संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : फिलीस्तीन पर भी एक दिन बनेगी डॉक्यूमेंट्री, जैसी आज बनी है बंगाल के अकाल पर
01-Mar-2024 4:39 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : फिलीस्तीन पर भी एक दिन बनेगी डॉक्यूमेंट्री, जैसी आज बनी है बंगाल के अकाल पर

फिलीस्तीन और इजिप्ट की सरहद पर रफा क्रॉसिंग नाम की जगह गाजा में दाखिले का रास्ता है, और यह इजिप्ट की मर्जी पर होता है कि वह किसी वहां से कितने दिन के लिए गाजा जाने दे। फिलहाल इजराइली हमले के शिकार इस शहर गाजा से लाखों लोग रफा में बनाए शरणार्थी शिविरों में ठहरे हुए हैं क्योंकि इजराइली हमले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। अक्टूबर में गाजा पर काबिज एक इस्लामी-फिलीस्तीनी हथियारबंद संगठन हमास ने इजराइल पर ऐतिहासिक हमला किया था जिसमें कई सौ लोग मारे गए थे, और कुछ सौ लोगों को अपहरण करके गाजा ले आया गया था। उसके तुरंत बाद से इजराइल ने हर किस्म का फौजी हमला करके हमास को खत्म करने के नाम पर गाजा शहर और फिलीस्तीनियों को खत्म करना शुरू किया था, और वहां करीब 23 लाख आबादी में से 30 हजार से ज्यादा फिलीस्तीनी मारे जा चुके हैं, 70 हजार से अधिक जख्मी हैं, और 15 लाख फिलीस्तीनी नागरिक रफा के शरणार्थी शिविरों में हैं। अगर संयुक्त राष्ट्र के बयानों पर भरोसा किया जाए, तो इजराइली सेनाएं फिलीस्तीन के स्कूलों, अस्पतालों, संयुक्त राष्ट्र के शरणस्थलों, हर किस्म की जगह पर हमले कर रही हैं, और दुनिया के बहुत से देशों ने इसे फिलीस्तीनी जाति का जनसंहार करार दिया है। 

ऐसे रफा में कल संयुक्त राष्ट्र की तरफ से राहत सामग्री लेकर ट्रक पहुंचे, तो भूखे फिलीस्तीनियों ने उन्हें घेरना शुरू किया, और वहां मौजूद इजराइली सैनिकों ने अपने टैंकों के साथ वहां चौकसी करते हुए निहत्थे फिलीस्तीनियों पर गोली चलाई जिसमें 112 लोग मारे गए, और 7 सौ से अधिक जख्मी हुए। इजराइली सेना ने बाद में इस बारे में कहा कि उसके सैनिकों को लगा कि यह भीड़ खतरनाक हो सकती है, इसलिए उन्होंने गोलियां चलाईं। जो ट्रक राहत सामग्री लेकर पहुंचा था उसी से घायलों और लाशों को अस्पताल पहुंचाया गया। इजराइली हमलों में करीब 25 अस्पताल खत्म हो चुके हैं, और हालत यह है कि जख्मियों को बेहोश किए बिना उनके ऑपरेशन करने पड़ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र लगातार इस बात को बोलते आ रहा है कि गाजा में भुखमरी की नौबत है, और इजराइली फौजें गाजा में मदद जाने नहीं दे रही हैं। अभी बड़ी अंतरराष्ट्रीय दखल से किसी तरह यह इजाजत जुटाई गई, तो भूखे फिलीस्तीनियों को इजराइली सैनिकों ने थोक में भून डाला। 

कल ही पत्रकारों के एक अंतरराष्ट्रीय संगठन ने इजराइली सरकार से कहा है कि वह अपने देश में मीडिया की आजादी की बात कहती है, लेकिन गाजा जाकर काम करने वाले पत्रकारों को इजाजत नहीं दे रही, और गाजा में दर्जनों अखबारनवीसों को मार डाला गया है। इस मौके पर पिछले कुछ दिनों से आ रहे बीबीसी के एक इश्तहार को देखना जरूरी लगता है जो कि बीबीसी की बनाई एक डॉक्यूमेंट्री का है। इसका नाम थ्री मिलियन है, मतलब 30 लाख। यह डॉक्यूमेंट्री अंग्रेजी राज में बंगाल में पड़े अकाल पर बनाई गई है, और इसे बनाने वाली महिला इसके प्रमोशनल इश्तहार में इस बात पर सदमा जाहिर करती है कि 30 लाख लोग मारे गए, लेकिन उनकी याद में कोई स्मारक नहीं है, उसके इतिहास का दस्तावेजीकरण नहीं हुआ है, और उसका कोई प्रतीक चिन्ह तक नहीं है। अब इस डॉक्यूमेंट्री को उसी इतिहास को दर्ज करना कहा जा रहा है। 

हम फिलीस्तीन से लेकर 1930 के दशक में बंगाल के अकाल में मरने वाले लोगों पर बनी इस डॉक्यूमेंट्री की बात इसलिए जोड़ रहे हैं कि तकरीबन एक सदी बाद ब्रिटेन के जनता के पैसों से चलने वाले इस मीडिया संस्थान, बीबीसी का दर्ज किया हुआ यह इतिहास भारत में ब्रिटिश राज का सबसे बड़ा कलंक भी दर्ज कर रहा है। एक दिन ऐसा भी आएगा जब दुनिया फिलीस्तीन पर इजराइल-अमरीका के जुर्म का इतिहास दर्ज करेगी। फिलहाल ब्रिटिश जनता के पैसों से भारत में ब्रिटिश राज के कलंक का जो दस्तावेजीकरण हुआ है, वह बताता है कि अपने खुद के इतिहास के कालिख लगे हिस्से को ईमानदारी से दर्ज करना भी एक सभ्य, लोकतांत्रिक और जिम्मेदार समाज का काम होता है। यह बात इसलिए भी जरूरी है कि दुनिया के कई देशों में इतिहास को मिटाने का काम चल रहा है, और इतिहास लिखने को देश के साथ गद्दारी कहा जा रहा है क्योंकि मौजूदा सत्ता को इतिहास के उस खरे पहलू से शर्मिंदगी होती है। इसलिए असल इतिहास को दर्ज करने वालों से कागज और स्याही भी छीन लेना, और उस स्याही को पुराने दर्ज इतिहास के उस हिस्से पर मल देना जो कि आज पसंद नहीं किया जा रहा है। यह सिलसिला इसी एक देश को अपनी सरहद में इतिहास लेखन को तो कुछ हद तक रोकने की ताकत देता है, लेकिन बाकी दुनिया तो हर जगह का इतिहास दर्ज करती ही है। आज ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन की एक पत्रकार बंगाल के अकाल और अंग्रेजों की आपराधिक लापरवाही या साजिश पर एक डॉक्यूमेंट्री बना रही है। इससे अंग्रेजों का ही इतिहास कलंकित हो रहा है, और यह अंग्रेजों के टैक्स के पैसों से चलने वाला स्वायत्त संस्थान हैं। 

दुनिया को इस मिसाल से यह सबक लेना चाहिए कि इतिहास लिखने के लिए तथ्यों को छांट-छांटकर नहीं लिया जा सकता, और न ही नापसंद तथ्यों को इतिहास से हटाया जा सकता है। दुनिया के इतिहास में इजराइल और अमरीका हिटलर के बाद के एक सबसे बड़े मुजरिम की तरह दर्ज होंगे। आज जर्मनी अपने एक वक्त के शासक हिटलर का नाम लेने से भी कतराता है, शर्म करता है, हिटलर पूरी दुनिया के लिए शर्मिंदगी का सामान बना हुआ है, हमेशा ही रहेगा। दूसरी तरफ इजराइल के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका से लेकर ब्राजील तक कई देश खुलकर खड़े हुए हैं, और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस ऐतिहासिक जुर्म का भांडाफोड़ कर रहे हैं। लेकिन भारत सहित बहुत से देश आज जुल्म के इस दौर में, नस्लीय जनसंहार की इस फौजी कार्रवाई को देखते हुए चुप बैठे हैं, और यह समझ लेना चाहिए कि यह चुप्पी तटस्थता नहीं है, जब जुल्म होता है, जुर्म होता है, तो उस वक्त चुप रहने वाले लोग मुजरिम के साथी रहते हैं। जिस तरह आज एक सदी बाद बंगाल का इतिहास दर्ज हो रहा है, उसी तरह एक दिन इजराइल के जुर्म का भी इतिहास दर्ज होगा, और उस दिन दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील जैसे देशों का हौसला सुनहरे हर्फों में दर्ज होगा, बाकी लोग अपने-अपने जिक्र की स्याही के रंग का अंदाज खुद लगा सकते हैं।   (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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