संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : भरोसे के फोटो-वीडियो जानलेवा हो जाते हैं, सब को सावधान करना जरूरी
14-Jun-2023 4:24 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : भरोसे के फोटो-वीडियो जानलेवा हो जाते हैं, सब को सावधान करना जरूरी

फोटो : सोशल मीडिया

राजस्थान की बाड़मेर की एक खबर है कि पुलिस ने एक ऐसे नौजवान को पकड़ा है जो लड़कियों और महिलाओं के अश्लील वीडियो बनाकर उन्हें ब्लैकमेल करता था। उसके पास से जो सुबूत मिले हैं उनसे पता चलता है कि अब तक वह 40 से अधिक नाबालिगों और महिलाओं के अश्लील फोटो, और वीडियो बनाकर उनका यौन शोषण कर चुका था, और ब्लैकमेल कर चुका था। पुलिस के मुताबिक उसने अपनी होने वाली सास का भी अश्लील फोटो-वीडियो बनाकर फैला दिया था, और यह बात फैलने के बाद उसका रिश्ता भी टूट गया। ऐसी ही परेशान एक नाबालिग लड़क़ी और उसकी मां ने आत्महत्या कर ली थी जिसकी वजह से यह जांच शुरू हुई, और मुकेश दमामी नाम का यह नौजवान गिरफ्तार हुआ। ऐसे मामले चारों तरफ से आ रहे हैं जिनमें लोग किसी का भरोसा जीतकर उनके कुछ फोटो-वीडियो हासिल कर लेते हैं, और फिर उनका बेजा इस्तेमाल करते हैं। आज सोशल मीडिया और इंटरनेट की मेहरबानी से लोगों के लिए यह बड़ा आसान हो गया है कि जिसे ब्लैकमेल या बदनाम करना हो उनके सच्चे या गढ़े हुए फोटो और वीडियो पोर्नो वेबसाइटों पर अपलोड कर दें। बहुत से लोग बदला निकालते हुए इनके साथ-साथ उन लोगों के फेसबुक और इंस्टाग्राम के अकाऊंट के लिंक भी जोड़ देते हैं, और उनके नाम-नंबर भी डाल देते हैं। बहुत सी आत्महत्याएं ऐसे ही मामलों में फंसी हुई लड़कियों और महिलाओं की होती हैं, और कई मामलों में तो वीडियो कॉल करके बिना कपड़ों के वीडियो बनाने में लोगों को फंसा लिया जाता है, और फिर उन्हें ब्लैकमेल किया जाता है। बहुत से लोग तो ऐसे मामलों में फंसने के बाद अपनी दौलत का एक बड़ा हिस्सा गंवाने के बाद भी आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं। 

टेक्नालॉजी से लैस यह वक्त ऐसा आ गया है कि लोगों को अपने आसपास के सबसे भरोसेमंद लोगों से भी सावधान रहने की जरूरत है, और खुद अपने शौक के लिए भी अपनी किसी चूक से बचना चाहिए। लोग अपने निजी पलों के फोटो और वीडियो इस भरोसे के साथ बना लेते हैं कि वे उन्हीं के मोबाइल फोन या कम्प्यूटर पर हैं। लेकिन इन दिनों हजार ऐसी वजहें हैं जिनकी वजह से आपके फोन और मोबाइल तक कभी दूसरे लोगों की, कभी मैकेनिक और सर्विस सेंटर की, कभी परिवार और दफ्तर के लोगों की पहुंच हो जाती है। और आसपास अगर अधिक धूर्त लोग हैं, अगर आप महत्वपूर्ण हैं और किसी सरकार के निशाने पर हैं, तो फिर आपके फोन-कम्प्यूटर पर तरह-तरह से घुसपैठ भी की जा सकती है। इसलिए उसमें एक बार दर्ज हो चुकी कोई चीज किस तरह बाद में भी कभी निकाली जा सकती है इसका सुबूत देखना हो तो छत्तीसगढ़ में इन दिनों ईडी और आईटी के जब्त किए गए मोबाइल फोन और कम्प्यूटर से निकाली गई जानकारी को देखना चाहिए जिसे लोगों ने सोचा भी नहीं रहा होगा कि उन्हें उनके ही खिलाफ इस्तेमाल किया जाएगा। लेकिन आज एक-एक मोबाइल फोन की जानकारी मानो कफन फाडक़र सामने आ रही है, और अपने मालिकों का मुंह चिढ़ा रही है, उन्हें जेल तो भेज ही रही है। 

जो आज दोस्त रहते हैं, वे कल दोस्त भी बने रह सकते हैं, और दुश्मन में भी तब्दील हो सकते हैं, इसलिए किसी पर भी इतना भरोसा नहीं करना चाहिए कि अपने लिए शर्मिंदगी और खतरे वाली बातें उनके हाथ दे दी जाएं। इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए कि पीठ में गहरा छुरा वही लोग भोंक सकते हैं जो कि सबसे करीब होते हैं, दूर के लोग तो पत्थर चला सकते हैं, या गोली चला सकते हैं, जिनसे बचा भी जा सकता है, लेकिन करीब से पीठ में भोंके गए छुरे से बचना मुश्किल रहता है। इंसान की दिक्कत यह रहती है कि उनके भीतर बुनियादी रूप से एक अच्छी इंसानियत रहती ही है, और वह किसी पल भरोसेमंद लग रहे लोगों को जिंदगी भर के लिए भरोसे के लायक मानने की गलती करवा देती है। नतीजा यह होता है कि लोग अपने आपसे भी अधिक भरोसेमंद मानकर उनके साथ तमाम राज और अंतरंग पल बांट लेते हैं। लोगों को याद रखना चाहिए कि अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के साथ एक वक्त गर्मजोशी का अफेयर रखने वाली मोनिका लेविंस्की ने संसद में महाभियोग के दौरान क्लिंटन के दाग-धब्बों वाले अपने संभालकर रखे गए कपड़े भी सुबूत के बतौर पेश कर दिए थे। और इसके भी पहले उसने किसी और से यह राज खोला भी था। अभी हम मातहत के यौन शोषण के क्लिंटन के काम पर चर्चा नहीं कर रहे हैं, उसे अनदेखा भी नहीं कर रहे हैं, लेकिन आज की इस चर्चा में इस मामले के उस पहलू का महत्व है कि कोई बात राज नहीं रह जाती है, बंद कमरे में क्लिंटन और मोनिका के बीच जो हुआ था, उसके पल-पल का बखान सार्वजनिक दस्तावेजों में दर्ज है। 

सरकारों को भी चाहिए कि इस किस्म के अपराधों का बोझ घटाने के लिए, या बढऩे से रोकने के लिए उन्हें जनता के बीच जागरूकता की कोशिश करनी चाहिए। यह मानकर चलना गलत होगा कि इतनी समझदारी तो हर किसी में होती ही है। सरकारों को सार्वजनिक मंचों पर, और स्कूल-कॉलेज में, जनसंगठनों और लोगों की भीड़ के बीच ऐसे अभियान चलाने चाहिए जिससे लोग खतरों से रूबरू हो सकें, और कुछ सीख सकें। हमारा मानना है कि समाज की जो बर्बादी बेवकूफी में हो रही है, और कुल मिलाकर हर चीज का बोझ सरकार पर ही जांच और मुआवजे के लिए आता है, इसलिए ऐसे जुर्म से लोगों को वक्त रहते सावधान करना चाहिए।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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