संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : जुल्म की एक कहानी, बाकी जुल्म की शिनाख्त और खात्मे के लिए काफी
06-Jun-2023 3:56 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : जुल्म की एक कहानी, बाकी जुल्म की शिनाख्त और खात्मे के लिए काफी

छत्तीसगढ़ के कांकेर में सरकारी मदद से चलने वाले एक अनाथाश्रम का एक वीडियो सामने आया जिसमें वहां काम करने वाली युवती दो बहुत छोटी बच्चियों को पटक-पटककर मार रही थी। वीडियो पिछले बरस का बताया जा रहा है, और वहां लगे सीसीटीवी कैमरे की इस रिकॉर्डिंग पर राज्य सरकार का महिला और बाल विकास विभाग जांच करके इस मामले को अच्छी तरह दफन कर चुका था, अब फिर यह कब्र फाडक़र निकला है तो हंगामा मचा है। नीचे से ऊपर तक भ्रष्ट इस विभाग के लोगों ने निजी संस्थाओं को ऐसे सेंटर चलाने के लिए अनुदान देने का धंधा बना रखा है, और जिस तरह गौशाला के अनुदान में हिस्सा खाया जाता है, उसी तरह बच्चों से जुड़े हुए अधिकतर ऐसे केन्द्रों में यही तरीका चलता है। यह तो एक वीडियो सुबूत मौजूद है, वरना इसके रहते हुए भी पिछले बरस तो सबने मिलकर यह मामला दफन कर ही दिया था। बच्चों पर हिंसा करने वाली इस युवती पर एफआईआर हुई है, और उसकी गिरफ्तारी हुई है। 

छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाके में कांकेर जिला हाईवे पर है, और यहां जिला मुख्यालय में यह मामला सामने आया है। इससे यह अंदाज लगाया जा सकता है कि प्रमुख सडक़ों से दूर के जो इलाके हैं, वहां पर हालत इसके मुकाबले अधिक बुरी होना तय है क्योंकि वहां मीडिया का भी ऐसा फोकस नहीं रहता है। 

अब अगर पुरानी घटनाओं को याद करें तो यही कांकेर है जहां पर दस बरस पहले झलियामारी आदिवासी छात्रावास में 15 नाबालिग बच्चियों के साथ संगठित तरीके से लंबे समय तक बलात्कार का सिलसिला चला। इसमें एक शिक्षाकर्मी और चौकीदार हॉस्टल की महिला वार्डन के साथ मिलकर बच्चियों से बलात्कार करते थे। अदालत से इन तीनों को उम्रकैद हुई थी। अदालत ने इन बच्चियों को एक करोड़ रूपये से अधिक का कुल मुआवजा देने का भी फैसला दिया था। इसके साथ ही शिक्षा विभाग के कुछ और अधिकारियों को पांच-पांच बरस की कैद हुई थी। छत्तीसगढ़ की ही एक दूसरी घटना जो सामने आती है वह उत्तर छत्तीसगढ़ के सरगुजा इलाके में जशपुर जिले की है, और वहां अभी दो-तीन बरस पहले मूकबधिर बच्चों के एक सरकारी आश्रय केन्द्र में नशे में धुत्त चौकीदार और इंचार्ज ने लड़कियों का पीछा कर-करके, दौड़ा-दौड़ाकर उन्हें दबोचा था। वहां की महिला इंचार्ज ने जब रोकने की कोशिश की, तो इन लोगों ने उसे कमरे में बंद कर दिया था। यह थाने से सौ मीटर की घटना थी, और यौन शोषण की शिकार इन बच्चियों में से एक नाबालिग के साथ बलात्कार भी हुआ था। इस मामले में भी विभाग के लोगों ने सब कुछ दबाने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन फिर एक कर्मचारी से यह बात बाहर निकली थी। और उसके बाद एफआईआर हुई।

छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में जहां पर मीडिया की बड़ी मौजूदगी है वहां भी अगर खुद सरकार के या सरकारी अनुदान से चलने वाले केन्द्रों का यह हाल है, जिला मुख्यालयों में ऐसा हाल है जहां कि कलेक्टर-एसपी बसते हैं, तो फिर बाकी जगहों का हाल तो इससे बहुत अधिक खतरनाक और नाजुक होता होगा। अभी कल छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के एक जज जो कि विधिक सेवा प्राधिकरण के प्रभारी भी हैं, उन्होंने, जस्टिस गौतम भादुड़ी ने पूरे प्रदेश के ऐसे केन्द्रों की जांच करने और उनकी रिपोर्ट भेजने को कहा है। किसी घटना के हो जाने के बाद यही उसका सबसे सही तरीका हो सकता है कि उस तरह के खतरे वाले दूसरे तमाम केन्द्रों की तुरंत जांच करवाई जाए। किसी दुर्घटना या जुर्म को रोकना हर बार मुमकिन नहीं हो पाता, लेकिन उनसे सबक लेना तो किसी भी मामूली समझदार के भी बस की बात रहती है। 

हमारा यह भी ख्याल है कि बच्चों के खिलाफ होने वाले किसी भी तरह के जुर्म में बेहतर अफसरों को जांच में लगाना चाहिए, रिपोर्ट पर तुरंत कड़ी अदालती कार्रवाई शुरू होनी चाहिए, और ऐसे लोगों की जमानत आसानी से नहीं होनी चाहिए क्योंकि दिल्ली में अभी बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी न होने का, और उसके खुले रहने का असर यह देखने मिल रहा है कि शायद वहां नाबालिग महिला पहलवान ने अपनी शिकायत वापिस ले ली है। सरकारी भ्रष्टाचार की कमाई से संपन्न लोग मामले को इसी तरह प्रभावित कर सकते हैं, इसलिए बच्चों के खिलाफ जुर्म के मामलों में जमानत नहीं होनी चाहिए। 
हमारा यह भी मानना है कि सिर्फ सरकारी अमला और उसके अनुदान से चलने वाली संस्थाओं के बीच अगर बात सीमित रहेगी, तो वह भ्रष्टाचार की वजह से हर जुर्म को दबा देगी। ऐसे तमाम केन्द्रों में, अनाथाश्रम से लेकर हॉस्टल तक में निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों को भी रखना चाहिए, और वकीलों के संगठन जैसे कुछ संगठनों के पदाधिकारियों को भी रखना चाहिए जो कि कानून का टूटना समझ सकें। छत्तीसगढ़ के लिए यह घटना जिस तरह खबरों में आई है, वह ऐसा मौका लेकर आई है कि राज्य के बाकी सभी केन्द्रों के इंतजाम को सुधार लिया जाए। हाईकोर्ट जज का यह आदेश भी ऐसा मौका दे रहा है, और राज्य में अगर बाकी कलेक्टर-एसपी जिम्मेदार होंगे, बाकी विभागों के प्रमुख और दीगर अफसर जिम्मेदार होंगे, तो वे अपना-अपना घर सुधारने में लग जाएंगे। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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