संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अमरीका में खालिस्तानी की कत्ल की सुपारी देने में आया भारत सरकार का नाम
30-Nov-2023 3:59 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अमरीका में खालिस्तानी की कत्ल की सुपारी देने में आया भारत सरकार का नाम

अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मोर्चे पर भारत के लिए एक नई दिक्कत आ खड़ी हुई है। कुछ महीने पहले कनाडा ने भारत पर यह आरोप लगाया था कि उसने कनाडा की जमीन पर, एक कनाडाई नागरिक का कत्ल करवाया जो कि खालिस्तानी आंदोलनकारी था। इसके बाद से कनाडा और भारत के कूटनीतिक संबंध शायद इतिहास में सबसे नीचे गिर गए हैं। जबकि भारत के लाखों लोग कनाडा में काम करते हैं, और उनके भेजे हुए अरबों रूपए हर महीने भारत में उनके परिवारों तक आते हैं, और भारत को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा मिलती है। इसके अलावा कनाडा को जिस बड़ पैमाने पर छात्रों और कामगारों की जरूरत है, वह भी भारत से पूरी होती है। लेकिन इतने जटिल अंतरसंबंधों के बावजूद खालिस्तान समर्थक नेता की कनाडा में हत्या में भारत का हाथ होने का संदेह कनाडा के लिए बहुत बड़ा था, जहां पर कि मानवाधिकारों का एक अलग पैमाना है। दूसरी तरफ भारत का हाल यह है कि यहां पर एक बड़ा तबका इस बात को लेकर खुश है कि भारत ने अपने एक अलगाववादी को अगर विदेश में कहीं मरवा भी दिया है, तो भी उसमें गलत क्या है, और इससे भारत की ताकत ही साबित होती है। जब अमरीका ने इस मामले में फिक्र जताई थी, तो भारत के लोगों ने अमरीका के खिलाफ यह लिखा था कि वह भी तो दुनिया भर में अपने दुश्मनों का कत्ल करवाते ही रहता है, और ताजा मिसाल की शक्ल में लोगों ने अमरीकी फौज के पाकिस्तान में घुसकर ओसामा-बिन-लादेन को मारने की बात भी गिनाई थी। इसके बाद से पाकिस्तान मेें एक-एक करके ऐसे कई लोगों का एक ही अंदाज में मोटरसाइकिल से पहुंचे हत्यारों ने कत्ल किया जिन्हें भारत ने आतंकी घोषित किया हुआ है। कोई सुबूत न होने से, और कोई आरोप न लगने से भारत शक के किसी कटघरे में अभी नहीं है, लेकिन लोगों ने ऐसे सिलसिले को इससे जोडक़र जरूर देखा है कि भारत के विरोधी करार दिए गए ऐसे आतंकी सिलसिलेवार ढंग से, एक ही तरीके से मारे जा रहे हैं। 

लेकिन आज सामने आया अमरीका का एक मामला भारत के लिए अब तक का इस किस्म का सबसे फिक्र का मामला है क्योंकि अमरीका की एक अदालत में पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने यह मामला पेश किया है कि निखिल गुप्ता नाम के एक भारतीय नागरिक ने अमरीका में एक खालिस्तान-समर्थक सिक्ख को कत्ल करने के लिए वहां एक लाख डॉलर का ठेका दिया था। अदालत में पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने यह कहा है कि इस भारतीय नागरिक ने अमरीका में जिसे कत्ल का यह ठेका दिया था, वह अमरीकी सरकार का जासूस ही था। ऐसा कहा जा रहा है कि भारत में बैठे सरकार के एक अफसर ने अमरीका में एक भारतीय नागरिक के माध्यम से हत्या का यह ठेका दिया था, और अमरीकी सरकार ने समय पर इस साजिश को पकड़ लिया क्योंकि जिसे हत्यारा मानकर ठेका दिया गया था, वह एक खुफिया अमरीकी जासूस या खबरी ही था। अमरीका के पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने कहा है कि अमरीकी जमीन पर किसी अमरीकी नागरिक के खिलाफ ऐसी साजिश बर्दाश्त नहीं की जाएगी, और अमरीकी सरकार ने निखिल गुप्ता नाम के इस भारतीय को भारत में बैठे जिस अफसर से यह काम दिया गया था, उस अफसर का नाम फिलहाल अमरीका के पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने अदालत में उजागर नहीं किया है। 

अब कुछ महीनों के भीतर कनाडा से लेकर पाकिस्तान और अमरीका तक अगर ऐसी घटनाएं हो रही हैं, और खासकर दो पश्चिमी देशों कनाडा और अमरीका में इन्हें लेकर जांच चल रही है, और अमरीका में तो मुकदमा शुरू हो गया है, तो यह बात भारत के एक तबके के राष्ट्रोन्माद को तो ठीक लग सकती है कि मोदी है तो मुमकिन है, लेकिन यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भारत की स्थिति को कमजोर करती है, कनाडा और अमरीका जैसे बड़े देशों के साथ उसके रिश्तों पर इससे बड़ी आंच आ सकती है। अमरीका एक ऐसा देश है जहां पर पब्लिक प्रॉसिक्यूटर सरकार से अलग रहते हैं, और वे अपनी मर्जी से काम करते हैं। वे भारत के सरकारी वकीलों की तरह नहीं रहते, बल्कि एक स्वतंत्र संस्था रहते हैं। वहां की लोकतांत्रिक-साख के मुताबिक वहां की सरकार न तो देश के वकील को, और न ही अदालतों को प्रभावित कर सकती। ऐसे में यह मामला भारत के लिए कनाडा के मामले के मुकाबले बहुत अधिक खतरे का हो सकता है, क्योंकि कनाडा में तो अभी जांच रिपोर्ट भी उजागर नहीं हुई है, और अमरीका में तो मुकदमा शुरू हो चुका है। 

हो सकता है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरकारें अपने देश के दुश्मन करार दिए गए लोगों की ऐसी सुपारी-हत्याएं करवाती रहती हों, लेकिन ये तभी तक चल पाती हैं जब तक कि कोई सरकार उसमें फंसती नहीं हैं। या तो फिर अमरीका की तरह इतने दम-खम वाला देश रहे जो कि पाकिस्तान के भीतर घुसकर एक फौजी कार्रवाई में ओसामा-बिन-लादेन का कत्ल कर सके, और उसकी लाश को भी दुनिया के सामने पेश करने से इंकार कर दे। भारत के सामने अमरीकी अदालत में आया यह ताजा मामला बताया जाता है कि कुछ महीने पहले से भारत की जानकारी में लाया गया था। आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत और अमरीका एक-दूसरे पर कई किस्म से निर्भर देश हैं। और ऐसे में हो सकता है कि सरकारों के स्तर पर इस मामले को अधिक न कुरेदा जाए, लेकिन अमरीका में पब्लिक प्रॉसिक्यूटर, सरकार के न होकर जनता के वकील रहते हैं, और ऐसे पब्लिक प्रॉसिक्यूटर सरकार के काबू के बाहर भी रहते हैं। इसलिए यह मामला कहां तक आगे बढ़ेगा यह समझना मुश्किल है। दूसरी बात यह भी है कि कनाडा और अमरीका के अलावा ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन जैसे कई और पश्चिमी देश हैं जहां पर खालिस्तान-समर्थक आंदोलनकारी सक्रिय हैं, और इन तमाम देशों के लिए यह एक कूटनीतिक-समस्या रहेगी कि वे भारत पर लगी इन तोहमतों को किस तरह से देखें, और कनाडा और अमरीका के मामलों में उन देशों के साथ खड़े रहें, या कि भारत पर लगी तोहमतों को अनदेखा करें? 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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