संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मोदी के एक आव्हान पर हर प्रदेश में बच सकती है हजारों करोड़ फिजूलखर्ची
17-Dec-2023 3:42 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  मोदी के एक आव्हान पर  हर प्रदेश में बच सकती है हजारों करोड़ फिजूलखर्ची

तीन राज्यों में भाजपा की सरकार बनने का सिलसिला चल रहा है, और इन हिन्दीभाषी राज्यों से परे, तेलंगाना और मिजोरम भी इसी दौर से गुजर रहे हैं। पांचों राज्यों में नए मुख्यमंत्री हैं, जो कि पहली बार यह जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। तीन बड़े और हिन्दीभाषी राज्यों में देश के एक ही नेता, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पार्टी के, और उनकी पसंद के नेता सरकार और विधानसभा के ओहदे संभालने वाले हैं। मोदी हिन्दुस्तान के एक ऐसे अनोखे नेता हैं जिनकी पूरी पार्टी उनके काबू में है, और जनता का एक पर्याप्त बड़ा हिस्सा उनके हर फैसले पर ताली बजाने को तैयार खड़े ही रहता है। जब वे अपने एक फैसले से देश के करोड़ों लोगों के हाथों में झाड़ू थमवा सकते हैं, तो फिर अपनी पार्टी की राज्य सरकारों के लिए तो उनकी मर्जी ही हुक्म सरीखी होगी। ऐसे में कुछ महीनों बाद के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले अगर वे हिन्दी पट्टी कहे जाने वाले इलाके के इन तीन राज्यों में अगर सरकारों को जनता के करीब ला सकते हैं, उन्हें जनसरोकारों से जोड़ सकते हैं, तो इससे नए मुख्यमंत्रियों की एक सादगी और किफायत की बुनियाद भी बन सकती है, इन राज्यों का भला भी हो सकता है, और लोकसभा चुनाव में इसका फायदा मोदी और उनकी पार्टी को तो होगा ही होगा। 

यह कोई रहस्य की बात नहीं है कि सरकारों में बैठे मंत्री और अफसर अपनी ताकत का बेजा इस्तेमाल करते हुए बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारियों को बंगलों पर तैनात करवाते हैं, जो कि जनता की जेब पर ही बोझ रहता है, और इसके साथ-साथ ऐसे कर्मचारियों को मजबूरी की नौकरी या रोजी के लिए मानवीय गरिमा के खिलाफ काम करने पड़ते हैं। एक-एक बड़े अफसर के बंगले पर दर्जन भर या दर्जनों कर्मचारियों की तैनाती रहती है, और वे घोषित रूप से तो कहीं और ड्यूटी पर रहते हैं, लेकिन अघोषित रूप से वे बंगला ड्यूटी करते हैं। कुत्तों को घुमाने से लेकर बच्चों का पखाना साफ करने तक, कपड़े धोने, और प्रेस करने तक, खाना पकाने और सब्जियां उगाने तक सैकड़ों किस्म के काम सरकारी कर्मचारियों से करवाए जाते हैं, जो कि पूरी तरह से गैरकानूनी इंतजाम है, और बहुत से बड़े अफसर तो खुद जितनी तनख्वाह पाते हैं, उससे अधिक कुल तनख्वाह के कर्मचारियों का बेजा इस्तेमाल करते हैं। 

हमारा ख्याल है कि प्रधानमंत्री या उनकी पार्टी अपने नए मुख्यमंत्रियों को सादगी और किफायत की नसीहत देकर सरकारी फिजूलखर्ची घटाने की बात करेंगे, तो यह देश के सामने एक मिसाल हो सकती है, और एक-एक राज्य में दसियों हजार ऐसे कर्मचारियों को इंसान की तरह जीना नसीब हो सकता है। आज सरकार में ऊपर से नीचे तक तमाम लोग इस पूरी तरह गैरकानूनी इस्तेमाल के लिए इस हद तक संगठित रहते हैं कि छोटे कर्मचारियों की जुबान ही सिली रहती है, और वे नौकरी खोने के डर से, या रोजी खत्म हो जाने के खतरे से कुछ कह नहीं पाते। हमारा ख्याल है कि सरकारी कर्मचारियों के ऐसे अघोषित इस्तेमाल के खिलाफ एक कड़ा कानून बनाना चाहिए, और इस पर सजा का इंतजाम करना चाहिए। इस देश में संस्कृति यह हो गई है कि जब तक अदालती डंडे का डर न हो, किसी को किसी कानून की परवाह नहीं रह गई है। 

देश में गरीबी इतनी है कि केन्द्र और राज्य सरकारों को तरह-तरह की अनाज-योजनाएं चलानी पड़ रही हैं, स्कूली बच्चों को दोपहर का भोजन देने से ही वे कुपोषण से बच पा रहे हैं, देश के दसियों करोड़ लोग आज भी बेघर हैं, और दसियों करोड़ लोग न्यूनतम मजदूरी से भी कम पर काम करने को मजबूर हैं। ऐसे देश में सरकारी ओहदों पर बैठे हुए लोग न सिर्फ भ्रष्टाचार में डूबे रहते हैं, बल्कि सरकारी ढांचे का बेजा निजी इस्तेमाल करने को वे अपना जायज हक मान बैठे हैं। हमारा ख्याल है कि जब भाजपा आज देश में सबसे अधिक संख्या में राज्यों पर काबिज है, और ये तीन प्रमुख राज्य अभी सरकार बनाने के दौर से गुजर रहे हैं, तो यह पार्टी अपने नरेन्द्र मोदी सरीखे मजबूत नेता की अगुवाई में एक सुधार शुरू करने के लिए सबसे अधिक काबिल संगठन है। भाजपा के भीतर पार्टी की राष्ट्रीय लीडरशिप की हालत कांग्रेस सरीखी बर्बाद नहीं है कि जिसे सुनने से पार्टी के मुख्यमंत्री ही मना कर दें। इसलिए भी हम आज यह सुझाने की हालत में हैं कि प्रधानमंत्री अगर भाजपा मुख्यमंत्रियों को किफायत और सादगी की नसीहत दें, और मंत्रियों-अफसरों के निजी इस्तेमाल में सरकारी अमले को झोंकने के खिलाफ कड़ाई से कहें, तो हर राज्य में हजारों करोड़ रूपए सालाना की बचत हो सकती है। और किसी को भी नौकरी या रोजगार से निकाले बिना उनका बेहतर इस्तेमाल सार्वजनिक जरूरत की जगहों पर किया जा सकता है। 

और यह बात प्रधानमंत्री तक न पहुंचे, तो हर राज्य के मुख्यमंत्री अपने स्तर पर भी ऐसा कर सकते हैं, और इससे अफसरी बददिमागी भी जमीन पर आएगी। आज जिन लोगों को यह लगता है कि उनके बिना सरकार नहीं चल सकती, उन्हें भी यह अहसास कराना जरूरी है कि स्थाई रूप से नियम-कानून तोड़ते हुए वे सरकारी अमले को घर पर नहीं जोत सकते। कल ही हमने अपने यूट्यूब चैनल पर छत्तीसगढ़ की राजधानी, नया रायपुर में मंत्री-मुख्यमंत्री और अफसरों के लिए बने बड़े-बड़े बंगलों की बात की थी कि अब उनके रखरखाव के लिए साधन और सुविधाओं का कई गुना अधिक बेजा इस्तेमाल शुरू हो जाएगा। प्रधानमंत्री को पूरे देश में सरकारी अमले की सादगी को भी लागू करना चाहिए, यह एक अलग बात है कि नया रायपुर में सरकारी बंगलों की यह योजना उन्हीं की पार्टी की रमन सिंह सरकार ने मंजूर की थी, उसका टेंडर किया था, और कांग्रेस सरकार ने पांच बरस ईंट-गारा ढोकर ये बंगले पूरे किए, और अब भाजपा के मंत्री-मुख्यमंत्री उसमें रहने जा रहे हैं। हमने उस वक्त भी इतनी बड़ी फिजूलखर्ची के खिलाफ लिखा था, लेकिन सत्ता को फिजूलखर्ची सुहाती है, और किफायत की हमारी सलाह कूड़े के ढेर में गई थी, और अब यह प्रदेश हाथी सरीखे विशाल रखरखाव का खर्च बाकी जिंदगी उठाता रहेगा। चाहे पीएम, चाहे सीएम जिस स्तर पर भी हो, जनता की जेब काटना बंद होना चाहिए। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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