संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : महामारी में अफसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप पर मनोबल गिराने की साजिश की एफआईआर दर्ज !
30-Apr-2021 4:14 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : महामारी में अफसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप पर मनोबल गिराने की साजिश की एफआईआर दर्ज !

उत्तर प्रदेश में अभी पुलिस ने एक ऐसे युवक के खिलाफ जुर्म दर्ज किया है जिसने सोशल मीडिया पर अपने परिवार के किसी बुजुर्ग के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर की अपील की थी। आज पूरी दुनिया इस बात की गवाह है कि हिंदुस्तान का कोना-कोना ऑक्सीजन की कमी का शिकार है और अस्पतालों तक में बिना ऑक्सीजन मौतें लगातार हो रही हैं। आज अभी जब हम इस बात को लिख रहे हैं उस वक्त दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार से ऑक्सीजन संकट, और बदइंतजामी को लेकर जवाब-तलब जारी है। जब पूरे देश में यह बात साफ है कि ऑक्सीजन की कमी है और किसी परिवार में किसी मरीज के लिए अगर ऑक्सीजन लगनी है तो उसकी सार्वजनिक अपील सरकार को बदनाम करने की कोशिश मानकर जुर्म समझी जा रही है। अभी इसके खिलाफ देशभर के सोशल मीडिया पर और अखबारों में भी लगातार लिखा जा रहा है और इसके फेर में उत्तर प्रदेश सरकार की दूसरी नालायकी और नाकामयाबी सामने आते जा रही हैं। लोगों को यह समझ नहीं आ रहा है कि सरकार खुद इंतजाम नहीं कर पा रही है और दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर अपील करने से अगर आज लोग आगे बढक़र दूसरों की मदद कर रहे हैं, तो उस मदद मांगने को भी जुर्म मान लिया जा रहा है। यह मामला अदालत में 2 मिनट भी नहीं टिकेगा  और पुलिस को फटकार लगना तय है। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश सरकार तो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की फटकार खा-खा कर अब बेशर्म सी हो गई है कि उसे अब इससे अधिक बुरा और कोई क्या कह लेंगे। 

लेकिन अफसरों और पुलिस की ऐसी बददिमागी महज उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में कल पुलिस में कई पत्रकारों के खिलाफ एक जुर्म दर्ज किया है। रायगढ़ जिले के एक एसडीएम और तहसीलदार की ओर से पुलिस को शिकायत की गई कि एक अखबार में अफसरों पर महुआ व्यापारियों से वसूली या उगाही की खबर छपी और फिर बाद में रायगढ़ के पत्रकारों के एक व्हाट्सऐप ग्रुप में उस खबर के संदर्भ में अफसरों के भ्रष्ट होने के बारे में एक सामान्य टिप्पणी की गई। अब अफसरों का हाल देखें कि उन्होंने पुलिस में यह शिकायत की कि वे रात-दिन कोरोना के मोर्चे पर डटे हुए हैं और महामारी से लडऩे की इस कोशिश में उनके मनोबल को तोडऩे के लिए उनके खिलाफ साजिशन ऐसा समाचार छापा गया है। मतलब यह कि जब तक महामारी, तब तक अगर अफसरों का कोई भ्रष्टाचार है, तो उसे अनदेखा करना चाहिए, उसके बारे में पत्रकारों को अपने ग्रुप में बात भी नहीं करनी चाहिए। यह महामारी से लड़ाई को एक अलग ऊंचाई तक ले जाने की कोशिश है मानो कि कोई पतंग को अंतरिक्ष तक ले जा रहे हों। अगर महामारी से अधिकारी और कर्मचारी लड़ रहे हैं तो क्या उनके बाकी कथित भ्रष्टाचार या सचमुच के भ्रष्टाचार को अनदेखा कर दिया जाए जाए? इस तर्क से तो मोदी सरकार भी कह सकती है कि वह कोरोना से लड़ रही है इसलिए उसकी किसी किस्म की आलोचना नहीं होनी चाहिए। मोदी सरकार भी राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी पर जुर्म कायम कर सकती है कि वे सरकार का मनोबल तोडऩे का काम कर रहे हैं। और यह बात किसी भी राज्य के सरकारी कर्मचारी अधिकारी कह सकते हैं, मंत्री-मुख्यमंत्री कह सकते हैं कि उनकी आलोचना जायज नहीं है क्योंकि वह अभी कोरोना के मोर्चे पर डटे हुए हैं। अब अगर इसी तर्क को देखें तो इस हिसाब से तो मीडिया के लोग भी कोरोना के मोर्चे पर डटे हुए हैं और छत्तीसगढ़ में पुलिस के जितने लोग कोरोनाग्रस्त हैं उतने ही लोग मीडिया के भी मारे गए हैं। तो फिर मीडिया के खिलाफ आज इस तरह का जुर्म दर्ज करना क्या कोरोनाग्रस्त मीडिया की लड़ाई को कमजोर करने की साजिश करार दे दिया जाए? 

यह सिलसिला बहुत शर्मनाक है जब सरकारी अधिकारी अपनी ताकत का बेजा इस्तेमाल करके किसी आम नागरिक के खिलाफ या मीडिया के किसी तबके के खिलाफ इस तरह की हरकत करते हैं। हिंदुस्तान में यह देखने में आ रहा है कि राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी, राज्य की सरकार, या कि स्थानीय अफसर जब चाहे तब किसी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा सकते हैं और फिर वैसी एफआईआर चाहे अदालत में जाकर खड़ी क्यों ना हो सके। छत्तीसगढ़ में पिछले वर्षों में जाने कितनी ही एफआईआर देश के पत्रकारों के खिलाफ, राजनीतिक दलों के प्रवक्ताओं के खिलाफ, राज्य के भीतर सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों के खिलाफ, अखबार या मीडिया वालों के खिलाफ दर्ज की गई हैं। लेकिन उनमें से कोई एफआईआर कभी अदालत में टिक नहीं पाती क्योंकि वे बदनीयत से दर्ज होती हैं। यह सिलसिला इसलिए अधिक खतरनाक है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी का शासन है और कांग्रेस पार्टी पूरे देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ इस किस्म से दर्ज की जाने वाली फर्जी शिकायतों के खिलाफ बार-बार आवाज उठाती है। अब अगर महुआ व्यापारियों से रिश्वत लेने का आरोप लगा है, एक अखबार में ऐसी रिपोर्ट छपी है, और बाकी अखबारनवीस इस  पर चर्चा कर रहे हैं तो इस खबर और चर्चा का प्रशासन का कोरोना मोर्चे का मनोबल तोडऩे से क्या लेना-देना हो सकता है? हम कानून की अपनी बहुत मामूली समझ के आधार पर यह कह सकते हैं कि रायगढ़ पुलिस में वहां के प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा दर्ज कराई कराई गई है एफआईआर हाईकोर्ट में आनन-फानन खारिज हो जाएगी जो कि ऐसी एफआईआर के पीछे की बदनीयत को पल भर में देख लेगा। यह सिलसिला अच्छा नहीं है, और यह राज्य की सरकार की साख खराब करता है, यहां पर सत्तारूढ़ पार्टी की साख को भी खराब करता है जो कि भाजपा के 15 वर्ष के कार्यकाल में इसी तरह की दर्ज की गई बहुत सी एफआईआर का विरोध करते  आई है। 

इस सरकार को अपने अफसरों पर इतना काबू रखना चाहिए कि वे मीडिया को परेशान करने के लिए इस तरह की फर्जी शिकायतें न दर्ज कराएं, न पुलिस ऐसी एफआईआर दर्ज करे। यह मामला अधिक से अधिक किसी अधिकारी की मानहानि का साधारण मामला हो सकता था जिसमें वह अधिकारी अदालत में एक केस दायर करने के लिए आजाद थे। लेकिन महामारी से लड़ाई की आड़ लेना एक शर्मनाक हरकत है और महामारी से अगर कोई लड़ रहे हैं तो उसका यह मतलब नहीं है कि उनके तमाम गलत कामों को अनदेखा कर दिया जाए। इस तर्क से तो आज पूरे देश में किसी अस्पताल, किसी सरकार, किसी अफसर, या किसी मंत्री के खिलाफ कुछ भी लिखना जुर्म होगा क्योंकि अधिकतर लोग किसी न किसी तरह से महामारी के खिलाफ लड़ाई में शामिल हैं। इसके पहले कि अदालत ऐसी रद्दी और तर्कहीन एफआईआर खारिज करे, सरकार को खुद होकर इसे खत्म करना चाहिए और अपने अमले को सावधान करना चाहिए कि महामारी की आड़ लेकर इस तरह की हरकतें ना की जाएं । 

आज तो देश भर का मीडिया ऐसी खबरों से भरा हुआ है कि किस प्रदेश में क्या भ्रष्टाचार चल रहा है, और जिस वक्त महामारी से लड़ाई जैसी आपाधापी चलती है उस वक्त तो भ्रष्टाचार और अधिक होता है। हिंदुस्तान के तमाम प्रदेशों का इतिहास गवाह है कि आपदा प्रबंधन सबसे अधिक भ्रष्टाचार से भरा हुआ मामला रहता है। ऐसे में मीडिया या पत्रकारों को कुचलना बहुत समझदारी का काम नहीं होगा। अगर राज्य सरकार इस एक जिले के अपने प्रशासनिक अफसरों पर काबू नहीं करेगी, तो प्रदेश के बहुत सारे जिलों में बहुत सारे दूसरे अफसर पत्रकारों के खिलाफ अपना कोई पुराना हिसाब चुकता करने के लिए उनके खिलाफ कोई ना कोई जुर्म दर्ज करवाते रहेंगे। हमारा तो ख्याल यह है कि भ्रष्टाचार के ऐसे आरोपों वाली खबर को कुचलने के लिए अगर प्रशासनिक अधिकारी महामोरी के मोर्चे की आड़ ले रहे हैं, तो इसे लेकर उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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