संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : इंसानों की बलि देकर उनका गोश्त खाते लोग कैसे समाज का सुबूत हैं?
17-Oct-2022 4:08 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  इंसानों की बलि देकर उनका गोश्त खाते लोग कैसे समाज का सुबूत हैं?

केरल में अभी कुछ दिन पहले एक तांत्रिक ने एक पति-पत्नी को दौलत दिलाने के लालच में ऐसा फंसाया कि वे मानव बलि देने के लिए तैयार हो गए। देवी को खुश करने के नाम पर पहले एक बलि दी गई, फिर कहा गया कि देवी अब तक खुश नहीं हुई है, तो दूसरी बलि दी गई, और इन लाशों का मांस पकाकर खाया गया, उसके टुकड़े-टुकड़े करके घर के कई कोनों में गाड़ दिए गए, और अब जब सारी गिरफ्तारियां हो चुकी हैं, तो केरल के लोग हक्का-बक्का हैं कि उनके बीच के लोगों ने यह कैसा काम किया है। यह बात कुछ अधिक हैरान इसलिए भी करती है कि केरल हिन्दुस्तान में सबसे अधिक पढ़ा-लिखा राज्य है, वहां के लोग तरह-तरह के कामगार हैं, दुनिया के कई कोनों में जाकर काम करते हैं, वहां राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों की आवाजाही भी रहती है, और वहां के लोग शहरी समाज से कटे हुए किसी जंगल के लोग नहीं हैं। विज्ञान और टेक्नालॉजी की केरल के लोगों में सबसे अधिक समझ है, और इसलिए यह बात हैरान करती है। यह तांत्रिक एक मुस्लिम है जिसने एक हिन्दू दम्पत्ति को झांसा देकर मानव बलि के लिए तैयार किया, और ताजा जानकारी यह भी कहती है कि यह तांत्रिक पति के सामने ही उसकी पत्नी से सेक्स करता था, और इन सबसे देवी के खुश होने का दावा भी करता था। इस मामले की बाकी जानकारी दिल दहलाने वाली है, और इस तरह से बलि देकर इंसानी गोश्त खाने का यह भयानक मामला है।

केरल के इस ताजा मामले से एक बार फिर यह बात मजबूती के साथ स्थापित होती है कि विज्ञान, टेक्नालॉजी, या दूसरे किसी किस्म की आधुनिक औपचारिक शिक्षा लोगों को कितना भी समझदार बना ले, धर्म में उन्हें झांसा देने की, उनसे गलत काम करवाने की अपार क्षमता उससे ऊपर ही रहती है। अब जिस केरल के लोग सारे हिन्दुस्तान में तकनीकी दक्षता के लिए जाने जाते हैं, अंग्रेजी टायपिंग से लेकर चिकित्सा विज्ञान में टेक्नीशियन तक, हर किस्म के काम में केरल के लोगों को बेहतर माना जाता है, या वे अधिक दिखते हैं। वामपंथी प्रभाव वाला राज्य होने की वजह से केरल में सामाजिक जागरूकता भी काफी रही है, लेकिन इस ताजा हादसे से ऐसा लगता है कि समाज में हर कोई बराबर हद तक प्रभावित नहीं हो पाते हैं। तमाम विकास और शिक्षा के बावजूद अंधविश्वास कुछ लोगों में इतना गहरा बैठा है, धर्मान्धता इतनी गहरी बैठी है कि लोग मानव बलि और इंसानी गोश्त खाकर देवी को खुश कर रहे हैं। वैसे हम कई बार इस बात को लिखते हैं कि धर्म कई तरह की हिंसा सिखाता है, और धर्म का बुनियादी मिजाज हिंसक ही रहता है। वह अपने धर्म से परे के लोगों के साथ किसी भी दर्जे की हिंसा करने का आदी भी रहता है। ऐसे में अपनी देवी को खुश करने के लिए कुछ दूसरे लोगों की बलि दे देने में धर्मान्ध और अंधविश्वासी लोगों को लगता है कि अधिक दिक्कत नहीं हुई है। और अब तक जो जानकारी आई है उसके मुताबिक यह काम करने वाले लोग मानसिक रोगी भी नहीं पाए गए हैं। आमतौर पर इस किस्म के जुर्म में शामिल लोगों के बारे में लोग तुरंत ही उनके मानसिक रोगी होने का निष्कर्ष निकाल लेते हैं। लेकिन इस मामले को देखकर लगता है कि धर्म अपने आपमें एक बहुत खतरनाक मानसिक रोग है।

हिन्दुस्तान में अभी सौ-डेढ़ सौ बरस पहले तक किसी भी बड़े निर्माण के वक्त, उस जगह पर मानव बलि देने का एक रिवाज था। बड़े-बड़े पुल या बांध बनाते हुए बलि दी जाती थी, और कुछ जगहों पर तो उसका जिक्र करते हुए शिलालेख अब तक लगे हुए हैं। आमतौर पर इसके लिए गरीब दलितों को छांटा जाता था, जिनकी मौत पर कोई बवाल भी खड़ा नहीं होता था। धर्म की यह गजब की खूबी है कि जिस दलित की छाया भी किसी धार्मिक आयोजन पर नहीं पडऩी चाहिए, उस धार्मिक आयोजन में दलित को बलि चढ़ाने पर कोई रोक नहीं थी। धर्म समाज की जाति व्यवस्था की बुनियाद में भी रहा है, और समाज की अन्यायपूर्ण व्यवस्था ने धर्म के साथ मिलकर एक-दूसरे को अधिक हिंसक भी बनाया है। केरल के मानव बलि के इस मामले को कुछ देर के लिए अलग भी रख दें, तो भी हिन्दुस्तान में धर्म की हिंसक शक्ल पर गौर करने की जरूरत है। हर गली-मुहल्ले में या किसी घर में होने वाले धार्मिक कार्यक्रम रास्ता रोकने से लेकर लाउडस्पीकर तक कई तरह से अराजक और हिंसक दिखते हैं, और एक-दूसरे के देखादेखी किसी एक धर्म के भीतर भी, और फिर मुकाबले में दूसरे धर्मों में भी यह अराजकता बढ़ती चलती है। अंधविश्वास धर्म का एक अनिवार्य तत्व है क्योंकि वैज्ञानिक सोच तो धर्म को पूरे का पूरा खारिज ही कर देती है, इसलिए वैज्ञानिक सोच को दफन करके ही उसके ऊपर धर्म का साम्राज्य खड़ा हो पाता है। पिछले कुछ चुनावों से हिन्दुस्तान में लगातार धर्म, धर्मान्धता, और धार्मिक हिंसा को इतना बढ़ावा दिया जा रहा है कि वह लोगों की लोकतांत्रिक सोच को पूरी तरह कुचलकर रख दे, और वोटर न्यायसंगत, तर्कसंगत तरीके से कुछ सोच ही न पाएं। ऐसा सिलसिला देश के लोगों की वैज्ञानिक सोच को भी खत्म करता है, और मानव बलि से नीचे भी कई किस्म के हिंसक पाखंड समाज में होते रहते हैं जो कि पुलिस और खबरों तक नहीं आ पाते। अब इसी मामले में अगर दो लोगों की बलि नहीं दी गई होती, उसका भांडाफोड़ नहीं हुआ रहता, तो देवी को खुश करने के नाम पर पति के सामने पत्नी से बलात्कार की बात तो कभी सामने आ भी नहीं पाती। और यह बात केरल में ही नहीं है, अधिकतर प्रदेशों में कहीं न कहीं से ऐसी खबर आती है कि भूतप्रेत उतारने के नाम पर, या बच्चा पैदा करवाने के नाम पर धर्मों से जुड़े हुए तरह-तरह के तांत्रिक या दूसरे धर्मों के लोग बलात्कार करते हैं। सबसे तकलीफ की बात यह है कि अंधविश्वास के शिकार परिवार ऐसे बलात्कार से सहमत भी रहते हैं, और इसके गवाह भी रहते हैं। जिन लोगों को ऐसी घटना एक अकेली घटना लगती है, किसी बीमार दिमाग का काम लगती है, उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि एक देश और समाज के रूप में हिन्दुस्तान धर्म और धर्मान्धता का शिकार होकर, हिंसा को मान्यता देकर एक बीमार दिमाग वाला समाज बन ही चुका है, और इसकी हिंसा तरह-तरह से लोगों को अपना शिकार बना रही है, यह एक और बात है कि यह हिंसा आमतौर पर पुलिस और खबरों तक पहुंचने जितनी गंभीर नहीं रहती है, इसलिए अनदेखी रह जाती है।
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