संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एआई का हमला, कल्पना से परे का हिंसक रहेगा...
24-Dec-2023 4:36 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  एआई का हमला, कल्पना से परे का हिंसक रहेगा...

इस बरस की शुरूआत में दुनिया की एक सबसे बड़ी टेक्नॉलॉजी कंपनी गूगल ने 12 हजार कर्मचारियों को एक साथ निकाल दिया था। अभी कुछ अरसा पहले इस कंपनी के भारतवंशी मुखिया सुन्दर पिचई ने यह गलती मानी थी कि छंटनी को सही तरीके से लागू नहीं किया गया था, और इससे कर्मचारियों का मनोबल टूटा था। अब आज एक खबर यह है कि गूगल में फिर से दसियों हजार कर्मचारियों को नौकरी से निकालने की योजना बन रही है। साल के शुरू में जिन लोगों को निकाला गया था, उनके बारे में कंपनी का यह तर्क था कि मंदी की आशंका में लोग हटाए गए थे। अब ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और मशीन लर्निंग जैसी टेक्नॉलॉजी की वजह से लोगों की जरूरत घटते चल रही है, और न सिर्फ गूगल, बल्कि दुनिया की और भी बहुत सी कंपनियां कर्मचारियों को लगातार घटाती चली जाएंगी। ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से नौकरियों का खत्म होना जिस रफ्तार से सोचा जा रहा था, हो सकता है कि वह उससे बहुत अधिक रफ्तार से होने लगे। 

लोगों को याद होगा कि अमरीका में फिल्म और टीवी इंडस्ट्री के लेखकों ने कई महीने चली लंबी हड़ताल की थी क्योंकि वे फिल्म-सीरियल बनाने वाली कंपनियों के ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से आगे की कहानी बना लेने की वजह से अपने रोजगार को खतरे में पा रहे थे। अब कल बीबीसी की एक रिपोर्ट है कि लाखों लोगों को रोजगार देने वाले भारतीय फिल्म उद्योग ने ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के इस्तेमाल से बहुत सी नौकरियां जा सकती हैं। अभी किसी एक फिल्म में एक एक्शन सीन को पूरे का पूरा एआई से बनाया गया। एक तमिल फिल्म के ढाई मिनट के इस सीन को गढऩे में सैकड़ों लोगों को कई हफ्तों का काम मिलता, अब वह एआई कर रहा है। इस रिपोर्ट में एक दूसरी खतरनाक मिसाल दी गई है कि 1983 में मासूम नाम की एक चर्चित फिल्म बनाने वाले फिल्म निर्देशक शेखर कपूर ने जब इस फिल्म की अगली कड़ी को बनाना तय किया, तो उन्होंने एआई टूल चैटजीपीटी से मासूम की कहानी को आगे बढ़ाकर देखा। शेखर कपूर का कहना है कि एआई ने मासूम की कहानी की सारी नैतिक जटिलताओं को तुरंत ही बारीकी से समझ लिया, और आगे की एक कहानी बनाकर पेश कर दी जिसमें यह दिखता है कि विवाहेत्तर संबंधों से पैदा हुआ एक बच्चा बड़ा होकर कैसे अपने पिता से नाराजगी पाल लेता है। फिल्म मासूम की कहानी ऐसे ही एक बच्चे पर थी, और एआई टूल ने कहानी को सारी मानवीय, सामाजिक, और नैतिक जटिलताओं के साथ आगे बढ़ा दिया! 

लेकिन ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल सिर्फ रचनात्मक चीजों के लिए होगा ऐसा भी नहीं है, दुनिया भर में बिखरे हुए कॉल सेंटरों में जवाब देने वाले कर्मचारी भी एआई की वजह से नौकरियां खोएंगे क्योंकि ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस इंसानों से बेहतर काम तकरीबन मुफ्त कर देगा। एआई की मदद से सीसीटीवी कैमरों से होने वाली निगरानी का मानवीय विश्लेषण जरूरी नहीं रह जाएगा, और हजारों गुना रफ्तार से एआई टूल्स ऐसी निगरानी करके खतरा बता सकेंगे, जिन लोगों की तलाश है उन्हें पकड़ सकेंगे। अभी तक न तो ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस टेक्नॉलॉजी अपनी पूरी ऊंचाई पर पहुंची है, और न ही हासिल हो चुकी कामयाबी का पूरा इस्तेमाल हो रहा है। जब इन दोनों ही मामलों में बात आगे बढ़ेगी, तब नौकरियों पर खतरा एक विस्फोट की तरह सामने आएगा। ऐसे में दुनिया भर के लोगों को अपने कामकाज को बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि जब नौकरियां जाती हैं तो भी सबसे अच्छे कर्मचारी और कामगार बचे रह जाते हैं। जिनका काम बहुत अच्छा नहीं होता, उनकी नौकरियां पहले जाती हैं। 

लेकिन ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस टेक्नॉलॉजी से परे भी दुनिया भर के कामगारों को अपने काम को बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए। दुनिया के पूंजीवादी देशों में तो नौकरी की कोई गारंटी रहती नहीं है, बिना किसी एडवांस नोटिस के लोगों को महीने भर की तनख्वाह देकर निकाल दिया जाता है। अब हिन्दुस्तान में भी मजदूर कानून कमजोर किए जा रहे हैं, और कंपनियों के लिए सहूलियत के कानून बढ़ते जा रहे हैं। इसके अलावा सरकारी कंपनियों और सरकारी कामकाज का जिस रफ्तार से निजीकरण हो रहा है, उससे धीरे-धीरे कर्मचारी हक के लिए यूनियन और आंदोलन सरीखी बातें इतिहास बन जाएंगी। एक वक्त देश में एक मजबूत श्रमजीवी पत्रकार आंदोलन रहता था, फिर जैसे-जैसे इस आंदोलन ने पत्रकारों और दीगर मीडिया कर्मचारियों के हक वेतन आयोग के रास्ते मजबूत करवाए, वैसे-वैसे मीडिया-मालिकों ने नौकरी की शर्तें ही कड़ी कर दीं, नियमित नौकरियों के घटा दिया, और संपादक तक ठेका-मजदूर जैसी शर्तों पर रखे जाने लगे। आज हालत कारोबार के लिए और अधिक दोस्ताना हो चुकी है, और मजदूर कानून नामौजूद और बेअसर से हो चुके हैं। ऐसे में ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के निशाने पर मीडिया उद्योग भी रहने वाला है, और भारत की कुछ टीवी समाचार चैनलों ने एआई न्यूज रीडर से समाचार पढ़वाना शुरू भी कर दिया है। न पोशाक, न मेकअप, और न ही तनख्वाह। यह चलन जरा सा आगे बढ़ेगा तो दसियों हजार न्यूज रीडरों और एंकरों की नौकरियां खतरे में पडऩे लगेंगी। वैसे वक्त सिर्फ वही लोग बच पाएंगे जिनका काम सबसे अच्छा होगा। 

टेक्नॉलॉजी पहाड़ से लुढक़ते हुए बर्फ के गोले सरीखी रहती है, उसका आकार और उसकी रफ्तार दोनों बढ़ते चलते हैं। इसलिए कम्प्यूटरों के इस्तेमाल वाले किसी भी कारोबार में एआई की घुसपैठ महज वक्त की बात है, और समझदारी इसी में है कि लोग छंटनी के ऐसे खतरे से आगाह रहें। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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