संपादकीय
बॉम्बे हाईकोर्ट में अभी एक केस सामने आया जिसमें एक आदमी ने शादी के कुछ साल बाद तक लडक़ा न हुआ, तो दूसरी शादी कर ली। दूसरी बीवी से बेटा हो गया। साथ रह रही पहली बीवी को भी बेटा हो गया। इसके बाद उस आदमी ने पहली बीवी के कहने पर दूसरी को घर से निकाल दिया, जो कि उसके बेटे की मां भी थी। अब मामला गुजारा-भत्ता के लिए हाईकोर्ट तक पहुंचा तो वहां अदालत ने इस आदमी को जमकर फटकार लगाई, और कहा कि पहली शादी के बरकरार रहते हुए उसने पहले तो दूसरी शादी की, और अब वह दूसरी पत्नी को अलग करके उसके गुजारे की जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकता। यह मामला 1989 में हुई दूसरी शादी का है, और 2012 में दूसरी पत्नी को गुजारे के लिए अदालत जाने की जरूरत पड़ी। 2015 में निचली अदालत के हुक्म पर भी अब पति ने दूसरी पत्नी को मासिक भत्ता देना बंद कर दिया है, अब हाईकोर्ट ने इस पति को फटकार लगाई है, और महिला को छूट दी है कि वह भत्ता बढ़ाने की मांग कर सकती है।
इंसान बात-बात पर अपने भीतर की हिंसा, दगाबाजी, बेईमानी को लेकर जानवरों की मिसालें देते हैं। कहीं भेड़ की खाल ओढक़र धोखा देने वाले भेडिय़े की बात कहते हैं, कहीं आस्तीन में सांप की मिसाल, कहीं मूर्खता के लिए गधे की कहानियां, तो कहीं बहादुरी की मिसाल के लिए शेर की कहावतें, यह अंतहीन है। इनमें से कोई भी जानवर इंसानों जैसे घटिया नहीं होते। वे अपनी नस्ल के प्राकृतिक मिजाज के मुताबिक रहते हैं, अगर वहां एक से अधिक साथियों से देहसंबंध स्वाभाविक है, तो उसे निभाते हैं, और पेंगुइन जैसे कुछ प्राणी एक साथी के साथ भी जीने वाले कहे जाते हैं। हम किसी पेंगुइन को कोई चरित्र प्रमाणपत्र नहीं दे रहे, लेकिन कई और भी ऐसे पशु-पक्षी हैं जिन्हें एक ही जोड़ीदार के लिए जाना जाता है। सैंडहिल क्रेन नामक पंछी, दरियाई घोड़े, सलेटी-भेडिय़े, बार्न-उल्लू, बाल्ड-ईगल, गिबन जाति के बंदर, काले गिद्ध, हंस ऐसे ही कुछ और प्राणी हैं जिन्हें आमतौर पर अपने एक साथी के लिए वफादार माना जाता है। अब जानवरों को गाली बकने वाली इंसानी नस्ल को देखें तो उनमें वफादार-मर्द की धारणा भूतों और चुड़ैलों जितनी ही हकीकत होती है। लेकिन जब गाली देना हो तो पशु-पक्षियों की मिसाल आसान रहती है क्योंकि वे मानहानि का मुकदमा दायर नहीं कर सकते।
बॉम्बे हाईकोर्ट के इस ताजा मामले को देखें तो समझ पड़ता है कि इंसानों में कमीनगी धरती पर किसी भी दूसरे प्राणी के मुकाबले हजारों गुना अधिक रहती है, और हो सकता है कि इंसानों से परे किसी भी प्राणी में कमीनगी रहती भी न हो। लोगों को याद रखना चाहिए कि दूसरों को लूट लेने की कीमत पर भी अपने परिवार के लिए दौलत जुटा लेने जैसा घटिया काम दुनिया के करोड़ों किस्म के प्राणियों में से सिर्फ इंसान का एकाधिकार है। कहने के लिए इंसानी समाज के जो रीति-रिवाज प्रचलित हैं, उनके खिलाफ जाकर अपने ही बच्चों से बलात्कार करना सिर्फ इंसान ही कर सकते हैं। बाकी पशु-पक्षी तो उनके समाज में प्रचलित काम ही करते हैं। अब सिर्फ इंसानों की बात पर लौटें, तो आए दिन ऐसी खबरें आती हैं कि किसी बालिग ने शादी का वायदा करके किसी नाबालिग से देहसंबंध बनाए, और फिर धोखा दे दिया। शिकायतकर्ता के नाबालिग होने पर कार्रवाई के लिए देश में कड़ा कानून है, लेकिन दोनों लोगों के बालिग होने पर शादी के वायदे को लेकर अगर बाद में धोखे की कोई शिकायत खड़ी होती है, तो अब देश की अदालतें ऐसी शिकायतों पर सजा सुनाने से मना कर रही हैं। अदालतों ने भी यह ठीक ही अहसास किया है कि बालिग लोगों के बीच शादी के वायदे को पूरा न करना, या न कर पाना किसी किस्म का जुर्म मानना गलत है। जब शादीशुदा जोड़ों के बीच भी निभना मुश्किल हो जाता है, और तलाक हो जाते हैं, तो फिर प्रेमसंबंधों में जी भर जाने, या कोई शिकायत हो जाने की गुंजाइश तो हमेशा ही रहती है। पुरूष साथी पर तोहमत मढऩे के बजाय लडक़ी या महिला के लिए बेहतर यही होता है कि किसी रिश्ते में पडऩे के पहले इस बात को समझ ले कि हर वायदे कभी पूरे नहीं होते, और ऐसा सिर्फ मर्द की तरफ से औरत के साथ हो, ऐसा भी नहीं है, कई मामलों में कोई लडक़ी या महिला भी शादी का वायदा पूरा नहीं कर पातीं, और ऐसे में क्या उन पर यह तोहमत लगाई जाए कि उन्होंने धोखा दिया है?
पुलिस और अदालत तक पहुंचने वाले बहुत से मामलों को देखें तो यह समझ पड़ता है कि लोग अपनी सामान्य समझबूझ, और बहुत मामूली तर्कशक्ति, बहुत सीमित तजुर्बे को भी अनदेखा करते हुए खतरनाक रिश्तों में पड़ते हैं। ऐसे अनगिनत मामले सामने आते हैं जिनमें दूसरी बीवी यह कहती है कि उसे पहली बीवी से तलाक का वायदा किया गया था। अगर ऐसी नौबत है तो शादीशुदा से रिश्ता बनाने के पहले उसके तलाक का इंतजार भी कर लेना चाहिए। लेकिन लोग पहले ऐसे उलझे हुए रिश्तों में पड़ते हैं, और फिर उनमें धोखा होने की बात कहते हुए झींकते हैं। यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि इंसान जानवरों जितने ईमानदार नहीं होते, और वे कई किस्म से बेवफा हो सकते हैं, उनसे बहुत ऊंचे दर्जे की वफा की उम्मीद जीते जी जन्नत के नजारे सरीखी होगी। इसलिए हर किसी को चाहिए कि सामाजिक और कानूनी रूप से पुख्ता रिश्तों में ही पड़ें। अगर लोगों को सिर्फ प्रेम और देहसंबंधों में पडऩा, तो उनके बीच में दोनों के बालिग होने पर किसी तरह का कानून शामिल नहीं होता। यहां तक तो सब ठीक है, लेकिन जहां शादी की बात आती है, वहां पर पहली या दूसरी पत्नी, परिवार के दूसरे कानूनी वारिसान जैसे बहुत से उलझाने वाले पहलू जुड़ जाते हैं। इसलिए दस-दस, बीस-बीस बरस बाद जाकर अदालत से मिले मामूली से इंसाफ पर भरोसा करके लोगों को अधिक रिश्ते नहीं बनाने चाहिए। अब यह कल्पना करें कि दस बरस की अदालती लड़ाई के बाद, और यह लड़ाई शुरू होने के पहले की बीस बरस की तकलीफदेह शादीशुदा जिंदगी के बाद अगर ढाई हजार रूपए महीने का कोई गुजारा-भत्ता मिलना है, तो उससे एक महिला और उसके बेटे का क्या काम चल सकता है? इसलिए अपनी समझ और दुनिया के तजुर्बे को कानूनी संभावना से ऊपर मानना चाहिए। कानून को एक आखिरी विकल्प की तरह रखना चाहिए क्योंकि वह अधिकतर मामलों में ऐसे सुबूतों पर काम करता है जिन्हें जुटाना किसी मामूली के बस का काम नहीं रहता है। इंसानी समाज पशु-पक्षियों के समाज सरीखे ईमानदार नहीं हैं, इसलिए यहां पर लोगों को दूसरों की कही बातों, और उनके दिखाए गए सपनों पर लापरवाही से जरूरत से ज्यादा भरोसा नहीं करना चाहिए।