संपादकीय

दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : उम्मीद और कोशिश न छोड़ी तो आधी सदी बाद कामयाबी
05-Dec-2022 3:55 PM
दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :   उम्मीद और कोशिश न छोड़ी तो आधी सदी बाद कामयाबी

जो लोग किसी संघर्ष या इंतजार से थककर उम्मीद छोडऩे वाले हैं, उनकी उम्मीद बनाए रखने के लिए असल जिंदगी की एक फिल्मी कहानी अभी सामने आई है जिसमें अपनी बेटी को ढूंढते एक मां-बाप को उससे पचास बरस बाद मिलना नसीब हुआ। जब यह लडक़ी 22 महीने की थी, तब उसे 1971 में उसकी आया बाई लेकर चली गई थी, उसकी तलाश दशकों तक जारी रही, अमरीका की पुलिस, वहां की राष्ट्रीय जांच एजेंसी एफबीआई, और उस लडक़ी का परिवार, सभी ने उसकी खूब तलाश की, लेकिन उसका कोई सुराग नहीं लगा। हाल के बरसों में अमरीका में डीएनए सैम्पल के मार्फत बिछड़े हुए लोगों को उनके परिवार के लोगों से मिलाने की कुछ वेबसाईट शुरू हुई हैं, वैसी एक वेबसाईट ने अभी इस लडक़ी को मां-बाप से मिलवाया। मेलिसा नाम की यह लडक़ी अब 53 बरस की है, और उसका जन्मदिन अब बस आने को है। इस परिवार ने फेसबुक पर यह लिखा कि बिना पुलिस या एफबीआई के, सिर्फ डीएनए मिलान करने वाली वेबसाईट की वजह से उनकी बेटी उन्हें मिली है, और खुशी का इससे बड़ा मौका और कोई नहीं हो सकता। इस पूरे दौर में मेलिसा भी अपने मां-बाप की तलाश कर रही थी, और मां-बाप उसकी तलाश कर रहे थे। अब यह बेटी अपनी शादी का जलसा एक बार फिर करना चाहती है ताकि उसके पिता चर्च में उसका थामकर उसे दूल्हे तक ले जा सके। 

यह घटना आम लोगों की रोजाना की जिंदगी में होने के हिसाब से कुछ अधिक फिल्मी है। हर किसी की जिंदगी में संयोग इतने बड़े और खुशनुमा नहीं होते हैं, लेकिन ऐसे करिश्मे हाड़-मांस के आम इंसानों की जिंदगी में हुए हैं, जिनके पास इस तलाश के लिए कोई अंधाधुंध पैसे नहीं थे। ऐसी मुलाकात की कई कहानियां हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच विभाजन में खोए परिवारों के बीच भी देखने मिलती हैं, अभी कुछ दिन पहले ही 72 बरस पहले बिछुड़े भाई-बहन करतारपुर गुरुद्वारे में मिले हैं। इस बात की चर्चा का मकसद यह है कि जो लोग जिंदगी से निराश हो जाते हैं उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि जिंदगी की पोटली में चौंकाने वाली बहुत सी बातें रहती हैं, कब वक्त किसे क्या निकालकर देता है, इसका किसी को अंदाज भी नहीं रहता। दुनिया के जिन देशों ने विभाजन की त्रासदी देखी है, लोगों को अपना मुल्क छोडक़र शरणार्थी होकर कहीं और जाना पड़ा है, ऐसे अनगिनत लोगों की जिंदगी में लोग बिछुड़ते हैं, उनकी अपनी जगह छिन जाती है, लेकिन ऐसे बहुत से लोग अपनी जड़ों की तलाश करते हुए कामयाब भी होते हैं। हिन्दुस्तान में भी हर बरस दो-चार ऐसी कहानियां आती हैं जिनमें आधी सदी पहले बाहर गए हुए लोगों के बच्चे अपने पुरखों की तलाश करते हुए उन तक पहुंच जाते हैं। अब डीएनए मिलान करके लोगों को उनके संभावित परिवारों से मिलवाने वाली वेबसाईटें लगातार अधिक कामयाबी पा रही हैं, और अपने देश से बिछुड़े हुए लोग इन वेबसाईटों की मदद से एक बार फिर एक हो रहे हैं। 

जिंदगी में लोगों को नाकामयाब कोशिशों से हौसला नहीं छोडऩा चाहिए। बहुत कोशिशों के बाद जीतने वाले लोग, कामयाबी पाने वाले लोग वे ही होते हैं जो कि बहुत बार हारकर भी एक आखिरी कोशिश और करते हैं, और वही आखिरी कोशिश कामयाब होती है। जिंदगी में बहुत बार गिरना मायने नहीं रखता है, आखिरी बार गिरकर भी फिर उठकर खड़े होने का हौसला मायने रखता है, और लोगों को हार मानकर कोशिश या जिंदगी खत्म कर लेने के बजाय अपने हौसले को बनाए रखना चाहिए। 

एक बार फिर अमरीका की इसी असली फिल्मी कहानी पर लौटें तो मां-बाप 70 बरस से ऊपर के हो चुके हंै, खोई हुई दुधमुंही बेटी भी अब 53 बरस की हो चुकी है, और अब ये सब मिलकर अपनी खोई हुई जिंदगी के कुछ चुनिंदा पलों को एक बार फिर जी लेने की तैयारी कर रहे हैं। जिंदगी को लेकर नजरिया वही रखना चाहिए जो कि, आज फिर जीने की तमन्ना है, गाने के इन पहले शब्दों में है। और जो जिंदगियां इतनी फिल्मी नहीं भी रहती हैं, उन्हें भी कोशिश इसी दर्जे की करनी चाहिए। छत्तीसगढ़ के एक आईएएस कई बार सोशल मीडिया पर लिख चुके हैं कि स्कूल-कॉलेज में वे कितनी बार फेल हुए थे, कैसे खराब नंबर पाने के बाद भी वे कोशिश कर-करके यूपीएससी में कामयाब हुए, और आईएएस बने। ऐसी मिसालें कम मायने नहीं रखती हैं, ये लोगों को कोशिश जारी रखने का हौसला बंधाती हैं। 

आज एक दिक्कत यह भी हो गई है कि लोगों की उम्मीदें ऐसी आसमान छूती हो गई हैं कि स्कूली बच्चों को उनका मनपसंद मोबाइल नहीं मिलता, तो निराश होकर वे जान दे देते हैं। स्कूल की पढ़ाई में नंबर अच्छे नहीं आए, तो भी कुछ बच्चे जीना बेकार समझ लेते हैं। ऐसे तमाम लोगों को यह समझना चाहिए कि शुरुआती जिंदगी की नाकामयाबी के बाद आगे बढक़र दुनिया में कई लोग महानता के आसमान पर पहुंचे हैं। जाने कितने नोबल पुरस्कार विजेता होंगे जिन्हें स्कूल में अच्छे नंबर नहीं मिलते थे। दुनिया के कुछ सबसे कामयाब वैज्ञानिक भी स्कूल में फेल हुए हैं। इसलिए किसी भी नाकामयाबी से सबक लेकर आगे बढऩा ही जिंदगी है। अब अमरीका के ये मां-बाप, और उनकी बेटी आधी सदी से अधिक वक्त तक एक-दूसरे की तलाश करते रहे, और इस बीच अगर थककर उन्होंने हाथ डाल दिए रहते, तो उस आखिरी कोशिश के बिना कुछ नहीं होता जिससे कि वे आज एक हुए हैं। 

मीडिया और सोशल मीडिया के पास लोगों का हौसला बढ़ाने, या उसे पस्त करने की अपार ताकत है। जिंदगी से निराश लोग कम नहीं हैं, लेकिन उनकी जिंदगी में एक नई आस भरने का काम मीडिया भी कर सकता है, और अब सोशल मीडिया पर भी सकारात्मक नजरिए के लोग दूसरों तक कामयाबी की ऐसी असली कहानियां बढ़ा सकते हैं, खासकर उन लोगों तक जिन्हें कि उम्मीद की एक किरण की जरूरत है। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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