संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : देश में थमे हुए चक्कों से थम सकती है अर्थव्यवस्था
02-Jan-2024 3:24 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  देश में थमे हुए चक्कों से थम सकती है अर्थव्यवस्था

देश भर में ट्रक, टैंकर, और बसों के ड्राइवर हड़ताल पर हैं क्योंकि केन्द्र सरकार ने सडक़ हादसों को लेकर एक नया कानूनी प्रावधान किया है जिसके तहत एक्सीडेंट के बाद अगर ड्राइवर मौके से भाग जाते हैं, और पुलिस को खबर नहीं करते हैं, तो उन्हें दस साल तक की कैद, और सात लाख तक का जुर्माना हो सकता है। कल से देश के बहुत से हिस्सों में बड़ी गाडिय़ों के चक्के थम गए हैं, पेट्रोल पंपों पर लंबी कतारें लग गई हैं क्योंकि टैंकर ड्राइवरों की हड़ताल से पंप सूखने जा रहे हैं, बसों के मुसाफिर परेशान खड़े हैं, और अगर हड़ताल का यह रूख जारी रहा तो कई और सामानों की कमी हो सकती है। ट्रांसपोर्ट कारोबारियों का कहना है कि यह नियम आने के बाद बड़ी गाडिय़ों के ड्राइवर नौकरियां छोड़ रहे हैं। उनका कहना है कि पहले से ही देश में जरूरत से कम ड्राइवर हैं, और ड्राइवरों के काम छोडऩे से पूरे देश का कारोबार प्रभावित हो जाएगा। कारोबारियों का यह भी कहना है कि ड्राइवर किसी एक्सीडेंट के बाद भागना नहीं चाहते, लेकिन आसपास जो भीड़ जमा हो जाती है, उसकी हिंसा से बचने के लिए ऐसा करना पड़ता है। देश में करीब एक करोड़ ट्रक हैं, और इनसे करोड़ों लोगों का रोजगार जुड़ा हुआ है। यह बात समझने की जरूरत है कि लंबी दूरी की एक-एक गाड़ी में एक से अधिक ड्राइवर रखे जाते हैं ताकि सामान सफर में कम से कम घंटे रहे, और कारोबार की बचत हो सके। अब अगर ड्राइवर नौकरी छोड़ रहे हैं, वे कोई और रोजगार करने की सोच रहे हैं, तो यह बड़ी फिक्र की बात रहेगी कि देश का कारोबार इससे कितना प्रभावित होगा। 

लोगों को याद होगा कि हमने इसी जगह अभी दो-चार दिन पहले ही जापान के बारे में लिखा था कि वहां ट्रक ड्राइवरों की कमी होने से सामानों की आवाजाही नहीं हो पा रही है, लोगों तक उनके पार्सल नहीं पहुंच रहे हैं, बाजार खाली हो रहे हैं, और कारखानों में बनने वाले सामान उठ नहीं पा रहे हैं। जापान सरकार का अंदाज है कि 2030 तक ड्राइवरों की ऐसी कमी बनी रहेगी। उसी सिलसिले में हमने यह भी सुझाया था कि अंतरराष्ट्रीय ड्राइविंग की ट्रेनिंग के बाद हिन्दुस्तान भी दूसरे देशों को अपने ड्राइवर भेज सकता है, और कल से शुरू हुई हड़ताल के सिलसिले में पता लग रहा है कि खुद हिन्दुस्तान में ड्राइवरों की कमी है। 
एक दूसरी बात यह कि देश में अभी बनाए गए तीन क्रिमिनल कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका पेश की गई है जिसमें एक पिछले मुख्य न्यायाधीश एन.वी.रमना की कही एक बात गिनाई गई है कि संसद में बहस लोकतांत्रिक कानून निर्माण का एक बुनियादी हिस्सा है, बहस और विचार-विमर्श से विधेयकों को कानून में बदलते हुए कई तरह की जरूरी बातें जोडऩे-घटाने में मदद मिलती है, और इसके बाद बने कानूनों की जब अदालतें व्याख्या करती हैं, तो उन्हें भी इससे मदद मिलती है। जाहिर है कि जस्टिस रमना बहस को जरूरी बताते हैं, और आज जब ये तीन बड़े महत्वपूर्ण क्रिमिनल कानून संसद में पास किए गए, तो 141 सांसद निलंबित थे, और जाहिर है कि ऐसे कोई संसदीय बहस हो नहीं सकती थी। जब बिना विचार-विमर्श और बहस के महज सत्ता के बहुमत से कानून बना दिए जाते हैं, तो ये कानून आगे जाकर अदालतों के लिए भी दिक्कत और दुविधा खड़ी करते हैं, अदालतों से परे भी सरकारों के सामने उनको अमल करते हुए वैसी ही दिक्कतें आती हैं जैसी कि आज सडक़ हादसों को लेकर बनाए गए कानून को लेकर खड़ी हो रही है।

हमने कुछ ट्रक ड्राइवरों के वीडियो भी देखें हैं जिनमें वे बता रहे हैं कि किस तरह कुछ हजार रूपए की नौकरी करते हुए वे किसी हादसे की नौबत में दस साल की कैद, और सात लाख का जुर्माना झेल सकते हैं? उनका कहना है कि इसके मुकाबले मजदूरी कर लेना अधिक सुरक्षित होगा। यह बात पहली नजर में तर्कसंगत लगती है कि भीड़ की हिंसा से बचने के लिए न केवल ट्रक-बस ड्राइवर, बल्कि कई बार कारों के ड्राइवर भी मौके से भाग जाते हैं, वरना वे भीड़ के हाथों मारे जाएं। और ऐसे में अगर वे इतनी लंबी कैद, और इतने बड़े जुर्माने में फंसने वाले हैं, तो बहुत से लोग इस रोजगार से दूर रहेंगे। हम लंबे समय से इस एक नौबत से परे भी एक बात लिखते आ रहे हैं कि किसी व्यक्ति को दी जाने वाली सजा, और सुनाया गया जुर्माना उस व्यक्ति की हैसियत के अनुपात में ही होना चाहिए। एक करोड़ की कार से टक्कर मारकर भागने वाले किसी अरबपति के लिए तो यह कैद और जुर्माना जायज हो सकता है, लेकिन दस-पन्द्रह हजार की नौकरी करने वाले ट्रक ड्राइवर कहां से यह खर्च उठा सकते हैं? कैसे वे दस बरस की कैद का खतरा उठा सकते हैं? उनके परिवार का क्या होगा? ऐसा लगता है कि भारत सरकार में बैठे किसी अफसर ने किसी पश्चिमी विकसित देश से सजा और जुर्माने के आंकड़े उठा लिए हैं, और उन्हें हिन्दुस्तानी ड्राइवरों पर लागू कर दिया है। जिनकी तनख्वाह लाख या लाखों रूपए महीने हों, उनके लिए तो ऐसा जुर्माना जायज हो सकता है, लेकिन अगर किसी की पांच साल की तनख्वाह जितना बड़ा जुर्माना लगा दिया जाए, तो भला कौन ऐसा काम करने की हिम्मत कर सकते हैं? 

भारत में एक तो ट्रांसपोर्ट कारोबार को नियंत्रित करने वाले दो विभाग देश के सबसे भ्रष्ट विभाग हैं। आरटीओ और ट्रैफिक पुलिस इन दोनों का रोज का कामकाज ही इतने किस्म की साजिशों से भरा होता है कि इनके जिम्मे छोड़े गए कानूनों का कैसा भ्रष्ट इस्तेमाल होगा, यह अंदाज लगाना मुश्किल नहीं है। ट्रक-बस ड्राइवरों से बेहतर इस बात को और कौन जानते होंगे कि ऐसे अमले के हाथों लुटने से तैयार न होने पर उन्हें मोटे जुर्माने और लंबी कैद के लिए तैयार होना पड़ेगा। ऐसे में आज अगर उनको हड़ताल ठीक लग रही है, तो उनकी फिक्र जायज है। केन्द्र सरकार को अपने इस कानून के बारे में फिर से सोचना चाहिए। यह भी सोचना चाहिए कि किसी हादसे के बाद इकट्ठा हो जाने वाली भीड़ की हिंसा से बचने के लिए ड्राइवर का मौके से चले जाने के अलावा और क्या विकल्प हो सकता है? साथ ही यह कैद और यह जुर्माना बिल्कुल ही अनुपातहीन लग रहे हैं, और इनके बारे में सोचने में इतना समय नहीं लगाना चाहिए कि देश की आर्थिक बर्बादी शुरू होने के बाद इस नए प्रावधान को खत्म करने पर विचार शुरू हो। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news