संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : इस ऐतिहासिक पदयात्रा के बाद राहुल क्या करें?
30-Jan-2023 4:00 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : इस ऐतिहासिक पदयात्रा  के बाद राहुल क्या करें?

photo : twitter

कांग्रेस सांसद और पार्टी के सबसे महत्वपूर्ण नेता राहुल गांधी की कन्याकुमारी से शुरू हुई पदयात्रा 136 दिनों में 12 राज्यों, 2 केन्द्र प्रशासित प्रदेशों के 75 जिलों से होती हुई कश्मीर के श्रीनगर में तिरंगा फरहाने के साथ खत्म हुई। 3500 किलोमीटर से अधिक की यह पदयात्रा 116 दिन रोजाना 23-24 किलोमीटर चली। जब यह शुरू हुई तो इसके नारे, नफरत छोड़ो, भारत जोड़ो, को लेकर राहुल गांधी का मखौल उड़ाया गया, और बहुत से लोगों को इसकी कामयाबी पर शक था। लेकिन सफर जैसे-जैसे आगे बढ़ा, राहुल को मिलने वाला जनसमर्थन एक सैलाब की तरह बढ़ते चले गया। कांग्रेस पार्टी तो इसके साथ थी ही, लेकिन दूसरी पार्टियों के भी दर्जनों नेता अलग-अलग दिनों पर इसमें शामिल हुए, रास्ते के गांव-कस्बे और शहर के लोग सडक़ों पर उमड़ पड़े, और राहुल गांधी इतने महीनों तक सिर्फ मोहब्बत और दिल जोडऩे, नफरत छोडऩे की बात दुहराने वाले हाल के हिन्दुस्तान के अकेले नेता बने। इस पदयात्रा का किसी चुनाव से कोई रिश्ता नहीं था, और वही मानो सबसे अच्छी बात थी। इसके बीच दो राज्यों में चुनाव हुए, लेकिन राहुल तकरीबन वहां से दूर ही रहे, और अपनी पदयात्रा में लगे रहे। 

हिन्दुस्तान के आज के मुख्यधारा के कहे जाने वाले तथाकथित मीडिया ने इससे एक दूरी बना रखी थी, लेकिन सोशल मीडिया की मेहरबानी से बिना किसी आडंबर के एक आम इंसान की तरह राहुल हर दिन दर्जनों तस्वीरों में लोगों के सामने आते रहे, लोगों से जुड़ते रहे, और लोग उनसे जुड़ते रहे। राहुल को इस पदयात्रा में मिले अपार जनसमर्थन की वजह से जो लोग उन्हें आज विपक्ष का सबसे बड़ा या सर्वमान्य नेता मानने और बताने की चूक कर रहे हैं, वे इस पदयात्रा की अहमियत को घटा भी रहे हैं। जहां तक हमें समझ पड़ता है, यह पदयात्रा ठीक अपने नारे को पूरा करते हुए आज टुकड़े-टुकड़े किए जा रहे हिन्दुस्तान को बचाने के लिए, सहेजने और जोडऩे के लिए निकाली गई थी, और उसने अपना वह मकसद हैरानी की हद तक पूरा किया है। जिस तरह आम तबकों के लोग, हर धर्म के लोग, हर उम्र के आदमी-औरत, और बच्चे राहुल के साथ कुछ दूर चलने के लिए होड़ करते रहे, उनसे लिपटकर पिघलते रहे, वह देखना अद्भुत रहा। आज के वक्त जब इस देश में पोशाक से जाति और धर्म पहचानने का फतवा दिया जा रहा है, तब राहुल एक सम्पूर्ण हिन्दुस्तानी की तरह, हर हिन्दुस्तानी के गले मिलते रहे, अनगिनत लोगों के हाथ थामकर उन्हें साथ चलाते रहे, और इसके बदले देश के लोगों के लिए मोहब्बत के अलावा उन्होंने कुछ नहीं मांगा। 

आज जब देश के बड़े-बड़े नेता मुंह खोलते हैं, और तेजाबी, साम्प्रदायिक नफरत की लपट निकलती है, वैसे में तकरीबन पांच महीने हर दिन 10-12 घंटे लोगों के बीच रहना, हर दिन अनगिनत लोगों से बात करना, पदयात्रा में जाने कितनी बार प्रेस से बात करना सब होते रहा, लेकिन न तो राहुल ने अपनी लोकप्रियता को लेकर कोई दावे किए, न ही अपनी अहमियत बखान करने की कोशिश की, और न ही उन्होंने भविष्य को लेकर इस यात्रा के योगदान का कोई दावा किया। हर मायने में वे एक आम इंसान की तरह रहते और चलते दिखे, और दाढ़ी और टी-शर्ट का उनका यह नया अवतार आज देश का सबसे चर्चित चेहरा बना हुआ है। जब उनके अगल-बगल के तमाम नेता, और दर्जनों सुरक्षा कर्मचारी ऊनी कपड़ों से लदे हुए थे, तब भी राहुल गांधी जिस तरह महज एक टी-शर्ट में चल रहे थे, उसने भी उन्हें लोगों की हैरानी का सबब बना दिया। उन्होंने इसकी जो वजह बताई, वह भी दिल छू लेने वाली थी कि उन्होंने ठंड में तीन गरीब बच्चियों को फटे कपड़़ों में देखा जिनके पास पहनने को गर्म कपड़े नहीं थे, तब उन्होंने तय किया कि जब तक वे कंपकंपाने नहीं लगेंगे, तब तक एक टी-शर्ट ही पहनेंगे, और वे पूरी ही पदयात्रा में वैसे ही रहे। 

राहुल की पदयात्रा को गांधी की किसी पदयात्रा से जोडक़र देखना राहुल के साथ ज्यादती होगी। कल उन्होंने श्रीनगर में पदयात्रा पूरी की है, और आज गांधी पुण्यतिथि है। लेकिन गांधी से तुलना के लिए एक लंबे इतिहास और बहुत ऊंची महानता की जरूरत पड़ती है, और राहुल की किसी बात से ऐसा नहीं लगता है कि वे खुद अपनी इस पदयात्रा का महिमामंडन चाहते हैं। उनकी पार्टी के लोगों को भी चाहिए कि राहुल को महान दिखाने के फेर में कोई ऐसे दावे न करें जिनसे कि उनकी कामयाबी को शिकस्त मिले। देश के लोगों ने महीनों तक राहुल गांधी को आम लोगों के बीच बिना किसी आडंबर के, और बिना फैशन परेड के, बिना नफरत की कोई बात किए, और बिना कोई दावे किए देखा है, और इस अभूतपूर्व स्थिति को बिना कुछ कहे एक अहसास की तरह बने रहने देना चाहिए, बजाय फिजूल की बातें करके उसके असर को खत्म करने के। कांग्रेस के कुछ लोगों ने राहुल को विपक्ष का प्रधानमंत्री का चेहरा बताने का अतिउत्साह भी इसी दौरान दिखाया है, और ऐसी बातों ने राहुल का नुकसान करने के अलावा कुछ नहीं किया है। ऐसा कहने वाले लोगों ने हिन्दुस्तान में प्रचलित एक पुरानी कहावत नहीं सुनी है कि सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठमलट्ठा। इस यात्रा को किसी भी चुनावी मकसद और संभावना से जोडक़र देखना अपने मन के भीतर तो लोग कर सकते हैं, लेकिन बयानों में इसे लेकर कुछ भी कहना न सिर्फ राहुल और कांग्रेस के खिलाफ जाएगा, बल्कि लोकतंत्र के भी खिलाफ जाएगा। एक लोकतांत्रिक देश में उसके सबसे नाजुक दौर में सिर्फ चुनावों को ध्यान में रखकर बयानबाजी किसी के लिए अच्छी नहीं है। 

राहुल गांधी को लोगों से मिलने का यह सिलसिला जारी रखना चाहिए। इस हौसलेमंद नौजवान से अब यह उम्मीद करना कुछ ज्यादती होगी कि वह गुजरात से उत्तर-पूर्व तक एक और पदयात्रा निकाल ले, हालांकि देश को आज इसकी जरूरत है, भारत को जोडऩे की जरूरत गुजरात से असम तक भी है। लेकिन ऐसा नहीं हो सकता है तो भी राहुल गांधी को उन प्रदेशों का दौरा करना चाहिए जो कि भारत जोड़ो पदयात्रा के रास्ते में नहीं आए थे। जितने राज्यों में वे गए हैं, उससे डेढ़ गुना राज्य अभी बाकी हैं, और कांग्रेस का संगठन तो हर राज्य में है। इसलिए राहुल गांधी इनमें से हर राज्य में जाकर वहां पार्टी के बैनर से परे भी आम लोगों से बात कर सकते हैं, अपना संस्मरण सुना सकते हैं, और लोगों की बात सुन सकते हैं। हो सकता है कि ऐसे हर प्रदेश में वे एक-एक दिन पैदल चल लें, और उसके पहले और बाद लोगों से बात कर लें। उन्हें अगले कुछ वक्त कांग्रेस के घरेलू पचड़ों से परे रहना चाहिए, और देश के माहौल को बेहतर बनाने के लिए शुरू की गई अपनी कोशिश को जारी रखना चाहिए। इस सर्द पदयात्रा में हजारों किलोमीटर का यह टी-शर्ट में पैदल सफर राहुल को तपाकर अधिक मजबूत कर गया है, और अगला काफी वक्त राहुल को चुनावी राजनीति से परे रहकर देश के लोगों में नफरत खत्म करने, और मोहब्बत जगाने में लगाना चाहिए। आज भारतीय राजनीति में ऐसे किरदार की जगह खाली थी, उसे बीते इन महीनों में राहुल ने बखूबी भरा है, और उन्हें यही सिलसिला कुछ और वक्त जारी रखना चाहिए। लोगों को इससे चुनावी हासिल का हिसाब नहीं लगाना चाहिए क्योंकि लोकतंत्र में इंसानियत और मोहब्बत चुनावी फतह से ऊपर की बातें हैं। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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