संपादकीय
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दुनिया के एक सबसे आधुनिक और विकसित देश जापान में ट्रक ड्राइवरों की कमी से एक अजीब सी नौबत आ खड़ी हुई है, जिसकी कल्पना करना भी बाकी दुनिया के लिए कुछ मुश्किल होगा। वहां पर बुजुर्ग आबादी बढ़ते चल रही है, कामकाज की उम्र वाले कामगारों का अनुपात घटते चल रहा है, कुल जमा आबादी भी गिर रही है, और घरों पर आराम की जिंदगी जीने वाले बुजुर्गों को हर सामान घर पहुंच लगता है। ऐसे में सामानों को शहरों और फिर घरों तक पहुंचाने के लिए ट्रक ड्राइवर भी बहुत कम पडऩे लगे हैं। द न्यूयॉर्क टाईम्स की एक खबर को देखें तो वहां पर सामानों की डिलिवरी में हफ्तों देर हो रही है, और इसे आने वाले बरस की सबसे बड़ी समस्या करार दिया गया है। सरकार का मानना है कि यह कमी 2030 तक दूर नहीं हो सकेगी, और बनने वाले सामानों में से एक तिहाई की डिलिवरी कभी भी नहीं हो पाएगी। यह बात जापान में कई दूसरे किस्म की चर्चाओं में लंबे समय से सामने आ रही थी कि कामकाजी लोगों का अनुपात घटते जाने, बुजुर्गों का अनुपात बढ़ते जाने, और आबादी लगातार गिरते जाने से कई किस्म की दिक्कतें और खतरे सामने दिखेंगे। और वह होना शुरू हो गया है। दुनिया के इस एक सबसे विकसित, औद्योगिक देश में साधारण से ड्राइवरों की ऐसी भयानक कमी से पूरी सप्लाई चेन ऐसी गड़बड़ा गई है कि अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पडऩा शुरू हो गया है, और लोगों की जिंदगी पर भी इसका असर पड़ रहा है।
हम बीच-बीच में कभी आर्थिक मंदी की वजह से होने वाली छंटनी के कारण, तो कभी ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से होने वाली बेरोजगारी को लेकर यह बात कहते आए हैं कि दुनिया के जिन देशों में मानव कामगारों की जरूरत बनी रहेगी, वहां के लायक कामगार तैयार करके गरीब देश अपने लोगों का भला कर सकते हैं, और देश की अर्थव्यवस्था में इजाफा भी कर सकते हैं। भारत जैसे देश जहां पर बेरोजगारों की बड़ी आबादी सरकारों के लिए बड़ी चुनौती रहती है, और लोग अपने देश-प्रदेश के भीतर ही काम तलाशते रह जाते हैं। दक्षिण भारत के कुछ राज्य, और उत्तर का पंजाब जरूर कामगारों को दुनिया भर में भेजते आए हैं, और यहां से बाहर गए हुए शायद करोड़ों लोग देश के भीतर कामकाज के मुकाबले बेहतर रोजगार पाए हुए हैं, या कारोबार भी कर रहे हैं। अभी तक हिन्दुस्तान के बाहर जाकर काम करने वाले लोग अंग्रेजीभाषी देशों और खाड़ी के देशों में अधिक जाते हैं, लेकिन जापान जैसे दुनिया के बहुत से ऐसे देश हैं जहां पर हिन्दुस्तानियों के काम करने की अधिक मिसालें नहीं हैं। हम इस बात को पहले भी सुझाते आए हैं कि कुछ चुनिंदा कामों के लिए लोगों को अधिक हुनरमंद बनाने के साथ-साथ अगर उन्हें दुनिया के जरूरतमंद संपन्न देशों की भाषा और संस्कृति की ट्रेनिंग भी दी जाए, तो वे वहां जाकर कई किस्म के काम पा सकते हैं। अब जापान अगर ट्रक ड्राइवरों की कमी झेल रहा है, और वहां आज ड्राइवरों को 18-18 घंटे काम करना पड़ रहा है, तो इस तरह के काम करने में हिन्दुस्तानी माहिर हैं, और आज भी अमरीका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा सरीखे बहुत से विकसित देशों में लाखों हिन्दुस्तानी ट्रक ड्राइवर काम कर ही रहे हैं।
किसी एक जगह की आपदा किसी दूसरी जगह के लिए अवसर भी बन सकती है। जापान में गिरती आबादी, और कामगारों की बढ़ती जरूरत अगले दस-बीस बरस तक किसी भी तरह बदलने वाली नहीं है, और वह ऐसे देशों में शुमार हो सकता है जो कि दूसरे देशों से आने वाले कामगारों के भरोसे चल सके। ऐसे में वहां की भाषा, संस्कृति, तहजीब के साथ-साथ अपने हुनर में माहिर कामगार हो सकता है कि सरकार की पहल से भी जापान में काम पा सके। और यह तो एक खबर की आने की वजह से हम जापान की चर्चा कर रहे हैं। देशों की ऐसी लिस्ट देखें तो उनमें बल्गारिया, लिथुआनिया, लातविया, यूक्रेन, सर्बिया, बोस्निया, क्रोएशिया, मालदोवा, अल्बानिया, रोमानिया, ग्रीस, स्तोनिया, हंगरी, पोलैंड, जॉर्जिया, पुर्तगाल, क्यूबा, और इटली सरीखे देश हैं। इनमें एक ही चीज एक सरीखी है कि ये सब गैरअंग्रेजीभाषी देश हैं। लेकिन भारत सरकार अगर चाहे तो इन देशों के साथ अभी से तालमेल करके कई बरस के बाद के हिसाब से भी कामगार तैयार कर सकती है, और वहां की सरकारें भी सरकारों के स्तर पर बेहतर कामगार पाने को पसंद कर सकती हैं। यह भी जरूरी नहीं है कि इन देशों में सिर्फ ड्राइवरी जैसे काम ही पैदा हों, दुनिया इस बात की गवाह है कि वहां पहुंचे हुए मजदूरों के बच्चे भी उन देशों में राष्ट्रपति तक बनते आए हैं। इसलिए अपने देश के नागरिकों, खासकर बेरोजगार नौजवानों को बेहतर हुनरमंद बनाकर किसी विदेशी भाषा से लैस करके उन्हें किसी विकसित और संपन्न देश में भारत सरकार अगर काम दिलवा सकती है, तो इससे देश में बेरोजगारी भी घटेगी, और अंतरराष्ट्रीय पैमानों पर शिक्षण-प्रशिक्षण से देश के भीतर भी काम की उत्कृष्टता बढ़ेगी।
इस बीच भारत के अलग-अलग प्रदेश भी अपनी नौजवान पीढ़ी को बिना किसी पूर्वाग्रह और परहेज के, अंग्रेजी सिखा-पढ़ा सकते हैं, ताकि वे न सिर्फ दूसरे देशों के लायक तैयार हो सके, बल्कि देश के भीतर भी अंग्रेजी से जुड़े रोजगारों में उनकी संभावना पैदा हो सके। दुनिया के दर्जनों देशों में अगले कई दशक तक स्थानीय कामगार अनुपात घटते जाना है, इनको ध्यान में रखकर बेरोजगारों वाले देशों को अपने लोगों के लिए योजना बनानी चाहिए, ताकि एक अंतरराष्ट्रीय शून्य को भरा जा सके। भारत में जहां चार-चार बरस के लिए फौज में अग्निवीर बनाए जा रहे हैं, और चार साल बाद के लिए उनके पास कोई पुख्ता भविष्य नहीं रहेगा, ऐसे लोगों को भी बाकी दुनिया के लिए तैयार किया जा सकता है, और भारत सरकार के अलावा देश की राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर ऐसा कर सकती हैं। यह बात अधिक लोगों को शायद नहीं पता होगी कि ब्रिटेन जैसे देश दूसरे देशों से अपने यहां नर्सें भर्ती करते हुए अलग-अलग देशों के लिए अधिकतम सीमा भी तय करते हैं, ताकि वहां काबिल नर्सों की कमी न हो जाए। ऐसे में जाहिर है कि अच्छी तरह शिक्षित-प्रशिक्षित हिन्दुस्तानी कामगारों के लिए संभावनाओं का आसमान बहुत बड़ा है, और रहेगा। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)