतंकी पहलू के नजरिये से इस मामले की जांच करेगी। इस बीच एक खबर यह भी है कि भाजपा के जिन दो प्रवक्ताओं/नेताओं, नुपूर शर्मा, और नवीन जिंदल ने मोहम्मद पैगंबर के बारे में आपत्तिजनक बातें कही थीं, उनमें से नवीन जिंदल को उदयपुर का यह वीडियो भेजकर उसी तरह मारने की धमकी दी गई है। यह तनाव उम्मीद से परे का नहीं है, और ऐसे बयानों से लेकर ऐसे कत्ल तक का मकसद देश में हत्यारे तनाव को बढ़ाना ही रहता है, और साम्प्रदायिक ताकतें इसमें बहुत कामयाब हुई दिख रही हैं। आज इस देश के लोग जीने-खाने और कमाने की फिक्र को छोडक़र किसी धर्म के अपमान करने को अपना पेशा बना चुके हैं, और ऐसे लोगों के चलते देश में कोई भी महफूज नहीं रहेंगे।

यह वक्त हिन्दुस्तान को अब भी और जलने देने से बचाने का है, और अधिक खत्म हो जाने के पहले इसे थाम लेने का है। हाल के बरसों में देश के अमन-चैन, और भाई-बहनचारे की जो तबाही हुई है, उनसे उबरने में इन बरसों जितनी पीढिय़ां लग जाने वाली हैं, इसलिए तबाही के हर बरस को और आगे की एक पीढ़ी की बर्बादी मानकर इस खतरे का अंदाज लगाना चाहिए। जहां कन्हैयालाल का आठ बरस का बेटा एक नफरतजीवी नुपूर शर्मा की हिमायत में सोशल मीडिया पर नफरत का ट्वीट करता है, तो आज साम्प्रदायिकता ने किस पीढ़ी तक को तबाह कर दिया है, उसे समझना मुश्किल नहीं होना चाहिए। गहलोत अपने राज्य राजस्थान की साम्प्रदायिक घटनाओं को रोकने में नाकामयाब दिख सकते हैं, लेकिन इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि पूरे देश के लोगों पर गहलोत की बात का असर नहीं हो सकता, और मोदी-शाह की बात का असर हो सकता है। इसलिए कम से कम प्रधानमंत्री को अपनी चुप्पी तोडक़र, देश के आज के माहौल पर कुछ बोलना चाहिए, और कुछ से अधिक काफी बोलना चाहिए। नाजुक मौकों पर चुप्पी के कई गलत मतलब भी निकाले जाते हैं, इसलिए जो जिम्मेदारी के ओहदों पर बैठे हुए लोग हैं, जो शोहरत-हासिल लोग हैं, उन लोगों को नाजुक मौकों पर चुप रहने का हक नहीं दिया जा सकता। आज देश में धर्मान्धता और साम्प्रदायिकता जितनी तबाही ला रही है, वह देश का सबसे बड़ा राष्ट्रीय खतरा बन चुकी है। ऐसे मौके पर प्रधानमंत्री को खुलकर सामने आना चाहिए, और उन्हें अपना आदर्श मानने वाले लोगों के बीच भी जिस तरह की गलतफहमी या खुशफहमी फैली हुई है, उसे दूर करना चाहिए। किसी को ऐसा लग सकता है कि साम्प्रदायिक हिंसा से परे बड़े-बड़े कारखाने तो चलते ही रहते हैं, और उनसे देश की जीडीपी चलना जारी रहता है, लेकिन यह हकीकत नहीं है। उदयपुर का कन्हैयालाल आज किसी दूसरे के सामान का ग्राहक नहीं रह गया है, और अपने ग्राहकों के लिए अब वह कपड़े नहीं सिलने वाला है। उसके कातिल भी अब न कोई ग्राहक रह जाएंगे, और न ही कारीगर। इस तरह देश की साम्प्रदायिक हिंसा कारोबार को खतम कर रही है, जिसकी रफ्तार धीमी लग सकती है, लेकिन इसका असर हर हिन्दुस्तानी पर पड़ रहा है, खासकर अगर वे अरबपति न हों।

देश को साम्प्रदायिकता और धर्मान्धता से उबारने की जरूरत है। जो ताकतें विवेकानंद से लेकर सरदार पटेल तक, और भगत सिंह से लेकर विनायक दामोदर सावरकर तक को अपना आदर्श मानती हैं, उन्हें याद रखना चाहिए कि आज वे सब अपने आदर्श कहे जाने वाले इन तमाम लोगों की कही बातों के ठीक खिलाफ काम कर रहे हैं। मन, वचन, और कर्म का यह विरोधाभासी पाखंड खत्म होना चाहिए। एक मेहनतकश कन्हैयालाल को दूसरे मेहनतकश मोहम्मद के हाथों मरवाने की तोहमत कुछ जटिल रास्तों से अपने ठिकाने तक पहुंच सकती हैं, सीधे-सीधे नहीं। यह देश इस नुकसान को झेलने की हालत में नहीं है, और ऐसा देश जाने किस जुबान से विश्व गुरू बनने का दंभ पाले हुए है। यह असाधारण समय है, और इसकी मांग है कि देश के असाधारण लोग इस वक्त चुप न रहें, हालात को सम्हालने की अपनी बुनियादी जिम्मेदारी पूरी करें।
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