संपादकीय
भारत की आज की राजनीति में देश में पार्टियां इस कदर खेमों में बंट गई हैं, और इस हद तक कटुता इनके बीच हो गई है कि उससे परे कोई प्रतिक्रिया इनकी तरफ से आ नहीं सकती। न सिर्फ संसद और विधानसभाओं में, बल्कि सोशल मीडिया और मीडिया में भी इनके बीच बातचीत के रिश्ते खत्म हो गए हैं। नतीजा यह हुआ है कि एक अंधाधुंध हड़बड़ी में एक-दूसरे पर हमले हो रहे हैं, और अधिक वक्त नहीं गुजरता कि दूसरे खेमे के हमले का मौका मिल जाता है।
अभी कुछ हफ्ते पहले उत्तरप्रदेश के हाथरस में एक दलित युवती के साथ गैंगरेप के बाद जिस तरह उसका कत्ल हुआ, उससे देश के लोग सिहर गए थे। बड़ी-बड़ी अदालतों तक यह मामला गया, और बलात्कार के बाद अफसरों ने अपने बर्ताव और फैसलों से पीडि़त परिवार के साथ जिस तरह का दूसरा बलात्कार किया, उससे भी लोग सहम गए थे। खुद यूपी हाईकोर्ट ने शासन-प्रशासन के रूख पर भारी नाराजगी जाहिर की थी, और उस पर जमकर लताड़ लगाई थी। उस वक्त भाजपा के तमाम विरोधियों ने भाजपा पर जमकर हमले किए थे, और उत्तरप्रदेश में कानून का राज खत्म हो जाने की बात कही थी।
कुछ ही हफ्ते गुजरे कि कल पंजाब में 6 बरस की एक बच्ची से रेप का एक मामला सामने आया जिसमें एक घर में उस बच्ची से बलात्कार के बाद उसे मार भी डाला गया, और उसके शरीर को जलाने की कोशिश भी की गई। इस बात को लेकर भाजपा के एक केन्द्रीय मंत्री और प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से पूछा है कि वे हाथरस और दूसरी जगहों पर जाते हैं, लेकिन राजस्थान में 10 जगह बलात्कार हुए, वहां क्यों नहीं गए? पंजाब में जहां कांग्रेस की सरकार है वहां बिहार के दलित प्रवासी मजदूर की 6 बरस की बच्ची के साथ ऐसा हुआ, वहां क्यों नहीं गए? प्रकाश जावड़ेकर ने तेजस्वी यादव से भी पूछा है कि उनके बिहार की इस दलित बच्ची के साथ एक कांग्रेस राज में ऐसा हुआ है, और वे वहां क्यों नहीं गए?
यह सवाल जायज है, और आज सार्वजनिक जीवन में जब लोग एक-दूसरे से सवाल अधिक करते हैं, दूसरों के सवालों का जवाब कम देते हैं, तो प्रकाश जावड़ेकर और भाजपा का यह पूछने का हक भी बनता है। जो बात पूछना या कहना वे भूल गए, उस बात को भी हम यहां याद दिला देते हैं कि हाथरस की इस घटना के बाद छत्तीसगढ़ में भी बलात्कार की कई घटनाएं हुई हैं, पहले भी होती रही हैं, लेकिन राहुल गांधी तो छत्तीसगढ़ भी नहीं आए।
हम प्रकाश जावड़ेकर के सवालों और आरोपों को बिल्कुल जायज मानते हैं, और राहुल-प्रियंका को राजस्थान, छत्तीसगढ़ या पंजाब के बलात्कार पर फिक्र और हमदर्दी भी जाहिर करनी चाहिए, इसके अलावा बयान भी देना चाहिए। लेकिन जो बात हाथरस के बलात्कार को बाकी प्रदेशों के दूसरे बलात्कारों से अलग करती है, उस पर प्रकाश जावड़ेकर को अभी तक किसी ने जवाब दिया नहीं है। वह फर्क यह है कि अगर एक दलित युवती के साथ गैंगरेप और हत्या की शिकायत पर पुलिस और प्रशासन ने ठीक से जरूरी कार्रवाई कर दी होती, तो यह मामला इतना बुरा बनता ही नहीं। लेकिन पुलिस और प्रशासन ने बलात्कार की शिकायत आने के बाद से लेकर उस लडक़ी के अंतिम संस्कार तक एक ऐसे अपराधी गिरोह की तरह काम किया जिसकी नीयत बलात्कारियों को बचाने की, और बलात्कार के बाद मार दी गई लडक़ी को एक बार और बलात्कार करके एक बार और मारने की दिखती रही। यह बात हम ही नहीं कह रहे, उत्तरप्रदेश हाईकोर्ट की जजों ने भी हाथरस के अफसरों से लेकर लखनऊ के बड़े अफसरों तक की खूब खबर ली है, उन्हें खूब लताड़ा और फटकारा है। हाथरस का मामला महज एक बलात्कार और हत्या का मामला नहीं है, वहां पर मुजरिमों को बचाने के लिए, या रेप की शिकार मृत युवती के चाल-चलन से लेकर उसके परिवार तक पर शक के सवाल खड़े करने के लिए सरकारी नुमाइंदों की कोशिश का यह मामला है। आज बिहार चुनाव में फंसे हुए सभी नेताओं में से किसी ने इस नजरिए से प्रकाश जावड़ेकर के सवाल और आरोप का जवाब नहीं दिया है, लेकिन एक अखबार के रूप में हम इस सवाल के बिना, इस मुद्दे को उठाए बिना भाजपा के बयान को ज्यों का त्यों नहीं ले सकते। अभी तक राजस्थान, पंजाब, या छत्तीसगढ़ से ऐसी कोई खबर नहीं आई है कि राज्य सरकार या स्थानीय अधिकारी बलात्कार के मामलों को दबाकर पीडि़त परिवार की साख चौपट करने में लगे हुए हैं, अंतिम संस्कार के उनके बुनियादी हक को छीनने में लगे हुए हैं। बलात्कार और जख्मी करने के बाद की प्रशासन की भूमिका से लेकर राज्य स्तर के अफसरों तक की भूमिका में उत्तरप्रदेश को भाजपा विधायक सेंगर के बलात्कार मामले में भी अलग प्रदेश साबित कर दिया था, और हाथरस के इस मामले में भी।
हमारा स्पष्ट मानना है कि बलात्कारों को कोई भी सरकार पूरी तरह रोक नहीं सकतीं, क्योंकि हर लडक़ी या महिला के पीछे सुरक्षा दस्ता तैनात नहीं किया जा सकता, लेकिन दूसरी तरफ एक बार जानकारी आ जाने पर या शिकायत आ जाने पर शासन-प्रशासन का जो रूख रहता है, वही सरकार की नीयत और जनता की नियति साबित करता है। उत्तरप्रदेश का रिकॉर्ड इस मामले में लगातार बहुत खराब है, और वहां पर सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं, सरकार के बड़े-बड़े अफसरों ने जो संवेदनशून्यता दिखाई है, उसकी कोई मिसाल देश के दूसरे राज्यों में देखने नहीं मिलती है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)