संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अस्पताल के बिस्तर से निकल कार में फेरा लगाकर ट्रंप ने एक बार फिर किया नमस्ते ट्रंप
05-Oct-2020 6:18 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अस्पताल के बिस्तर से निकल कार में फेरा लगाकर ट्रंप ने एक बार फिर किया नमस्ते ट्रंप

अमरीका के एक बड़े फौजी अस्पताल में कोरोना का इलाज करा रहे राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने आज सुबह एक अनोखा काम किया। वे अस्पताल से एक कार में निकले, और बाहर खड़े अपने समर्थकों की भीड़ की तरफ हाथ हिलाया, और वापिस अस्पताल चले गए। हाथ हिलाने की इस हरकत में वैसे तो एक मिनट लगा, लेकिन जानकार विशेषज्ञ डॉक्टरों का कहना है कि ऐसा करते हुए ट्रंप ने अपने सुरक्षा कर्मियों, और कार के ड्राइवर सबकी जिंदगी संक्रमण के खतरे में डाल दी। इस अस्पताल में जरूरत पर बुलाए जाने वाले एक विशेषज्ञ डॉक्टर ने अपने नाम से ट्रंप की इस हरकत को पागलपन करार दिया है। लोगों को याद होगा कि ट्रंप के करीबी दायरे में अभी कई लोग कोरोना पॉजिटिव निकले हैं, और उनकी भतीजी ने अभी यह कहा है कि अमरीका कोरोना के मोर्चे पर इस बुरे हाल में इसलिए है कि उसके चाचा बीमारी को माफ न करने लायक कमजोरी मानते हैं। 

ट्रंप की यह हरकत लोगों को चाहे कितनी गैरजरूरी लग रही हो, यह उनकी एक चुनावी जरूरत हो सकती है क्योंकि अमरीका चुनाव प्रचार से गुजर रहा है, और टं्रप उम्मीदवार हैं। दूसरी बात यह भी कि चुनाव के महीनों में अमरीका में रोज होने वाले सर्वे में ट्रंप अपने विरोधी डेमोक्रेट उम्मीदवार से खासे पिछड़ते भी दिख रहे हैं। ट्रंप के इतने बरसों के बयान पढ़ें, तो वे अहंकार में डूबे हुए महत्वोन्मादी के बयान लगते हैं जो कि पागलपन की हद तक आत्मकेन्द्रित है। ट्रंप एक निहायत असामान्य दिमागी हालत के इंसान दिखते हैं, लेकिन अमरीका ने उनके ऐसे ही दिखते हुए उन्हें पहली बार राष्ट्रपति चुना था, और आज ऐसी कोई वजह नहीं दिखती कि उनकी कम से कम ऐसी किसी बात की वजह से अमरीकी वोटर उन्हें खारिज करें। वे कुख्यात बदचलन थे, महिलाओं के लिए उनके मन में परले दर्जे की घटिया हिकारत थी, आज भी है, लेकिन वोटरों ने उन्हें चुना था। इसलिए आज वे अपने आपको बीमारी के शिकंजे से बाहर दिखाने के लिए, अपने प्रशंसकों और भक्तों को खुश करने के लिए, उनका आत्मविश्वास बनाए रखने के लिए अगर अस्पताल के बिस्तर पर पूरी तरह आइसोलेशन में रहने के बजाय वहां से निकलकर ऐसी मटरगश्ती कर रहे हैं, तो यह उनके मिजाज के माफिक बात ही है, इसमें किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। 

हमारा ख्याल है कि अमरीकी राष्ट्रपति तो अपनी अहमियत की वजह से इस बात को लेकर खबरों में अधिक आ गए हैं, वरना हम हिन्दुस्तान को देखें जहां महामारी का कानून बहुत कड़ी सजा का इंतजाम लिए बैठा है, यहां भी बड़े और छोटे सभी किस्म के नेता, और दूसरी ताकतों वाले लोग नियमों के लिए, संक्रमण की सावधानी के लिए इसी किस्म की लापरवाही दिखा रहे हैं, और हिकारत दिखा रहे हैं। हिन्दुस्तान में नेता और अफसर कदम-कदम पर नियमों को तोड़ते दिख रहे हैं, जिनके हाथ में पैसों की ताकत है वे महामारी के बीच भी, लॉकडाउन के चलते हुए भी पार्टियां कर रहे हैं, शराबखाने चला रहे हैं, और उन्हें किसी किस्म का कोई डर भी नहीं है। 

जिस वक्त कोरोना शुरू हुआ, उस वक्त भी हिन्दुस्तान का तजुर्बा यही है कि इसे पासपोर्ट वाले बाहर से लेकर आए, और यहां राशन कार्डवालों को थमा दिया। यह अमीरों की लाकर गरीबों को दी गई बीमारी है, जिसका हिन्दुस्तान के बाहर से आना ही रिकॉर्ड में दर्ज है। लोगों को याद होगा कि यही ट्रंप, अपने इसी महत्वोन्माद के चलते हुए, ऐसे ही चुनाव प्रचार की नीयत से हिन्दुस्तान के गुजरात में मोदी के न्यौते पर आया, और अमरीका में बसे प्रवासी हिन्दुस्तानियों के समर्थन की अपील करते हुए लौटा। लेकिन इस अकेले कार्यक्रम, नमस्ते ट्रंप, की वजह से गुजरात और अहमदाबाद में कोरोना आसमान तक पहुंचा, और देश में सबसे बुरी हालत इसी एक शहर में हुई। वह पूरा जलसा गैरजरूरी था, उस भीड़ की मौजूदगी लोगों पर खतरा थी, उस एक कार्यक्रम के लिए अमरीका से दसियों हजार लोग पहुंचे थे, और लोगों ने लगातार हिन्दुस्तानी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस कार्यक्रम को रद्द करने के लिए कहा था। लेकिन दुनिया के सबसे ताकतवर ओहदे पर बैठे हुए ट्रंप के साथ ऐसा घरोबा दिखाने का मौका मोदी भी नहीं छोड़ पाए, और उन्होंने हिन्दुस्तान के अनगिनत लोगों की राय और चेतावनी अनसुनी और खारिज कर दी, और यह कार्यक्रम किया। वह भी ट्रंप के चुनाव अभियान का हिस्सा कहा  गया, और अभी जब वे अस्पताल के बिस्तर से निकलकर समर्थकों को दर्शन देकर लौटे, तो भी पूरी दुनिया के सामने यह साफ है कि वे चुनाव प्रचार कर रहे थे। 

आज दुनिया के जिन देशों में शासन-प्रमुख तानाशाही मिजाज के हैं, जहां वे अकेले फैसले लेते हैं, वहां पर कोरोना का नुकसान सबसे अधिक हुआ है। जहां मुखिया ने विशेषज्ञों की बात नहीं सुनी, जानकारों की चेतावनी नहीं सुनी, लोगों की सलाह नहीं सुनी, वहां पर नुकसान सबसे अधिक हुआ है। ऐसे आधा दर्जन देशों में अमरीका का नाम भी गिना जाता है, और हिन्दुस्तान का भी। 

यह बात जाहिर है कि किसी भी जगह के डॉक्टर अस्पताल में भर्ती मरीज को इस तरह का कार का फेरा लगाने की छूट तो दे नहीं सकते, और यह बात राष्ट्रपति की मनमानी के सिवाय और कुछ नहीं हो सकती। लेकिन अपने समर्थकों के बीच हाथ हिलाने, हाथ हिलाते हुए तस्वीरें खिंचवाने, और उसे फैलाकर चुनावी या राजनीतिक फायदा पाने के मिजाज से संक्रामक रोग का खतरा कितना बढ़ रहा है, आसपास के लोग कितने खतरे में पड़ रहे हैं, इसे लेकर अमरीकी मीडिया कुछ मिनटों के भीतर ही ट्रंप के पीछे लग गया है। सबसे ऊंचे ओहदे पर बैठे इंसान की लापरवाही की मिसाल नीचे चारों तरफ लोगों को लापरवाह करेगी, यह तय है। और यह बात महज अमरीका पर लागू नहीं होती, दुनिया के तमाम देश, और उनके प्रदेशों पर भी बराबरी से लागू होती है।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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