संपादकीय

दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अश्लील वीडियो के शिकार कांग्रेस विधायक के आंसुओं से सबक लेने की जरूरत..
07-Nov-2023 4:21 PM
दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अश्लील वीडियो के शिकार  कांग्रेस विधायक के आंसुओं से सबक लेने की जरूरत..

देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के तहत आज से मतदान शुरू हो गया है। छत्तीसगढ़ की 20 विधानसभा सीटों पर वोट डाले जा रहे हैं। इसके ठीक पहले तक अलग-अलग पार्टियों की तरफ से तरह-तरह की धोखाधड़ी और जालसाजी पोस्ट की जा रही है, कुछ सेक्स-वीडियो भी चर्चा में आने की बात है जिसे लेकर कांग्रेस के एक विधायक पत्रकारों के बीच रोते हुए नजर आए, उन्होंने इसे गढ़ा हुआ बताया। लेकिन गढ़े हुए सेक्स-वीडियो से भी एक परिवार किस तरह तबाह किया जा सकता है, इसे छत्तीसगढ़ के इस कांग्रेस विधायक ने बहुत तकलीफ के साथ रोते-रोते बखान किया, और कहा कि उनके परिवार में भी मां-बहन, बीवी-बेटी सभी हैं, और सेक्स का उनका फर्जी वीडियो गढक़र अगर कोई चुनाव जीतना चाहते हैं तो वे जीत लें, उन्हें ऐसी जीत नहीं चाहिए। इस दर्द को समझा जा सकता है। ऐसी तकलीफ के बीच अगर ऐसे हमले के शिकार बेकसूर लोग खुदकुशी कर लें, तो उसके लिए कौन जिम्मेदार रहेंगे? चुनावों की गंदगी अगर इस हद तक पहुंच रही है, तो यह भी सोचने की बात है कि देश की टेक्नालॉजी और उससे जुड़े कानून क्या कर रहे हैं? जो विधायक न ईडी की कार्रवाई पर रोया, न अदालती कटघरे में नाम आने पर रोया, वह एक ऐसा सेक्स-वीडियो सामने आने पर टूट गया, और बिखर गया। 

लोगों की निजी जिंदगी में इस हद तक आग लगाने वाली साजिशें अब और अधिक आसान और खतरनाक हो गई हैं क्योंकि अब कम्प्यूटर पर मौजूद डीपफेक टेक्नालॉजी ने यह आसान कर दिया है कि किसी के वीडियो पर किसी का चेहरा या सिर लगा देना। और इसका इस्तेमाल भी धड़ल्ले से होने लगा है। इसकी ताजा खबर अभी बनी जब बॉलीवुड की एक एक्ट्रेस का डीपफेक वीडियो सामने आया जिसमें किसी और के बदन पर इस एक्ट्रेस का चेहरा लगा दिया गया। इससे जुड़ी खबर बताती हैं कि इसी बरस अब तक करीब डेढ़ लाख डीपफेक वीडियो इंटरनेट पर डाले गए हैं, और दुनिया की कुछ कंपनियां इन्हें बनाने की तकनीक भी बना रही हैं, और कुछ बड़ी-बड़ी कंपनियां इन्हें पकडऩे की तकनीक भी। ऐसे में इस बात को भी याद रखने की जरूरत है कि डीपफेक फोटो या वीडियो बनाने की तकनीक कुछ वक्त से चलन में है, और उसके बाद अब ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस भी आ गया है, और इसकी मदद से हो सकता है कि डीपफेक वीडियो बनाना अधिक आसान हो जाए, और अधिक असली लगते हुए वीडियो बनाने का काम तेज हो जाए। वैसे ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस कंपनियां यह कोशिश भी कर रही हैं कि उनके औजारों से बनाए जाने वाले किसी भी तरह के वीडियो और फोटो पर औजारों की एक छाप दिखती रहे, ताकि उनके गढ़े होने की जानकारी लोगों को मिल सके। लेकिन इन दिनों हिन्दुस्तान जैसे चुनावी माहौल में, और यहां की राजनीति में नकली वीडियो, नकली ऑडियो बनाकर किसी की भी चुनावी और राजनीतिक संभावनाओं को खत्म करने का जो खतरनाक सिलसिला चला हुआ है, वह भयानक है। 

हमारा ख्याल है कि किसी की निजी जिंदगी को इस तरह तबाह करने की हरकत, जिससे कि एक मजबूत सत्तारूढ़ विधायक सरीखा व्यक्ति फूट-फूटकर रो पड़े, और चुनाव को हार जाना बेहतर माने, ऐसी नौबत लाने वाली साजिशों के लिए एक अधिक कड़े कानून की जरूरत है। जो लोग सोच-समझकर किसी की निजी जिंदगी को इस हद तक बर्बाद करते हंै, पूरे के पूरे परिवार को खुदकुशी के कगार पर धकेल देते हैं, उनके लिए सूचना तकनीक की मामूली सजा से परे एक कड़ी सजा होनी चाहिए जो कि आत्महत्या को मजबूर करने पर होने वाली सजा जैसी रहनी चाहिए। दूसरी बात यह भी है कि पुराने परंपरागत जुर्म पर होने वाली सजा के अंदाज में अगर नई टेक्नालॉजी के जुर्म देखे जाएंगे, तो एक जुर्म पर सजा के पहले लाखों वैसे जुर्म और हो चुके रहेंगे। इसलिए हमारा यह भी ख्याल है कि कम्प्यूटर और सूचना तकनीक, इंटरनेट और दूसरे संचार साधनों से होने वाले जुर्म के लिए एक अलग अदालत होनी चाहिए। ऐसा इसलिए भी जरूरी है कि अधिकतर जजों को कम्प्यूटर और इससे जुड़ी तकनीक की अधिक जानकारी रहती नहीं है। यह नई पीढ़ी की ऐसी टेक्नालॉजी है जिसे इस पेशे और कारोबार से जुड़े लोग ही अधिक समझते हैं। इसलिए हमारा ख्याल है कि न्यायपालिका को जिलों के स्तर पर एक आईटी कोर्ट बनाना चाहिए जहां पर एक अलग समझ और जानकारी वाले जज रहें, और सरकारी वकीलों में भी आईटी-कम्प्यूटर के जानकार वकील रहने चाहिए, जो कि वकालत के साथ-साथ इस किस्म की पढ़ाई किए हुए हों, या बाद में इस तकनीक का अलग से प्रशिक्षण पाए हुए हों। परंपरागत जानकारी और समझ वाले जज और वकील 21वीं सदी की इस भयानक नौबत से निपटने के लायक नहीं हैं। 

लोगों को लग सकता है कि बात-बात पर अलग-अलग किस्म की अदालतों सुझाने से अदालतों का रोजमर्रा का काम प्रभावित होगा। लेकिन हमारी समझ यह कहती है कि आईटी एक्ट से जुड़े हुए जितने किस्म के जुर्म न सिर्फ राजनीति और चुनाव में, बल्कि निजी ब्लैकमेलिंग में, सोशल मीडिया पर बदनाम करने में, साइबर-ठगी में, दूसरे किस्म की कम्प्यूटर जालसाजी में सामने आ रहे हैं, वे जिला स्तर पर एक अदालत के लिए काफी दिख रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट और केन्द्र सरकार को यह सोचना चाहिए, और ऐसा ढांचा तैयार करने के लिए देश की मौजूदा लॉ-यूनिवर्सिटीज में अलग से कोर्स चलाए जा सकते हैं जिनमें चुनिंदा जजों और वकीलों को टेक्नालॉजी के विशेषज्ञ, और संबंधित कानूनों के विशेषज्ञ अलग किस्म से तैयार कर सकें। आज सूचना तकनीक और संचार तकनीक की मिलीजुली साजिशों से लोगों की जिंदगी जिस हद तक तबाह की जा रही है, उसे देखते हुए देश की न्याय व्यवस्था तय करने वाले लोगों को कुछ कल्पनाशीलता भी दिखानी चाहिए, वरना तरह-तरह के मुजरिम लोगों को लूटते रहेंगे, और उनकी निजी जिंदगी को तबाह करते रहेंगे। टेक्नालॉजी छलांगें लगाकर आगे बढ़ रही है, और उसके साथ-साथ अगर साइबर पुलिसिंग, और ऐसे जुर्मों की जांच के लिए एजेंसियां बेहतर तैयार नहीं होंगी, अदालतें बेहतर प्रशिक्षित नहीं होंगी, तो फिर जनता के महफूज रहने का हक कहीं भी मुजरिमों और ब्लैकमेलरों की रफ्तार से मेल नहीं खा सकेगा। 

यह लिखते-लिखते ही खबर दिख रही है कि छत्तीसगढ़ के चर्चित महादेव ऑनलाईन सट्टा एप्लीकेशन को केन्द्र सरकार ने ब्लॉक किया है, और कुछ घंटों के भीतर ही इसके गिरोह ने नया लिंक जारी कर दिया, और यह भी कहा है कि दांव लगाने वालों के आईडी और पासवर्ड पुराने ही रहेंगे। अब क्या बिजली की रफ्तार से होने वाले संगठित अपराधों का कोई मुकाबला अंग्रेजों के वक्त के ढर्रे पर चल रही पुलिस और अदालतें कर सकती हैं? और साथ-साथ यह भी कि अब अगर लोगों के फर्जी सेक्स-वीडियो डीपफेक तकनीक से एकदम असली दिखते हुए बनने लगेंगे, तो कितने परिवार खत्म होंगे, कितने लोग खुदकुशी करेंगे? 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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