संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मजबूत पाक जम्हूरियत हिंदुस्तान के फायदे की
26-Mar-2021 5:42 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मजबूत पाक जम्हूरियत हिंदुस्तान के फायदे की

भारत और पाकिस्तान के बीच लम्बे वक्त के बाद फिर बातचीत होने वाली है। जिसमें  कई मुद्दों पर चर्चा होगी। यह बातचीत ऐसे वक्त होने जा रही है जब पाकिस्तान एक नई अस्थिरता में घिरते दिख रहा है। वहां पर सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ विपक्षी पार्टी खुलकर खड़े होते भी दिख रही है और लोकप्रियता पाते भी दिख रही है। किसी भी देश में एक मजबूत विपक्ष में कोई बुराई नहीं है, इससे लोकतंत्र मजबूत ही होता है, लेकिन पाकिस्तान जैसे कमजोर और जर्जर हो चुके लोकतंत्र में आज किसी भी फेरबदल का मौका आने पर कभी आतंकी, कभी सेना, कभी खुफिया एजेंसियां, कभी विदेशी ताकतें, फेरबदल को प्रभावित करने की खुली या ढंकी-छुपी कोशिश करने लगते हैं। ऐसे बाहरी असर मतदाता के फैसले को या तो मतदान के पहले प्रभावित करते हैं या फिर मतदान के बाद सरकार बनाने के समय इनका असर दिखता है। 

यह शायद पहली बार हो रहा है कि निर्वाचित सरकार के होते हुए भी पाकिस्तानी फौजी मुखिया हिंदुस्तान के साथ शांति और अच्छे संबंधों की वकालत कर रहे हैं, बयां दे रहे हैं। मीडिया रिपोर्टों में भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत में संयुक्त अरब अमीरात के मध्यस्थता करने का दावा भी किया गया है कि संयुक्त अरब अमीरात की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान के बीच पर्दे के पीछे बातचीत हुई है। हालांकि भारत या पाकिस्तान ने इसकी पुष्टि नहीं की है। विश्लेषक ये भी मान रहे हैं कि हाल की दोनों देशों के बीच की सकारात्मक घटनाएं पर्दे के पीछे चल रहीं गतिविधियों का नतीजा हैं।

पाकिस्तान की किसी भी किस्म की बदहाली से भारत में लोगों का एक तबका खुश सा होते दिखता है। इसमें ऐसे लोग हैं जिन्होंने मुम्बई हमले जैसे बहुत से जख्म खा-खाकर पाकिस्तान से नफरत करना जरूरी समझ लिया है। इसमें ऐसे लोग भी हैं जिनको पाकिस्तान पर हमले के बहाने मुसलमानों पर हमला करना एक आसान मौका लगता है और वे इससे नहीं चूकते। बहुत से ऐसे साधारण लोग इन दोनों तबकों के बाहर के ऐसे भी हैं जिन्हें लगता है कि भारत को एक हमला करके पाकिस्तान नाम के सिरदर्द को मिटा देना चाहिए। इसमें हमें अधिक हैरानी इसलिए नहीं होती कि एक जटिल अंतरराष्ट्रीय मामले की समझ तो बहुत अधिक लोगों में होने की उम्मीद करना सही नहीं होता, किसी भी मामले में समझदार लोगों की गिनती गिनी-चुनी होती है और बेसमझ, कमसमझ या अनजान लोग ही अधिक होते हैं। भारत में पाकिस्तान के बारे में जो जनमत है, उसमें ऐसे लोग ही अधिक हैं। हम संदेह का लाभ देते हुए यह मानते हैं कि इनमें बहुतायत अनजान लोगों की ही है।

 पाकिस्तान की आज की हालत भारत के लिए बहुत फिक्र की बात भी है। हमारी सरहद से लगे हुए दो ही परमाणु देश हैं जिनमें से पाकिस्तान ऐसा है जो कि सरकार के काबू से बाहर की नौबतें झेलता है और वहां पर आतंकियों का एक तबका, फौजी तानाशाही में भरोसा रखने वाला एक तबका, और हथियारों के सौदागरों के सत्ता में बैठे हुए दलाल ऐसे हैं जो कि युद्धोन्माद को बढ़ावा देने में भरोसा रखते हैं। ऐसे में एक बड़े देश के रूप में, सफल लोकतंत्र के रूप में भारत की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वह पाकिस्तान को लोकतंत्र की पटरी पर लौटने में मदद करे और उसका हौसला बढ़ाए। जिस तरह फिलीस्तीनियों को यह मानकर चलना चाहिए कि इजराइल अब एक हकीकत बन चुका है और उसे मिटाने की शर्त पर कोई बात आगे नहीं बढ़ सकती। इसी तरह भारत के युद्धोन्मादियों को यह मान लेना चाहिए, समझ लेना चाहिए कि पाकिस्तान को मिटाना अब मुमकिन नहीं है, न ही ऐसी कोई हरकत सही भी होती, होगी। ऐसे में उसे अमरीका की जेब से निकलकर चीन की जेब में पूरी तरह जाने देना भारत के फौजी हितों के खिलाफ होगा। 

अंतरराष्ट्रीय संबंध दो और दो चार की तरह, या शतरंज की तयशुदा चालों की तरह नहीं बढ़ते। ऐसे संबंध बहुत सी बातों को ध्यान में रखकर तय किए जाते हैं, और हम ऐसी बातों के बीच भी, बजाय देश के हितों को ही ध्यान में रखकर काम करने के, पूरी दुनिया के, पूरे मानव समाज के हितों को ध्यान में रखकर काम करने पर अधिक भरोसा रखते हैं। ऐसे में पाकिस्तान की आज की अस्थिरता और वहां चल रहे तनाव को कम करने की जरूरत है क्योंकि एक परिपच् लोकतंत्र, स्थायी लोकतंत्र भारत के हित में है। इतने पड़ोस में बसा हुआ कोई देश अगर आतंकियों से अपने आपको नहीं बचा पा रहा है तो वह कल के दिन वहां से भारत आकर हमला करने वाले आतंकियों को, अगर चाहेगा तो भी, कैसे रोक पाएगा? और अगले किसी मुम्बई हमले की नौबत आने पर भी भारत के लिए यह आसान नहीं होगा कि वह पाकिस्तान को उसके घर में घुसकर मारे। वैसे भी चीन जैसे नए दोस्त की ताकत जब पाकिस्तान के साथ आज भी है तब यह शक्ति संतुलन ऐसे किसी बड़े हमले की संभावना पैदा नहीं होने देगा। इसलिए आज भारत के लोगों को यही मनाना चाहिए कि पाकिस्तान में लोकतंत्र मजबूत हो। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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