संपादकीय
उत्तरप्रदेश के बारे में दो दिन पहले एक अटपटी खबर आई कि वहां किसी वाहन पर अगर धर्म या जाति का स्टिकर लगा होगा, या इनका जिक्र लिखा होगा तो गाडिय़ों को जब्त कर लिया जाएगा। योगी सरकार ऐसा करेगी उस पर भरोसा करना मुश्किल था, और अगले ही दिन सरकार के आला अफसरों ने ऐसी सोशल मीडिया पोस्ट और खबरों को गलत करार दिया। अफसरों ने कहा कि गाडिय़ों पर जाति के स्टिकर लगाने पर पहले से जुर्माना तय है, इसी आधार पर एक लिखित शिकायत आई थी जिस पर विभाग के अधिकारियों ने नियमानुसार कार्रवाई की बात कही थी, और उसे लेकर मीडिया और सोशल मीडिया में ऐसी खबरें उड़ गईं।
योगी सरकार ऐसा कुछ कर सकती है इस पर भरोसा नहीं हो रहा था, और मामला वैसा ही निकला। यह सरकार पहले से चले आ रहे एक नियम के तहत जातियों का जिक्र लिखाने पर कभी-कभार जुर्माना कर देती है, और मामला वहीं खत्म हो जाता है। महाराष्ट्र के एक शिक्षक ने प्रधानमंत्री को शिकायत की थी कि उत्तरप्रदेश में बड़ी संख्या में वाहनों पर जातियां लिखी जाती हैं, और यह समाज के लिए खतरा है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने शिकायत यूपी सरकार को भेज दी, और विभाग ने एक निर्देश जारी किया जिससे चारों तरफ खलबली मची।
जातियों का प्रदर्शन न तो कोई नई बात है, और न ही यह अकेले उत्तरप्रदेश तक सीमित है। जातिवाद और साम्प्रदायिकता के ताजा सैलाब के चलते उत्तरप्रदेश में यह मामला कुछ बढ़ गया होगा, वरना जातिवाद तो हिन्दुस्तान के लोगों में कूट-कूटकर भरा है। किसी एक जाति या किसी एक तबके की जातियों के लोग जब जुटते हैं, तो पहला मौका मिलते ही दूसरी जातियों के खिलाफ जहर के झाग उनके मुंह से निकलने लगते हैं। आबादी का छोटा तबका ऐसा होगा जो जातिवाद से परे होगा, वरना हिन्दुस्तान जातियों के ढांचे के बोझतले पिस गया है।
सरकारी अमले के भीतर ही जाति और धर्म का जिक्र बहुत आम है। सरकारी दफ्तरों में दीवारों पर और मेज के कांच के नीचे धर्म और आध्यात्म के अपने आराध्य लोगों की तस्वीरें सजाना आम बात है। देश के बहुत से हिस्सों में पुलिस थानों में बजरंग बली का मंदिर रहता ही है। पुलिस जैसे संवेदनशील का वाले विभाग में भी दीवारों पर आस्था का खुला प्रदर्शन होता है जिससे यह जाहिर हो जाता है कि उस आस्था से परे के लोगों को पुलिस से कोई निष्पक्ष बर्ताव नहीं मिल सकता। फिर चतुर लोग ऐसी आस्था की शिनाख्त करके आनन-फानन में अपने को उससे जुड़ा बता देते हैं, और अगली बार उस तीर्थ का प्रसाद लेकर हाजिर भी हो जाते हैं। नेता या अफसर अगर मुस्लिम होते हैं, तो उनके सरकारी फोन नंबर से लेकर उनके कार्यकाल में खरीदी नई गाडिय़ों के नंबर तक मुस्लिमों के शुभ अंक के दिखने लगते हैं।
उत्तरप्रदेश में ऐसे जुर्माने का जिक्र किया है, तो वह देश के दूसरे प्रदेशों में भी लागू होगा क्योंकि मोटर व्हीकल एक्ट पूरे देश के लिए एक सरीखा है। लेकिन मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कभी ऐसी बातों के लिए गाडिय़ों पर जुर्माना होने की खबर याद नहीं पड़ती। बड़ी संख्या में गाडिय़ां जाति और धर्म के जिक्र वाली रहती हैं, लेकिन उन पर कोई रोक-टोक नहीं होती। किसी भी धर्मनिरपेक्ष और जिम्मेदार सरकार को चाहिए कि गाडिय़ों पर ऐसा लिखने पर मोटा जुर्माना लगाया जाए, और सरकारी दफ्तरों में धर्म और जाति के किसी भी तरह के प्रतीक के प्रदर्शन पर कड़ी कार्रवाई की जाए। हिन्दुस्तान में धर्म और जाति ने लोगों के बीच खाई खोदी है, हिंसा बढ़ाई है, और निष्पक्ष इंसाफ की संभावनाओं को घटाया है। यह भी एक वजह है कि देश की जेलों में बंद लोगों में नीची समझी जाने वाली जातियों के लोग अधिक हैं, और ऊंची समझी जाने वाली ताकतवर जातियों के लोग जांच और अदालत की प्रक्रिया से ही बच निकलते हैं।
उत्तरप्रदेश को लेकर यह जिक्र अधिक प्रासंगिक इसलिए है कि वह देश में सबसे बुरे जातिवाद का शिकार प्रदेश है। यूपी पुलिस पहले साम्प्रदायिक रहती है, उसके बाद वह जातिवादी भी हो जाती है। ऐसे प्रदेश में एक ही धर्म या एक ही जाति के मुजरिम, पुलिस, और अदालती कर्मचारी भी एक किस्म से अघोषित गिरोहबंदी कर लेते हैं।
देश के बाकी प्रदेशों में भी धर्मांधता और जातिवाद के खिलाफ जो सामाजिक कार्यकर्ता हैं, उन्हें सरकार को नोटिस देकर या जनहित याचिका दायर करके गाडिय़ों और दफ्तरों के धर्म-जाति प्रदर्शन के खिलाफ कार्रवाई करवानी चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)