संपादकीय
आत्महत्या करने वाले धर्मगुरु. photo : BBC
श्रीलंका में हफ्ते भर में एक बौद्ध धर्मगुरू समेत सात लोगों की मौत हुई है, जिनमें तीन बच्चे भी हैं। अधेड़ उम्र का यह बौद्धगुरू अपने उपदेशों में इस सोच को फैलाता था कि आत्महत्या के बाद लोग जल्द ही पुनर्जन्म ले सकते हैं। यह व्यक्ति पहले एक केमिकल लैब में काम करता था, और बाद में प्रवचनकर्ता बन गया। 28 दिसंबर को इसने जहर खाकर खुदकुशी की, इसके बाद इसकी पत्नी ने तीन बच्चों को जहर देकर खुदकुशी कर ली, और बाद में कुछ और लोगों ने भी आत्महत्या की। अब पुलिस का मानना है कि पुनर्जन्म की धारणा को इसने आत्महत्या से जोडक़र जिस तरह फैलाया, और ऐसी तमाम सात मौतों में एक ही किस्म का जहर मिला है, उसे भी इसी से जोडक़र देखा जा रहा है। बीबीसी की एक रिपोर्ट में इस तमाम जानकारी के साथ पांच साल पहले का दिल्ली का एक मामला भी लिखा गया है कि वहां एक परिवार के 11 लोगों ने मोक्ष पाने के फेर में खुदकुशी कर ली थी। यह परिवार आध्यात्म और मोक्ष की कई बातों को लिखकर मरा था। दिल्ली का यह मामला देश का अपने किस्म का सबसे भयानक मामला था जिसमें इतनी बड़ी संख्या में एक ही परिवार ने खुदकुशी की थी। श्रीलंका और दिल्ली की इन दोनों घटनाओं में मोक्ष पाने पर जो भरोसा है, वह दुनिया में कुछ और जगहों पर भी है जहां पर अलग-अलग धार्मिक या आध्यात्मिक सम्प्रदाय लोगों को इस तरह मरने और फिर से जन्म लेने का बढ़ावा देते हैं।
जब धर्म या किसी आध्यात्मिक सोच पर लोगों का ऐसा अंधविश्वास पैदा हो जाता है कि उन्हें उसकी नसीहतों को मानने के लिए पूरे परिवार सहित जान दे देना अच्छा लगता है, तो समाज को ऐसी आत्मघाती सोच के बारे में सावधान करने की जरूरत है। पहली बात तो यह कि जो कोई गुरू या प्रवचनकर्ता ऐसी आत्मघाती सोच को बढ़ावा देते हैं, उन पर सरकारी एजेंसियों को भी नजर रखनी चाहिए, और समाज के लोगों को भी। किसी धार्मिक किताब, मान्यता, या गुरू पर ऐसा अंधविश्वास मौत तक ले जाए तब तो वह खबरों में आता है, लेकिन उसके पहले तक वह लोगों की सोच को बर्बाद कर चुका रहता है। अपने भक्त की नाबालिग बच्ची से बलात्कार पर कैद भुगत रहे आसाराम के लिए उसके भक्तों में आज भी ऐसी अंधश्रद्धा भरी हुई है कि वे पूरे परिवार और बच्चों सहित आसाराम के पर्चे बांटते दिखते हैं। ऐसे ही पंजाब-हरियाणा इलाके में प्रभाव रखने वाले राम रहीम नाम के एक दूसरे गुरू को बलात्कार में सजा हुई है, लेकिन उसके भक्तों की आंखें अब तक नहीं खुली हैं, और राम रहीम आए दिन पैरोल पर जेल के बाहर रहता है, हर चुनाव के समय सरकारें उसका राजनीतिक उपयोग करने के लिए उसकी पैरोल मंजूर कर देती हैं, और उसके भक्त अब तक बने हुए हैं। हिन्दुस्तान से परे भी बहुत से ऐसे देशों में ऐसे तथाकथित गुरू रहे हैं जो कि अपने भक्तों को तरह-तरह की आत्मघाती और हिंसक चीजों की तरफ धकेल देते हैं, और उसी में अपना जीवन धन्य मानते हुए वे लोग अपने गुरू के कहे जान देने पर आमादा रहते हैं। इस सिलसिले में अमरीका के टेक्सास राज्य के एक सम्प्रदाय की घटना याद आती है, इसमें डेविड कोरेश नाम के एक आदमी ने ब्रांच डेविडियंस नाम का एक धार्मिक सम्प्रदाय स्थापित कर दिया था, जो कि अपने आश्रम में अंधाधुंध अवैध हथियार इकट्ठा कर चुका था, और जब सरकारी जांच एजेंसियां वहां पहुंचीं तो भयानक गोलीबारी की गई जिसमें सुरक्षा अधिकारी मारे गए, और इस आश्रम में रह रहे लोग भी। यह मोर्चा 51 दिनों तक चला, और इसमें 28 बच्चों, और 2 गर्भवती महिलाओं सहित आश्रम के 82 लोग मारे गए, जिनमें गुरू भी शामिल था। यह सम्प्रदाय ईसाई धर्म के भीतर बनाया गया था, और इसने एक बड़े इलाके में किलेबंदी करके एक हथियारबंद मोर्चा बना लिया था। अफ्रीका में भी अभी कुछ महीने पहले ऐसी कुछ घटनाएं सामने आई हैं, लेकिन उनमें से एक-एक के जिक्र की जरूरत नहीं है।
यह समझने की जरूरत है कि अंधश्रद्धा और अंधभक्ति वाले आध्यात्मिक और धार्मिक संगठनों में ऐसे लोग ही पहुंचते हैं, जिनकी अपनी सोच कमजोर रहती है। जब अपनी तर्कशक्ति और वैज्ञानिक समझ जवाब दे जाती है, तभी लोग कानून और मानवीय मूल्यों से परे की ऐसी बातों पर भरोसा करते हैं, और हिंसा या आत्मघात पर उतारू हो जाते हैं। किसी भी देश को अपनी जनता की वैज्ञानिक समझ को कमजोर नहीं होने देना चाहिए क्योंकि यह बात सिर्फ विज्ञान से जुड़ी हुई नहीं है, यह बात रोजाना की जिंदगी में एक तर्कसंगत और न्यायसंगत रूख से जुड़ी हुई भी है। जिस देश में धर्मान्धता, राष्ट्रवाद, अंधश्रद्धा जैसी चीजों के चलते हुए लोग मामूली समझ और इंसाफ से भी किनारा कर लेते हैं, वे हजार दूसरे किस्म के अंधविश्वासों के शिकार हो जाने का खतरा पाल लेते हैं। किसी देश की बर्बादी के लिए यह अपने आपमें एक पर्याप्त वजह रहती है क्योंकि जो लोग तर्कहीन बातों पर मरने-मारने को तैयार रहते हैं, वे जाहिर तौर पर अपनी जिंदगी से लापरवाह हो जाते हैं, और वे समाज के अधिक काम के भी नहीं रह जाते। देश के लोगों की वैज्ञानिक समझ खत्म हो जाने से उस देश के आगे बढऩे की संभावनाएं भी घटने लगती हैं।
धर्म और आध्यात्म, और इनसे जुड़े हुए सम्प्रदायों के साथ दिक्कत यही है कि ये तर्क और वैज्ञानिक समझ की लाशों पर ही खड़े हो सकते हैं। जिसके मन में तर्क जिंदा है, वे धर्म और आध्यात्म को आसानी से गले नहीं उतार पाते, और इनसे जुड़े अंधविश्वासों को तो बिल्कुल भी नहीं। धर्म और आध्यात्म से जुड़े अधिकतर सम्प्रदाय लोगों से उनके सवाल छीनकर ही आगे बढ़ते हैं। सवालों से परे पूरा समर्पण ही लोगों को भक्त बना पाता है, और फिर इनका दर्जा उस तबके में बढ़ते-बढ़ते अंधभक्त तक पहुंचता है। जिन लोगों को धर्म अपनी संस्कृति का हिस्सा लगता है, उन्हें धर्म से जुड़े हुए ऐसे खतरों के बारे में भी सोचना चाहिए। दुनिया के नास्तिक लोग ऐसे खतरों से कम प्रभावित होते हैं, और वे बेहतर इंसान भी बनते हैं।
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