संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : इन सडक़ हादसों से सबक लिए बिना मौतें जारी रहेंगी
19-Nov-2023 2:54 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : इन सडक़ हादसों से सबक लिए बिना मौतें जारी रहेंगी

बहुत से ऐसे हादसे होते हैं जिन्हें लेकर कोई जागरूकता नहीं फैल पाती। जैसे सडक़ों पर आए दिन लोग मारे जाते हैं, लेकिन उनसे कोई सबक नहीं लेते, न ही सरकारें, और न ही सडक़ों को इस्तेमाल करने वाले बाकी लोग। ऐसे में जब कोई चर्चित हादसा होता है, तो कम से कम उसके बहाने एक ऐसी चर्चा छिडऩी चाहिए कि लोगों का ध्यान उस तरफ जाए, सरकारें भी थोड़ा संभलकर बैठें, और सबका कुछ भला हो सके। यह बात आज सुबह-सुबह राजस्थान में हुई एक सडक़  दुर्घटना से सूझ रही है जिसमें प्रधानमंत्री की सभा में सुरक्षा इंतजाम के लिए जा रहे पुलिसवालों की एक कार एक बड़े ट्रक से जा भिड़ी, और छह पुलिसवालों की मौत हो गई, दो बुरी तरह जख्मी हैं, और गंभीर हैं। चूंकि यह मामला प्रधानमंत्री की सभा के इंतजाम से जुड़ा हुआ है, शायद इसलिए इसकी चर्चा पर कुछ लोग ध्यान दें। 

हिन्दुस्तान सडक़ हादसों के मामलों में दुनिया का एक सबसे खराब देश माना जाता है जहां पर सडक़ों की हिफाजत को सरकार के ही भ्रष्ट अमले खुलेआम कानून तोडऩे वाले ट्रांसपोर्ट कारोबारियों को बेचते हैं, और जो लोगों की मौत की कीमत पर भी अंधाधुंध गाडिय़ां चलवाते हैं। हम इसी एक घटना में इस तरह की जिम्मेदारी तय नहीं कर रहे हैं, लेकिन हम इतना जरूर कहना चाहते हैं कि सडक़ों के बहुत सारे हादसे आरटीओ और ट्रैफिक पुलिस जैसे भ्रष्ट विभागों की वजह से होते हैं, और देश में हर बरस डेढ़ लाख या अधिक इंसान मारे जाते हैं। भारत सरकार के 2021 के आंकड़ों के मुताबिक देश की सडक़ों पर हर दिन 422 से अधिक मौतें होती हैं, और इन मौतों में 67 फीसदी मौतें 18 से 45 बरस की उत्पादक उम्र के लोगों की रहती है जिससे कि देश में कामकाजी लोगों का एक बड़ा नुकसान भी होता है। बहुत अधिक आंकड़ों का कोई मतलब नहीं है, लेकिन आज की ही इस ताजा दुर्घटना को लेकर सबको यह सोचना चाहिए कि किस तरह सडक़ हादसों को कम किया जाए। हम अपने अखबार और यूट्यूब चैनल पर लगातार जागरूकता के लिए हेलमेट और सीटबेल्ट लगाने के अभियान चलाते रहते हैं। लेकिन जब तक ट्रैफिक और आरटीओ के अमले सरकार के अपने खुद के नियमों को ठीक से लागू नहीं करेंगे, तब तक हिन्दुस्तानियों पर किसी जागरूकता के अभियान का कोई असर नहीं होना है। जागरूकता हिन्दुस्तानियों पर उतना असर नहीं करती है जितना कि सडक़ किनारे कड़ाई बरतते पुलिसवाले कर सकते हैं। जब देश में सडक़ सुरक्षा के कानून बड़े कड़े बने हुए हैं, तो फिर किसी प्रदेश या शहर की पुलिस को उन्हें लागू न करने का हक क्यों रहना चाहिए? इस घटना से ही केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों को संभलकर बैठना चाहिए, और हिन्दुस्तानी सडक़ों को अधिक सुरक्षित बनाना चाहिए। यह बात तो तय रहती है कि सडक़ों पर होने वाली मौतों के लिए जरूरी नहीं है कि मरने वाले जिम्मेदार रहते हों, बहुत से बेकसूर लोग भी जिंदगी खो सकते हैं, खोते ही हैं। इसलिए हर नागरिक का यह हक भी है कि वे सुरक्षित सडक़ पाएं, और सरकारें जब रोड टैक्स लेती हैं, तो सडक़ बनाना, मरम्मत करना, और उन पर कानून व्यवस्था बनाए रखना, यह सब जिम्मेदारी सरकार की ही रहती है। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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