संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अटल और अमर जहर से बचने चौकन्नापन जरूरी
27-Feb-2023 4:54 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अटल और अमर जहर से   बचने चौकन्नापन जरूरी

दुनिया में कितनी चीजें अटल हो सकती हैं? जितने तलाक हो रहे हैं उन्हें देखते हुए शादियां भी सात जन्म तो दूर, एक जन्म भी अटल रह जाए तो बहुत है, राजनीति में जो लोग हैं वे जिस रफ्तार से पार्टियां बदलते हैं, उनकी प्रतिबद्धता उतनी ही अटल है जितनी कि पारे की बूंद की स्थिरता रहती है। लोगों में ईमानदारी अगर कूट-कूटकर भरी है, तो भी कोई वक्त ऐसा आ सकता है जब उनकी जरूरत बहुत बड़ी हो, और दाम ईमानदारी के मुकाबले बहुत अधिक बड़ा हो, तो फिर वह ईमानदारी भी अटल नहीं रह जाती। प्रेमसंबंधों में कब देहसंबंध शुरू हो जाते हैं, और कब दोनों ही टूट जाते हैं, इसका भी कोई ठिकाना नहीं रहता, और बहुत से मामलों में इसके बाद महिला अदालत भी चली जाती है कि उसके साथ शादी का वायदा करके बलात्कार किया गया था, इसलिए प्रेम और देहसंबंध भी अटल नहीं हैं। लेकिन आज दुनिया में बहुत बड़ी फिक्र बने हुए कई किस्म के जहरीले पदार्थ जरूर अटल हैं जो कि कभी खत्म नहीं होने वाले हैं, जिन्हें फॉरएवर केमिकल्स कहा जाता है, यानी चिरकालिक रसायन। चिर काल का मतलब ही है हमेशा के लिए, और दुनिया में आज हजारों किस्म के ऐसे जहर हैं जो कि कुदरत से लेकर सार्वजनिक जगहों तक, और इंसानों के बदन में इक_ा हो गए हैं, और जो कभी कहीं नहीं जाने वाले हैं, और ये एक बड़ी फिक्र का सामान हैं। 

फॉरएवर केमिकल्स यानी पीएफएएस अकेले योरप में ही 17 हजार से ज्यादा जगहों पर पाए गए हैं, और इनमें से दो हजार जगहों को तो हॉटस्पॉट कहा जाता है यानी वहां लोगों के ऐसे जहर को पाने का खतरा बहुत अधिक है। एक ताजा रिपोर्ट बताती है कि इंसानों के बनाए हुए करीब 45 सौ ऐसे पदार्थ हैं जो फॉरएवर केमिकल्स के दायरे में आते हैं, और ये जानवरों, मछलियों, डेयरी के दूध से लेकर इंसान के बदन और मां के दूध तक फैले हुए हैं। योरप के अलावा अमरीका जैसे कड़े पैमानों वाले देश में 98 फीसदी आबादी के बदन में चिरकालिक रसायन मिले हैं। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि भारत जैसे लापरवाह और भ्रष्ट देश में प्रदूषण के पैमानों पर कोई भी अमल न होने से यहां के उद्योग और कारोबार किस बड़े पैमाने पर ये रसायन फैला रहे होंगे। भारत जैसे देश में तो जानवरों से अधिक दूध पाने के लिए उन्हें तरह-तरह के इंजेक्शन लगाए जाते हैं, पोल्ट्री उद्योग जरूरत से अधिक एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करता है, जानवर घूरों पर खाते हैं, और वहां से कई किस्म का जहर पाते हैं। हिन्दुस्तान जैसे देश में जहरीले सामानों की पैकिंग को नष्ट करने के कोई वैज्ञानिक तरीके नहीं हैं, खेतों में ऐसा अंधाधुंध कीटनाशक इस्तेमाल होता है कि पंजाब के कई इलाकों से कैंसर मरीजों की पूरी रेलगाडिय़ां ही राजस्थान के कैंसर अस्पताल जाती हैं। हिन्दुस्तान के खनिज इलाकों में तरह-तरह का प्रदूषण फैला हुआ है, और सारे खनिज इलाके तरह-तरह के खनिज-आधारित कारखाने भी चलाते हैं, और इन कारखानों में कई तरह के फॉरएवर केमिकल्स का इस्तेमाल होता है। दुनिया में कपड़ा उद्योग में धुलाई या चमड़े को पकाने जैसे काम में जिन रसायनों का इस्तेमाल होता है, उनसे निकले हुए फॉरएवर केमिकल्स नालों से होते हुए सीधे नदी पहुंच जाते हैं, और सरकार का, समाज का उस पर कोई बस नहीं रहता। 

अब जो लोग अपने शरीर में पीएफएएस दर्जे के ऐसे जहर लेकर चल रहे हैं, उनमें से बहुत से हो सकता है कि आज खतरनाक स्तर के नीचे हों, लेकिन कब बदन में यह जहर बढक़र खतरनाक स्तर के ऊपर चले जाएगा, इसकी कोई जांच भी हिन्दुस्तान जैसे देश में सुनी भी नहीं जाती हैं। यह जरूर पता लगते रहता है कि खेतों में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशक मां के दूध में भी पाए जाते हैं, और उससे होते हुए वे दुधमुंहे बच्चों में भी पहुंच जाते हैं। इसमें कई किस्म के फॉरएवर केमिकल्स भी हैं। लेकिन हम खास हिन्दुस्तान जैसे देश को लेकर जब सोचते हैं तो यह लगता है कि तकरीबन तमाम आबादी किसी भी किस्म के प्रदूषण को लेकर बेफिक्र है क्योंकि उसने दिल्ली जैसी जहरीली हवा में भी जीना सीख लिया है। नतीजा यह है कि बदन में धीरे-धीरे इकट्ठे होने वाले ऐसे खतरे की तरफ से हम सब बेफिक्र रहते हैं क्योंकि इससे लीवर और किडनी को नुकसान हो सकता है, लेकिन वह धीमी रफ्तार से होता है, इनसे कैंसर हो सकता है, लेकिन उसकी शिनाख्त देर से होती है, और यह भी पता नहीं लगता है कि कैंसर किस वजह से हुआ है, इनसे यौन शक्ति कम हो सकती है, लेकिन यौन शक्ति कम होने की और भी कई वजहें हो सकती हैं, और लोग ऐसे जहर से उसे जोडक़र देखना इसलिए नहीं सीख सकते क्योंकि ऐसे जहर की जानकारी भी बहुत कम है। दिक्कत यह है कि शरीर में एक बार पहुंचा हुआ ऐसा जहर शरीर से बहुत धीरे-धीरे बाहर निकलता है, और बहुत से लोगों में यह भी हो सकता है कि जिस रफ्तार से यह बाहर निकलता हो, उससे अधिक रफ्तार से यह भीतर पहुंचता हो, और भीतर इसका स्तर बढ़ते चलता हो। रोज खाने के सामानों, मछली, मांस, दूध, अंडे, और सब्जियों में ये जहर या इस दर्जे के रसायन खतरनाक स्तर पर हो सकते हैं, और हो सकता है कि इससे आने वाली तमाम पीढिय़ों तक पहुंचने वाले डीएनए भी प्रभावित होते हों। 

आज दुनिया भर में कारोबारियों के आपराधिक स्तर के गैरजिम्मेदार होने के सुबूत आते ही रहते हैं। बहुत से बड़े-बड़े अंतरराष्ट्रीय ब्रांड जहरीले सामान बनाकर उन्हें ग्राहकों के बीच खपाते रहते हैं, और बच्चों पर इस्तेमाल होने वाले पाउडर जैसे आम इस्तेमाल के सामान बनाने वाली एक सबसे बड़ी कंपनी जॉन्सन एंड जॉन्सन अंतरराष्ट्रीय मुकदमे झेल रही है क्योंकि उसके इस सामान से बच्चों को कैंसर होने का खतरा पाया गया है। आज जब योरप और अमरीका जैसे कड़े सुरक्षा पैमानों वाले देश भी हजारों किस्म के चिरकालिक जहर झेल रहे हैं, तो हिन्दुस्तान में तो यह खतरा दर्जनों या सैकड़ों गुना अधिक होगा। आज विज्ञान की समझ रखने वाले लोगों को इसकी और जानकारी तलाश कर उसे हिन्दुस्तानी संदर्भ में सरल भाषा में तैयार करके लोगों के बीच बांटना चाहिए ताकि ऐसे फॉरएवर केमिकल्स को बढ़ाना रोका जा सके। जो लोग विज्ञान पढ़े हुए हैं, उनकी पढ़ाई से समाज को कोई फायदा तब तक नहीं है जब तक वे खतरे के ऐसे संकेतों को आम लोगों की भाषा में लिखकर, कहकर उसे अधिक से अधिक लोगों तक न पहुंचाएं। जो लोग इंटरनेट का मामूली इस्तेमाल भी करना जानते हैं वे फॉरएवर केमिकल्स पर और जानकारी निकाल सकते हैं, और अपनी समझ बढ़ा सकते हैं, आसपास के और लोगों को भी चौकन्ना कर सकते हैं।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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